Kabir’s couplets showing the path of religion and spirituality : धर्म व अध्यात्म की राह दिखाते कबीर के दोहे। आप धर्म-अध्यात्म के राही हों या आम आदमी कबीरदास का नाम अवश्य सुना होगा। सरल और सहज तरीके से जीवन के हर क्षेत्र के बारे में अपनी दो टूक राय देने के कारण वह काफी चर्चित रहे हैं। उनकी बातें जीवन रक्षक दवा की तरह कड़वी गोली की तरह है। जिसे अपना कल्याण चाहने वाले हर मनुष्य को निगलना ही पड़ता है। धर्म, जात-पात, भाषा आदि के विवाद से परे कबीर के बोल अध्यात्म के लिए भी अमृत समान हैं। यहां मैं उन्हीं के कुछ अनमोल वचनों को प्रस्तुत कर रहा हूं। मुझे विश्वास है कि सुधि पाठक इन्हें पसंद करेंगे और जीवन में उतारेंगे।
दैनिक जीवन के लिए उपयोगी
कबीर के संदेश दैनिक जीवन के लिए बेहद उपयोगी हैं। उनके दोहों में सीधे और सपाट शब्दों में जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया गया है। उसका पालन करने वाला कभी असफल नहीं हो सकता है। वे कहते हैं तिनका जैसी बेकार दिखती वस्तु की भी कभी निंदा नहीं करें। क्या पता कब वह उड़कर आंख में पड़ जाए और अत्यंत दुख देने लगे।
तिनका कबहुं ना निंदये, जो पांव तले होय।
कबहुं उड़ आंखो पड़े, पीर घानेरी होय।
शीघ्र फल की चाह रखने वाले को उनका संदेश है।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
कबीर कहते हैं कि आकार या दूसरे तरह से बड़े दिखने वाले बड़े नहीं होते। बड़े वे होते हैं जो दूसरे के काम आते हैं।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
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पोंगापथियों पर प्रहार
कबीर के दोहे में जीवन का अनुभव है। पोंगापंथियों पर भी उन्होंने खूब प्रहार किए हैं। साधु कैसे हों, इस पर उनकी सोच साफ थी।
साधू गांठ न बांधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब मांगे तब देय।
वे आगे कहते हैं-
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय।
मात्र माला फेरने वाले पर भी उन्होंने करारा प्रहार किया।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर।
सकारात्मक सोच के वे प्रबल समर्थक थे। उनका कहना था कि बुरा करने वाले का भी भला करें। भलाई लौटकर आपको मिलेगी।
जो तोको कांटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल।
धर्म व अध्यात्म का भी संदेश
कबीरदास के संदेश में धर्म व अध्यात्म का भी रहस्य निहित है। उनकी बताई राह पर चलें तो अध्यात्म के शिखर पर पहुंच सकते हैं।
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए सो जग शहनशाह।
शरीर, पद, पैसा और शक्ति का अहंकार करने वाले पर प्रहार।
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय।
मतलब के लिए पूजा-पाठ करने वाले को उन्होंने आड़े हाथों लिया था।
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद।
लोभ, मोह में फंसे लोगों पर उनकी राय।
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।
दुख में भगवान को याद करने वाले को सीख।
दु:ख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दु:ख काहे को होय।
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