श्राद्ध करने के लाभ जानिए, ऐसे मिलता है पितरों को भोजन

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श्राद्ध करने के लाभ जानिए, ऐसे मिलता है पितरों को भोजन
श्राद्ध करने के लाभ जानिए, ऐसे मिलता है पितरों को भोजन।

Know the benefits of Shraddha, how ancestors get food : श्राद्ध करने के लाभ जानिए, ऐसे मिलता है पितरों को भोजन। आज कई लोग श्राद्ध को संशय की दृष्टि से देखते हैं। उन्हें यह सब पाखंड प्रतीत होता है। जो करते भी हैं, उनमें निपटाने का भाव अधिक होता है। श्रद्धा नहीं होती है। जबकि बिना श्रद्धा के श्राद्ध बेकार है। कुछ यह भी तर्क करते हैं कि जब प्राणी के शरीर में निहित आत्मा अपने कर्म के अनुसार फल प्राप्त करती है तो फिर श्राद्ध आदि कर्मों का क्या अर्थ है? यह ढकोसला तो नहीं है? यह संदेह निर्मूल है। वस्तुतः श्राद्ध पूरी तरह प्रकृति की शक्ति और सकारात्मकता के विज्ञान से जुड़ा हुआ है। स्कंद पुराण में इसकी बहुत अच्छी व्याख्या की गई है। लगभग सभी शंकाओं का समाधान किया गया है। आने वाले पितृ पक्ष को देखते हुए इसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है।

कैसे मिलती हैं पितरों को समर्पित वस्तुएं

श्राद्ध के प्रति लोगों में दो शंका सबसे अधिक होती हैं। इनमें पहली हैं कि पितरों को पिंड, जल या किसी अन्य रूप में वस्तुएं समर्पित की जाती हैं। पितर शरीर त्याग कर जा चुके हैं। उन्हें समर्पित वस्तुएं तो यहीं रह जाती हैं फिर वे उन्हें प्राप्त कैसे होती हैं? स्कंध पुराण में इसके बारे में जानकारी है। राजा करंधम के प्रश्न पर महाकाल ने सुंदर उत्तर दिया है। उन्होंने बताया कि विश्व नियंता की व्यवस्था है कि पितरों को समर्पित सामग्री उनके अनुरूप होकर पहुंचती हैं। मनुष्य का शरीर पंच भूतों से बना है, तो पितर मन, बुद्धि, अहंकार, प्रकृति एवं परमात्मा के प्रत्यक्ष अंश सहित 10 तत्व से बने हैं। इसलिए देवता की तरह वे गंध, रस, शब्द, स्पर्श और भाव के माध्यम से ग्रहण कर लेते हैं। दूर से की पूजा व स्तुतियों से प्रसन्न हो जाते हैं। इस व्यवस्था के अधिपति अग्निष्वात आदि हैं।

कर्म और उसके फल का सिद्धांत अटल

यह सत्य है कि जीव और आत्मा को कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। इससे वह बच नहीं सकता है। श्राद्ध करने के लाभ का इससे कोई संबंध नहीं है। श्राद्ध और तर्पण से आत्मा अपने कर्मों के अनुरूप जिस लोक और जिस रूप में रहती है, उसमें उसे थोड़ी तृप्ति मिलती है। पिंडदान से उसकी गति थोड़ी ऊपर की तरह हो जाती है। प्रकृति के कार्यकारिणी नियम की तहत इस कार्य का लाभ पितर के साथ ही उसे करने वाले तक भी सकारात्मकता की शक्ति के रूप में लौट कर आता है। उसके कई दोष कम होते हैं। बाधाओं में कमी आती है और जीवन सुचारु बन जाता है। जीव को उसके कर्म के अनुरूप देवता, गंधर्व, राक्षस, मनुष्य, पशु, प्रेत आदि योनि निःसंदेह मिलती है। उसे उस योनि में कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। नीचे पढ़ें कि पितर कैसे तृप्त होते हैं?

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ऐसे पहुंचता है पितरों को आहार

पितरों का आहार अन्न-जल का सार तत्व है। सार तत्व का अर्थ गंध और रस से है। यही कारण है कि स्थूल वस्तु भले यहीं रह जाए, सार तत्व उन तक पहुंच जाता है। श्रद्धापूर्वक नाम, गोत्र आदि के उच्चारण के साथ पितरों को जो वस्तु समर्पित की जाती है, वह उन्हें उनकी योनि के अनुरूप भोग बनकर प्राप्त होती है। यह पितरों को तपते रेगिस्तान में ठंडी फुहार की तरह तात्कालिक तृप्ति देती है। वे प्रसन्न हों अपने वंशज को आत्मा से आशीर्वाद देते हैं। जैसे बछड़ा सैकड़ों गायों के झुंड में अपनी मां को पहचान जाता है। पितरों के निमित्त दी गई वस्तु भी भाव, नाम, गोत्र आदि के सहारे कई योनि के पार होने पर भी पितर को ढूंढ लेती है। और उन्हें तृप्ति देती है। यम स्मृति के अनुसार वंश वृद्धि के लिए पितरों की प्रार्थना से अधिक प्रभावी व फलदायी और कुछ नहीं है।

चेतना जाग्रत हो तो पितर को अनुभव कर सकते हैं

श्राद्ध करने के लाभ को स्वयं अनुभव कर सकते हैं। इसके लिए आपकी चेतना का जाग्रत होना आवश्यक है। मेरी ऐसे कई लोगों से बातचीत हुई है जिन्होंने श्राद्ध में पितर को प्रत्यक्ष अनुभव किया है। इस बारे में एक प्राचीन कथा भी है। श्रीराम पुष्कर में दशरथ जी का श्राद्ध कर रहे थे। जब वे ब्राह्मणों को भोजन कराने लगी तो माता सीता वृक्ष के ओट में खड़ी हो गईं। ब्राह्मण भोजन के बाद श्रीराम ने उनसे इसका कारण पूछा। माता सीता ने बताया कि जब आप नाम-गोत्र से अपने पिता, दादा आदि का आवाहन कर रहे थे तो वे मुझे आश्चर्यजनक दृश्य दिखा। सारे श्वसुर समेत आवाहन किए गए सारे पितर छाया रूप में ब्रह्मणों से सटे खड़े नजर आए। अपने श्वसुर आदि पितरों के समक्ष मैं भला मर्यादा उल्लंघन कर खड़ी कैसे रह सकती थी? यही कारण है कि वृक्ष के ओट में चली गई।

श्राद्ध के लाभ

यम स्मृति के श्राद्धप्रकास में यमराज ने स्वयं श्राद्ध के लाभ बताए हैं। उन्होंने वंश विस्तार के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ माना है। साथ ही कहा है कि इसे करने वाले मनुष्य की आयु बढ़ती है। परिवार में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। शरीर में पौरुष बल की वृद्धि होती है। यश बढ़ता है। उत्तम स्वास्थ्य, धन, सुख, स्वर्ग आदि की प्राप्ति होती है। परिवार में कभी क्लेश नहीं होता। मेरा निजी अनुभव भी है कि यदि जन्मकुंडली में पितृ दोष हो तो श्राद्ध और पिंडदान से उससे मुक्ति मिल जाती है। गुरु समेत कई अन्य दोषों में भी कमी आती है। मैंने कई जातकों को इसका सफल प्रयोग कराया है। उन्हें भरपूर लाभ मिला है। इस अनुभव को देखते हुए कई लोगों ने दिनचर्या में ही पितरों को तर्पण को शामिल कर लिया है। चंद मिनट का यह कार्य जीवन को सफल कर देता है।

संदर्भ-स्कंद पुराण, यम स्मृति।

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