हवन कुंड और नियमों को जानें, तभी मिलेगा पूरा फल

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हवन कुंड और नियमों को जानें, तभी मिलेगा पूरा फल
हवन कुंड और नियमों को जानें, तभी मिलेगा पूरा फल

Know about havan kund and the rules, then only you will get achieve target : हवन कुंड और नियमों को जानें तभी मिलेगा पूरा फल। यह तो सर्वविदित है कि धार्मिक कृत्य में हवन का अति विशेष महत्व है। विशेष रूप से संस्कार, पूजा, अनुष्ठान में यह आवश्यक माना जाता है। कोई भी अनुष्ठान इसके बिना पूर्ण नहीं होता है। इसलिए लोग खूब हवन करते भी हैं। लेकिन अधिकतर लोग इसकी विधि से अंजान होते हैं। इसलिए समय, धन और श्रम खर्च करने के बाद भी उन्हें या तो फल नहीं मिलता या कम मिलता है। इसका कारण है कि हवन के माध्यम से ही देवी-देवताओं तक आहुतियां पहुंचती हैं। इससे वे तृप्त होते हैं और कार्य सिद्ध करते हैं। इसलिए धर्मग्रंथों में कहा गया है कि अग्निर्वे देवानां दूतं। यह तो हुई हवन की आवश्यकता और उपयोगिता। नीचे मैं उसकी विधि और हवन कुंड की संक्षिप्त जानकारी दूंगा।

दो तरह के होते हैं हवन, भूमि का चयन अहम

हवन दो प्रकार के होते हैं। वे हैं- वैदिक और तांत्रिक हवन। दोनों के लिए नियम में थोड़ा अंतर है। फिर भी दोनों में उचित स्थान पर उत्तम भूमि का चयन आवश्यक होता है। साथ ही हवन कुंड की भूमि और वेदी का निर्माण भी अहम है। वेदी और कुंड को मंडल भी कहा जाता है। इसके कई प्रकार हैं। कुछ वर्गाकार होते हैं। कुछ कुंड त्रिकोण या अष्टकोण भी होता है। भूमि के चयन में भी सतर्क रहना आवश्यक है। सबसे अच्छी भूमि नदी तट, मंदिर, पर्वत की मानी जाती है। उसकी मिट्टी साफ-सुथरी और अच्छी होनी चाहिए। दरार वाली, उसर, सांप आदि की बांबी, जहां गंदगी हो, उस भूमि को खराब माना जाता है। हवन करने सिर्फ धार्मिक ही नहीं, भौतिक फायदे भी हैं। इससे नकारात्मक स्थिति दूर होती है। रोग-शोक वाली स्थिति नष्ट होती है। आसपास का वातावरण शुद्ध होता है।

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जानें हवन कुंड की बनावट

वैदिक हवन कुंड का आकार आहुतियों की संख्या के आधार पर होता है। हवन कुंड और नियमों के तहत 50 से 100 आहुतियों वाले कुंड का आकार तीन इंच से एक फुट तक होगा। 1000 आहुतियों के लिए डेढ़ और एक लाख के लिए छह फुट का हवन कुंड होगा। यही क्रम उससे अधिक के लिए होगा। हवन कुंड में तीन सीढ़ियां होती हैं। उन्हें मेखला कहा जाता है। तीनों सीढ़ियों का रंग अलग होता है। उसके अलग देवता हैं। पहली सीढ़ी का रंग सफेद होता है। उसमें भगवान विष्णु का वास होता है। दूसरी का लाल रंग का होता है। उसमें ब्रह्मा जी का निवास होता है। अंतिम पर शिव का माना जाता है। उसका रंग काला होता है। यह भी जानें कि हवन के दौरान कुंड के बाहर गिरी सामग्री को कुंड में न डालें। सिर्फ सीढ़ियों पर गिरी सामग्री को डालें।

विकल्प भी उपलब्ध, तांत्रिक हवन कुंड में यंत्रों का प्रयोग

उपरोक्त नियमानुसार यदि कुंड बनाने में असमर्थ हैं तो शास्त्रों में विकल्प भी है। तांत्रिक हवन कुंड में कुछ यंत्रों का प्रयोग होता है। वह आमतौर पर त्रिकोण होता है। आज की जीवनशैली में उचित भूमि या स्थान ढूंढना कठिन है। ऐसे में वैकल्पिक हवन कुंड बनाएं। यह कूंड भूमि से एक से चार अंगुल ऊंचा होना चाहिए। पीली मिट्टी या रेत का प्रयोग कर सकते हैं। यह भी न मिले तो तांबे या पीतल के कुंड का प्रयोग करें। इन धातुओं के हवन कुंड का मुख ऊपर से चौड़े व नीचे छोटे होते हैं। कुंड में किसी भी मानक का पालन नहीं करने पर जातक को रोग व शोक की बाधा होने का खतरा रहता है। दोनों तरह के हवन में मृगि मुद्रा का इस्तेमाल करें। आशा है कि आपने हवन कुंड और नियमों को समझ लिया। अगले सप्ताह मैं इससे संबंधित विशेष जानकारी दूंगा।

क्रमशः

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