छोटी सिद्धियों में कर्ण पिशाचिनी प्रमुख

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छोटी सिद्धियों में कर्ण पिशाचिनी प्रमुख
छोटी सिद्धियों में कर्ण पिशाचिनी प्रमुख।

Karna Pishachini is important in small accomplishments : छोटी सिद्धियों में कर्ण पिशाचिनी प्रमुख हैं। इसी तरह की साधना योगिनी, यक्षिणी, अप्सरा आदि भी हैं। इनमें सिद्धि शीघ्रता से मिलती है। भौतिक सुख की पर्याप्त संभावना रहती है। यह शीघ्र सिद्ध होने वाली साधना तो है लेकिन इसकी शक्ति तांत्रिक और वैदिक साधक की तुलना में कम है। उन दोनों माध्यम स साधना करने वाले अधिकतर साधक कोई चमत्कार तो नहीं दिखा सकते लेकिन छोटी सिद्धियां पाने वाले उनके आभामंडल को भेद नहीं पाते हैं। छोटी सिद्धि वाले उन्हें खास क्षति भी नहीं पहुंचा सकते हैं। फिर भी इसमें शक नहीं कि दुनिया चमत्कार को नमस्कार करती है। मेरा अनुभव है कि सिद्धि का सीमित, सात्विक और जनहित में उपयोग से खतरे को कम कर सकते हैं। हालांकि शक्ति आने के बाद यह कठिन होता है। क्योंकि साधक की इच्छाएं बढ़ने लगती हैं।

कर्ण पिशाचिनी में खतरा कम, जानें गुप्त बातें

इस तरह की अधिकतर  साधना में खतरा बहुत है। साधक कई बार इन शक्तियों को मां, बहन, पत्नी या मित्र के रूप में सिद्ध कर लेता है। ऐसे में सांसारिक जीवन में उस संबंध की हानि हो जाती है। ये शक्तियां कई बार अत्यंत रूपवती होकर साधक के समक्ष आती हैं। तब कई लोग मोहित होकर उनकी पत्नी रूप में कामना करने लगते हैं। यहीं से साधक का पतन होने लगता है। अतः इसमें भारी नुकसान का खतरा रहता है। कर्ण पिशाचिनी की साधना में जोखिम कम है। इनका प्रयोग भी सीमित रूप में होता है। ये साधक को उसकी इच्छा पर गुप्त बातें बता देती हैं। हालांकि उनमें मुख्य रूप से भूत और वर्तमान की ही सटीक जानकारी मिलती है। आय बढ़ाने में भी यह कारगर हैं। इसमें भविष्य की निश्चित जानकारी संभव नहीं है। उसके लिए ज्योतिष ही कारगर है।

तांत्रिक विधि अधिक प्रभावी, सात्विक में खतरा कम

छोटी सिद्धियों में कर्ण पिशाचिनी साधना की तांत्रिक विधि ज्यादा तेज और प्रभावी है। उसमें खतरा भी अधिक है। सामान्य जीवनचर्या से एकदम अलग होने के कारण इसे करना कई लोगों के लिए संभव नहीं होता। मेरी सलाह है कि इसे सात्विक विधि से ही सिद्ध करें। साथ ही उसका उपयोग भी अनिवार्य रूप से जन कल्याण में करें। यहां में साधकों की जानकारी के लिए दोनों मंत्र और विधि की जानकारी दूंगा। इसमें एक और बात को जानना आवश्यक है कि इसे एक बार सिद्ध करके ही छोड़ नहीं देना चाहिए। अन्यथा सिद्धि समाप्त हो जाती है। इसे सिद्ध करने के बाद भी प्रतिदिन जप करते रहना पड़ता है। एक बार सिद्धि समाप्त हुई तो उसे फिर पाने के लिए दुगुना जप करना पड़ेगा। इसे एक उदाहरण से समझें। जैसे- पहली सिद्धि दस हजार जप में मिली तो अगली बार बीस हजार जप करना होगा।

सात्विक विधि से करें साधना

कर्ण पिशाचिनी की यह विधि सात्विक और सरल है। इसमें रात्रि में कर्ण पिशाचिनी का माता भाव में धूप, दीप और नैवेद्य से सामान्य पूजा करें। फिर 11 माला जप करें। यह साधना आमतौर पर 11 दिन की होती है। प्रतिदिन 11-11 माला जप करना होता है। मंत्र—

ऊं नमो भगवती कर्ण पिशाचिनी देवि अग्रे छागेश्वरि सत्यवादिनी सत्यं दर्शय दर्शय शिव प्रसन्नमुद्रा व्यंतर्याकोपिनभर्त मम कर्णे कथय कथय हरये नमः।

मंत्र सिद्ध होने के बाद भी कम से कम एक माला नित्य जप करें। साल में एक बार जिस तिथि को सिद्ध किया या शुरुआत की है, उस दिन 11 माला जप कर लें। जब प्रश्न पूछना हो तो माता का ध्यान करें। सिद्धि प्रबल है तो वह कान में तत्काल जवाब देंगी। अन्यथा रात में 108 बार मंत्र जप कर सो जाएं। स्वप्न में आपको उत्तर मिलेगा। छोटी सिद्धियों में कर्ण पिशाचिनी अत्यंत प्रभावी हैं। अब पढ़ें तांत्रिक विधि।

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प्रभावी फल पाने के लिए तांत्रिक विधि

यह अधिक प्रभावी विधि है। कई बार लोग उन्हें मां, बहन, पत्नी या मित्र रूप में बना लेते हैं। इनका कुछ मंत्र नीचे दे रहा हूं। पहले को सिद्ध कर वेदव्यास अल्पकाल में ही सर्वज्ञ हो गए थे। इसमें तांत्रिक विधि से पूजा कर नित्य रात्रि में 11 माला जप करें। मंत्र—

1-ऊं कर्ण पिशाचि वदातीता नागतं ह्रीं स्वाहा।

2-ऊं कर्ण पिशाचि में कर्णे कथय हूं फट स्वाहा।  

रात्रि में दीपक का तेल पैरों में मलकर एक लाख जप करें। इसमें अन्य कोई विधान या पूजा की आवश्यकता नहीं है।

3-(अ) ऊं अनविंदे स्वाहा

(ब) ऊं अनविंदे कर्णपिशाचि स्वाहा

इससे भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों की जानकारी मिलती है। इसे 21 दिन तक रात्रि में जप करना है। प्रतिदिन दस हजार जप से मंत्र सिद्ध होता है। प्रयोग विधि सात्विक मंत्र की तरह ही है। कुछ कठिन और खतरनाक प्रयोग भी हैं। मैंने उसे नहीं दिया है।

पहले गुरु की अनुमति और आशीष लें

आशा है कि छोटी सिद्धियों में कर्ण पिशाचिनी साधना के बारे में सामान्य जानकारी आपको मिल गई है। कुछ शीघ्र और अधिक फल देने वाले प्रयोग हैं। उनमें खतरा बहुत अधिक है। उन्हें बिना योग्य गुरु की उपस्थिति के नहीं करना चाहिए। अन्यथा जीवन खतरे में पड़ जाएगा। वैसी साधना में कई बार संबंधित शक्ति तरह-तरह की बाधा उत्पन्न करती हैं। कई बार भय और प्रलोभन से साधक की कड़ी परीक्षा लेती हैं। अतः उसके बारे में गुरु से ही जानना और प्रयोग करना उचित होगा। ऊपर के मंत्र को योग्य साधक गुरु की अनुमति और आशीर्वाद से स्वयं भी कर सकते हैं। यह भी ध्यान रखें कि यह साधना पूजा स्थान में नहीं होगी। वहां इस तरह की शक्तियों का प्रवेश कठिन होता है। इसके लिए एकांत कक्ष, श्मशान, वन, पीपल के नीचे आदि उपयुक्त स्थान हैं। साधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।

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