शक्ति की साधना करना चाहते हैं तो जानें 52 शक्तिपीठों को

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ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों हैं अधिकतर सिद्ध मंदिर, जानें कारण
ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों हैं अधिकतर सिद्ध मंदिर, जानें कारण।

If you want to have Shakti know about the Shaktipeeths : शक्ति की साधना करना चाहते हैं तो जानें शक्तिपीठों को। इसे जानना वैसे ही आवश्यक है जैसे उच्च शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए विश्वविद्यालयों की जानकारी रखना। शक्ति की साधना करने वालों के लिए शक्तिपीठ से बेहतर और कोई स्थान नहीं है। हालांकि पुराणों में वर्णित शक्तिपीठों के बारे में भारी भ्रम की स्थिति है। इसमें अलग-अलग दावें किए जाते हैं। देवी भागवत में 108, कालिका पुराण में 26, शिव चरित्र में 51 और तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ का जिक्र है। दिलचस्प तथ्य यह है कि अलग-अलग स्थानों पर एक ही तरह की मान्यता वाले शक्तिपीठ होने के दावे किए जाते हैं। वहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भी उमड़ती है। आस्था के इन केंद्रों में मनोकामना भी पूरी होती है। मैं यथासाध्य प्रमुख शक्तिपीठों और इनसे जुड़े दावों की जानकारी देने का प्रयास करूंगा।

इस तरह से हुई शक्तिपीठों की स्थापना

कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति ने बड़ा यज्ञ शुरू किया। उसमें शामिल होने के लिए सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था। उनके पिता ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी उपस्थित भी हुए। लेकिन उन्होंने अपने पुत्री-दामाद सती व शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। इस पर सती ने महादेव की इच्छा के विरुद्ध यज्ञस्थल पर जाकर पिता से इसका विरोध किया। दक्ष ने महादेव के खिलाफ कई आपत्तिजनक बातें कहीं। इससे आहत सती ने वहीं यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए। यह जानकार शिव अत्यंत क्रोधित और दुखी हुए। आहत महादेव सती के शव को कंधे पर रख दुनिया भर में विचरण करने लगे। उनके कर्म से विरत होने से ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ने लगा। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने उनके मोह की शांति के लिए सुदर्शन चक्र से सती के शव को टुकड़ों में विभक्त कर दिया। जहां-जहां माता वे अंग गिरे, शक्तिपीठ कहलाए।

हृदय से ऊपर के अंग दक्षिण व नीचे वाम मार्ग के सिद्ध केंद्र

शक्ति की साधना करना चाहते हैं तो योगिनी हृदय एवं ज्ञानार्णव की मान्यता को जानें। इसके अनुसार सती के ऊर्ध्वभाग के अंग जहां गिरे वे दक्षिण मार्ग की साधना के केंद्र बने और निम्न भाग के अंग वाम मार्ग की सिद्धि के बड़े केंद्र हैं। इनमें बिना विवाद वाले कुछ ही स्थान हैं। वे हैं- कामरूप। यहां सती की योनि गिरी। यह स्थान गुवाहाटी के पास है। यह तंत्र और शाबर मंत्रों की सिद्धि का अद्भुत स्थान है। ऐसे बिना विवाद वाले स्थानों में कालीघाट, वाराणसी, उज्जैन, तारापीठ, ज्वालादेवी, पाकिस्तान का हिंगलाज मंदिर, रजरप्पा का छिन्नमस्तिका मंदिर आदि भी माने जाते हैं। ये सभी साधना के लिए जाग्रत केंद्र हैं। मेरा मानना है कि शक्तिपीठों को लेकर विरोधाभास को देखते हुए बीच का मार्ग निकालना चाहिए। ऐसे सभी ज्ञात मंदिर आस्था व मनोकामना पूर्ति के बड़े केंद्र हैं। इस अनुसार से 108 शक्तिपीठों की बात सही प्रतीत होती है।

एक ही अंग से जुड़े भिन्न शक्तिपीठ का दावा

यह तो निर्विवाद है कि काशी में शक्तिपीठ है। लेकिन वहां कौन से अंग गिरा इसे लेकर विवाद है। कुछ विद्वान मणिकर्णिका (कर्म कुंडल), तो कुछ स्तन, कुछ आंख गिरने की बात कहते हैं। कुछ विद्वान सती के गुह्य भाग को नेपाल में गिरने का दावा करते हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि मेरी जानकारी में माता के नेत्र गिरने के नाम पर कम से कम पांच शक्तिपीठ हैं। ये हैं—नैनादेवी (हिमाचल प्रदेश), तारा पीठ (पश्चिम बंगाल), मुंगेर का चंडी स्थान (बिहार), सहरसा (बिहार) में वनगांव महिषी तथा सासाराम (बिहार) का ताराचंडी मंदिर। इसी तरह कम से कम तीन स्थानों पर स्तन गिरने का दावा किया जाता है। वे हैं-काशी, गया और जालंधर। इसी तरह त्रिपुर सुंदरी के नाम पर त्रिपुरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब में मंदिर हैं। उनमें अंगों को लेकर भी असमंजस की स्थिति है। सभी के शक्तिपीठ होने का दावा किया जाता है।

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कुछ प्रमुख पीठों के नाम व मान्यता

अब कुछ प्रमुख पीठों के बारे में पढ़ें जिन्हें शक्तिपीठ की मान्यता मिली हुई है। शक्ति की साधना करना चाहते हैं तो विवाद से परे इन्हें भी जानें। सती का बायां कान जहां गिरा वह कश्मीर पीठ हुआ। यहां सभी तरह के मंत्रों की सिद्धि होती है। सती का दायां कान कान्यकुब्ज में गिरा। यहां वैदिक मंत्रों की सिद्धि होती है। सती की नाक पूर्णगिरी पीठ में गिरी थी। यहां योग सिद्धि होती है। सती के वामगंड स्थल अर्बुदाचलपीठ हुआ। यहां वाम मार्ग की सिद्धि होती है। जहां दक्षिण गंड स्थल गिरा वह आम्रातकेश्वरपीठ है। यहां धनदादि की प्राप्ति होती है। नखों के गिरने का स्थान एकाम्रपीठ कहलाया। यह पीठ विद्या प्रदायक है। त्रिवलि के गिरने के स्थान में त्रिसोतपीठ हुआ। यहां गृहस्थ द्विज को पौष्टिक मंत्रों की सिद्धि होती है। नाभि के गिरने के स्थान में कामकोटिपीठ हुआ। यहां समस्त काम मंत्रों की सिद्धि होती है।

सिद्धि प्राप्त करने वाले कुछ और पीठों को जानें

अंगुलियों के गिरने का स्थान पर कैलाश पीठ कहलाया। यहां करमाला से मंत्र जप करने पर अतिशीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। जहां दांत गिरा वह भृगु पीठ कहलाया। यहां वैदिक मंत्र सिद्ध होते हैं। माता का दायां करतल जहां गिरा वह केदारपीठ कहलाया। यह सर्व सिद्ध पीठ है। जहां मस्तिष्क गिरा वहां श्रीपीठ हुआ। यहां मुख की शुद्धि होती है। कलयुग में यहां पापी जीवों का पहुंचना कठिन है। कंचुकी की पतन भूमि ज्योतिष्मती पीठ कहलाया। यह नर्मदा तट पर स्थित है। यहां तप करने से जीवन से मुक्ति मिलती है। ज्वालामुखी पीठ में तपस्या से तेज प्राप्त होता है। बायां स्कंध जहां गिरा वह गालव पीठ कहलाया। यहां राग-ज्ञान की सिद्धि होती है। दाहिना कक्ष जहां गिरा वह कुलान्तक पीठ हुआ। विद्वेषण, उच्चाटन, मारण के प्रयोग वहां सिद्ध होते हैं। जहां बायां कक्ष गिरा वहां कोट्टकपीठ हुआ। यहां राक्षसों ने सिद्धि प्राप्त की।

इन पीठों और उनके महत्व को भी जानें

जठर प्रदेश गिरने वाला स्थल गोकर्ण पीठ कहलाया। यहां तप से तेज व स्मृति की प्राप्ति होती है। शक्ति की साधना करना चाहते हैं तो इन पीठों को भी जानें। त्रिवलियों में से जहां प्रथम वलिका गिरा वह मातुरेश्वर पीठ कहलाया। यहां शैव मंत्र सिद्ध होते हैं। अपर वलि के गिरने का स्थान अट्टहास पीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां गणेश मंत्रों की सिद्धि होती है। तीसरी वलिका स्थल विरजपीठ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां विष्णु मंत्रों की सिद्धि होती है। जहां वस्तिका पात हुआ वह राजगृह पीठ कहलाया। यहां ऐंद्रजालिक मंत्रों की सिद्धि होती है। नितंब स्थल को महापथपीठ के रूप में प्रसिद्धि मिली। जहां जंघा का पात हुआ वह कौलगिरि पीठ कहलाया। यहां वन देवताओं के मंत्रों की सिद्धि होती है। दक्षिण उर के पतनस्थल एलापुर पीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां रोग निवारक आदि मंत्र सिद्ध होते हैं।

कुछ और पीठों के नाम और महत्व

वाम उर की पतन स्थल महाकालेश्वर पीठ कहलाया। यहां आयुवृद्धिकारक मृत्युंजयादि मंत्र सिद्ध होते हैं। वाम जानु का पतन स्थल को उज्जयिनी पीठ कहते हैं। यहां कवच मंत्रों की सिद्धि होती है। दक्षिण जंघा स्थल योगिनी पीठ है। यहां कौलिक मंत्रों की सिद्धि होती है। माता की वाम जंघा गिरने के स्थान को क्षीरिकापीठ कहते हैं। यह वैतालिक और शाबर मंत्रों को सिद्ध करने का बड़ा केंद्र है। दक्षिण गुल्फ का पतन स्थल हस्तिनापुर पीठ कहलाया। यहां सूर्य मंत्रों की सिद्धि होती है। वाम गुल्फ का पतन स्थल उड्डीशपीठ कहलाया। यहां महातंत्रों की सिद्धि होती है। जहां देह रस का पतन हुआ वह प्रयाग पीठ कहलाया। अन्यान्य अस्थियों का पतन होने से अनेक उप पीठों तथा बगला, चामुंडा, राज राजेश्वरी संज्ञक तथा भुवनेश्वरी उप पीठ हुए। स्थानाभाव और बहुत बड़ा होने के कारण इसे यहीं विराम दे रहा हूं। स्थान कई हैं और उनका महत्व भी निर्विवाद है।

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