शुक्र, शनि, राहु और केतु हो जाएंगे अनुकूल

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शुक्र, शनि, राहु और केतु हो जाएंगे अनुकूल
जानें शुक्र, शनि, राहु और केतु कैसे होंगे अनुकूल

Venus, Saturn, Rahu, Ketu : बिना जन्मकुंडली और योग्य ज्योतिषी के खुद जानें ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति। जीवन में आ रही समस्याओं के आधार पर खुद प्रतिकूल ग्रहों की दशा जानने के क्रम में आलेख की अंतिम कड़ी में इस बार शुक्र, शनि, राहु और केतु के प्रतिकूल प्रभाव से निपटने की जानकारी दे रहा हूं। खुद समस्याओं के आधार पर नाममात्र के खर्च और आसान तरीके से इन ग्रहों को अनुकूल बना सकते हैं और समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।

प्रतिकूल शुक्र से भौतिक सुखों में कमी

यदि जन्मकुंडली में शुक्र प्रतिकूल स्थिति में है तो ऐसे जातक के भौतिक सुख में कमी होती है। उसके अंगूठे में दर्द बना रहता है। राह चलते समय अगूंठे को चोट पहुँच सकती है। चर्म रोग हो जाता है और स्वप्न दोष की भी शिकायत रहती है।

उपाय : यदि ऐसा है को स्वयं के भोजन में से निकालकर गाय को प्रतिदिन कुछ हिस्सा अवश्य दें। ज्वार दान करें। नि:सहाय, निराश्रय के पालन-पोषण का जिम्मा लें सकें तो ज्यादा फायदा होगा। सुगंधित इत्र का उपयोग करें और सदैव साफ-सुथरे कपड़े पहनें।

कौवे को रोटी खिलाने से शनि होते हैं शांत

मकान या मकान का हिस्सा गिर जाए या क्षतिग्रस्त हो जाए। शरीर के अंगों के बाल झड़ जाएं। काले धन या संपत्ति का नाश हो जाए तो समझ जाइए कि कुंडली में शनि के अशुभ भाव में बैठे हैं। यदि ऐसा है तो घर में अचानक आग लग सकती है या जातक किसी तरह की दुर्घटना का शिकार हो सकता है। उसके दैनिक कार्यों में बाधा आने लगेगी और उसे पूरा होने में विलंब होगा। इसके साथ ही नौकरों और अपने नीचे काम करने वाले सहयोगियों से भी विवाद होगा।

उपाय : कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। तेल में अपना मुख देख उस तेल को दान कर दें। लोहा, काला उड़द, चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें। बहुत ज्यादा कष्ट हो तो कांच की शीशी में काजल भर कर श्मशान भूमि में गाड़ दें। यदि आपके पास कुंडली है तो देखें कि यदि शनि लग्न में हो तो भिखारी को तांबे का सिक्का या बर्तन कभी न दें। यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा। यदि शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो धर्मशाला आदि न बनवाएं। उसका प्रतिकूल फल मिलेगा।

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राहु अशुभ हो तो अचानक बढ़ने लगती है परेशानी

कुंडली में राहु अशुभ भाव में बैठा हो तो हाथ के नाखून अपने आप टूटने लगते हैं। राजक्ष्यमा रोग के लक्षण प्रगट होते हैं। दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है तथा भूलने की बीमारी हो जाती है। शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने का खतरा रहता है। इसके साथ ही अचानक आने वाली समस्याओं से परेशानी बढ़ने लगती है। बवासीर और भगंदर जैसे रोग भी पीड़ित करने लगते हैं।

उपाय : जौ को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएं (43 दिन लगातर)। कोयले को पानी में बहाएं।  मूली का दान करें तथा गंदगी साफ करने वाले को शराब और मांस दान में दें। सिर में चोटी बांधकर रखें। शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करें। इतना करने से निश्चय ही लाभ होगा और समस्याएं दूर होंगी।

किडनी में समस्या व आलस्य हावी हो तो केतु अशुभ

जोड़ों का रोग या मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग हो जाए। संतान को अक्सर पीड़ा होती रहे। मन में बुरे-बुरे विचार आने लगे। आलस्य के कारण किसी भी कार्य में मन न लगे और पूजा-पाठ में अरुचि होने लगे तो निश्चय जानिए कि आपकी कुंडली में केतु अशुभ भाव में बैठे हैं।

उपाय : कान छिदवाएं। अपने खाने में से कुत्ते को एक भाग अवश्य दें। तिल व कपिला गाय दान में दें। काला और सफेद तिल मिलाकर जल में डाल कर शिव लिंग का अभिषेक करें। इससे राहत मिलेगी।

(अंतिम कड़ी में आपने जाना शुक्र, शनि, राहु और केतु के प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के उपाय।)

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-आचार्य वैकुंठनाथ झा

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