रात्रि में विवाह की परंपरा अनुचित

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रात्रि में विवाह की परंपरा अनुचित
रात्रि में विवाह की परंपरा अनुचित।

Inappropriate is the tradition of marriage at night : रात्रि में विवाह की परंपरा अनुचित है। प्राचीन काल से ही रात्रि को आसुरी शक्तियों के लिए उचित माना गया है। देवता और मानव के लिए वह वर्जित समय माना जाता रहा है। वैदिक पद्धति में उस समय पूजा-पाठ, हवन आदि भी सही नहीं माना जाता था। सनातन परंपरा में अभी भी शुभ कार्य के लिए दिन का समय ही सर्वाधिक उपयुक्त होता है। सिर्फ तांत्रिक और शाबर मंत्र के लिए हवन और यज्ञ की अनुमति है। यहां तक कि रात में देर तक जागने को भी सही नहीं माना जाता है। इसके बाद भी विवाह जैसा पवित्र व शुभ कार्य का रात्रि में होना आश्चर्य का विषय है। यह आश्चर्य तब और बढ़ जाता है, जब लोग शुभ दिन तो देखते हैं लेकिन शुभ मुहूर्त का ध्यान नहीं रखते हैं।

विवाह प्रमुख संस्कार, इसे दिन में करें

धर्मग्रंथों को देखें तो शिव-पार्वती विवाह, माता सीता एवं द्रौपदी का स्वयंवर आदि दिन में हुए थे। देवताओं की पूजा-अर्चना का समय भी दिन में ही माना जाता है। विवाह को मनुष्य का प्रमुख संस्कार माना गया है। हर संस्कार के लिए उपयुक्त दिन और समय देखा जाता है। दिन देखने के मामले में अभी भी लोग सजग रहते हैं लेकिन मुहुर्त का ध्यान नहीं रखते हैं। विवाह में दो लोग पवित्र रूप से जुड़ते हैं। इसलिए शुभ मुहूर्त अनिवार्य है। विशेष रूप से दैवीय व सकारात्मक शक्ति की जागृति का ध्यान रखना ही चाहिए। ऐसे में इसे दिन में करना चाहिए। ताकि नव दंपति और उनकी संतति के संस्कार उच्च मिल सकें। वैसे भी देखें तो वैदिक रीति के अनुसार दिन में ही हवन करना चाहिए। विवाह में अग्नि के फेरे लेने की परंपरा है। अतः रात्रि में विवाह की परंपरा को उचित नहीं कहा जा सकता है।

विदेशी हमले ने बदली परंपरा

विदेशी हमलों से पहले देश में यही परंपरा थी। यज्ञोपवीत सिहत अन्य प्रमुख संस्कारों की तरह विवाह भी दिन में होते थे। बाद में सुरक्षा सहित विभिन्न कारणों से इसे रात में गुपचुप तरीके से किया जाने लगा। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार हिंदुओं की सुरक्षा के लिए दुल्ला भट्टी नामक योद्धा ने अपने संरक्षण में दो बहनों का पहली बार रात्रि में विवाह कराया था। उन्होंने बाद में भी कई अपहृत हिंदू लड़कियों को मुक्त कराकर विवाह कराया। हालांकि कई स्थानों पर विवाह समारोह तो रात में होता है लेकिन फेरे ब्रह्म मुहूर्त में कराए जाते हैं। कालांतर में स्थितियां बदलीं। तब तक सनातन धर्म के मूल भाव को जानने वाले का अभाव हो गया। परिणामस्वरूप रात्रि विवाह की परंपरा जारी रही। हालांकि बाद में बनी वेदज्ञ संस्थाओं में दिन में विवाह का प्रचलन शुरू हो गया है। देश के प्रमुख मंदिरों में दिन में ही विवाह होता है।

पंजाब में प्रारंभ हुआ सकारात्मक परिवर्तन

विदेशी आक्रमण का सबसे अधिक असर पश्चिमी राज्यों में हुआ। अतः रात्रि में विवाह की परंपरा की शुरुआत भी वहीं हुई। महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके सेनापति हरिसिंह नलवा ने वैदिक परंपरा के अनुरूप दिन में विवाह करने वाले को सुरक्षा देने की घोषणा की। इसके बाद वहां कई विवाह धूमधाम से दिन में विवाह शुरू हुए। आज भी बहु संख्यक लोग दिन में विवाह करते हैं। इसके बाद कई अन्य राज्यों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया। पूर्व और दक्षिण के कई राज्यों में भी यह प्रचलन शुरू हो गया है। हिमाचल की कुछ जनजाति और मिथिलांचल के श्रोत्रिय समाज में भी मुहूर्त देखकर विवाह किया जाता है। इसमें अधिकांश विवाह दिन में होते हैं। विशेष स्थिति में शुभ दिन में सिर्फ रात्रि मुहूर्त होने पर ही उस समय विवाह होते हैं।

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