कर्म ही भविष्य बनाता है, उससे कोई बच नहीं सकता

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जानिए सनातन परंपराओं के वैज्ञानिक तर्क
जानिए सनातन परंपराओं के वैज्ञानिक तर्क।

Karma creates future, no one can escape it : कर्म ही भविष्य बनाता है। उससे कोई बच नहीं सकता। यह ब्रह्मांड का नियम है। इससे ऊपर कोई नहीं है। इसे कोई तोड़ भी नहीं सकता, भगवान भी नहीं। रामायण में तुलसीदास जी ने लिखा है कि कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करहि सो तय फल चाखा। इसे दूसरे शब्दों में विधि का विधान भी कहते सकते हैं। प्रकारांतर में विज्ञान भी यही कहता है। न्यूटन का तीसरा नियम इसी पर आधारित है। उसके अनुसार हर कार्य के विपरीत समान प्रतिक्रिया होती है। मनुष्य का जीवन भी अपवाद नहीं है।

इसमें कोई अपवाद नहीं

मनुष्य पिछले जीवन के कर्मों के आधार पर ही नया जीवन लेता है। जन्म के साथ ही उसके जीवन की हर बड़ी बात निर्धारित रहती है। जन्म और मृत्यु का समय तक तय रहता है। यश-अपयश, लाभ-हानि, स्वास्थ्य, शरीर का आकार व रंग, परिवार, समाज, देश-स्थान आदि भी निर्धारित रहता है। चूंकि हम कर्म के लिए स्वतंत्र हैं। बस उसी आधार पर हम अपने फल में कुछ हद तक बदलाव कर सकते हैं। यही विधि का विधान है। तंत्र-मंत्र, पूजा-पाठ, दान, मेहनत आदि कर्म ही हैं। ये हमारे पहले के कर्मों के प्रभाव को कम या अधिक कर सकते हैं। उससे पूरी तरह से मुक्ति संभव नहीं है। रामकृष्ण परमहंस का उदाहरण लें। उन्होंने कई लोगों की समस्याएं दूर कीं। माता काली उन्हें दर्शन देती थीं और पुत्रवत स्नेह रखती थी पर उनकी अत्यंत तकलीफदेह मौत टल नहीं सकी। इसका कारण यही है कि कर्म ही भविष्य बनाता है।

ईश्वर भी नहीं बच पाते विधि के विधान से

कुछ उदाहरणों को देखें। आदि शक्ति माता सती की मृत्यु को कोई टाल नहीं सका। ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देवता वहां उपस्थित थे। उनकी मौत के सदमे ने महादेव को पागल सा बना दिया। लोग मौत से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र से उन्हीं की प्रार्थना करते हैं। वह भी माता को बचा नहीं सके। यह भी कह सकते हैं कि प्रकृति के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं किया। श्रीकृष्ण 16 कलाओं से युक्त थे। फिर भी जेल में जन्म हुआ। मां का दूध नहीं पी सके। उनके सामने ही पूरे कुल का नाश हो गया। वे द्रष्टा बने रहे। रावण ने तो ग्रह, नक्षत्र और देवताओं तक पर नियंत्रण कर लिया था। ज्योतिष, तंत्र-मंत्र समेत हर तरह के ज्ञान में असाधारण था। फिर भी होनी को टाल न सका। उसे पता था कि कर्म ही भविष्य बनाता है। उसे टालना संभव नहीं है।

होनी के समक्ष शुभ-अशुभ मुहूर्त भी बेकार

विधि के विधान के सामने मुहूर्त भी बेकार है। श्रीराम का विवाह और राज्याभिषेक दोनों अत्यंत शुभ मुहूर्त में तय हुआ था। महान ऋषियों ने उसे देखा था। फिर भी न उनका वैवाहिक जीवन सफल हुआ न ही राज्याभिषेक हो सका। बाद में भरत ने जब मुहूर्त पर सवाल उठाया तो महर्षि वशिष्ठ ने साफ पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने कहा कि विधि के विधान को बदला नहीं जा सकता है। रामायण की चौपाई देखें।

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।

लाभ हानि, जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ।

उम्मीद करता हूं कि आपने समझ लिया होगा कि कर्म ही भविष्य बनाता है। उसे पूरी तरह से टालना संभव नहीं है। हालांकि जैसा मैंने पहले ही लिखा है कि अभी के कर्म से पिछले कर्म के फल को कम या अधिक किया जा सकता है। तंत्र, मंत्र, पूजा, ग्रह शांति आदि भी कर्म के ही रूप हैं। इसकी सटीक जानकारी बहुत कम लोगों के पास है। यही कारण है कि अधिकतर क्रिया सफल नहीं हो पाते हैं।

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