Know the mystery of the dome of temple : जानें मंदिरों पर क्यों होता है गुंबद, क्या है इसका रहस्य? कभी आपने सोचा कि मंदिरों की छत सपाट क्यों नहीं होती है? वह गुंबदनुमा सी ही क्यों होती हैं? उस गुंबदनुमा हिस्से को शिखर भी कहा जाता है। प्रश्न यह है कि मंदिरों की छतों को इस प्रकार से क्यों बनाया जाता है? क्या इसके पीछे कोई ठोस कारण है? आइए उस पर विस्तार से चर्चा करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार देश में मंदिर निर्माण की शैलियां प्रचलित हैं। ये हैं- उत्तर भारत की नागर शैली व दक्षिण भारत की द्रविड़ शैली। पहले में मंदिर के ऊपरी हिस्से को शिखर कहते हैं। द्रविड़ शैली के मंदिरों में इसको विमान कहते हैं। इसमें विमान के ऊपर पत्थर सा रखा होता है। नागर शैली में सबसे ऊपर कलश होता है। इसके अलावा इनसे मिलती-जुलती कुछ और मंदिर निर्माण शैलियां भी हैं।
मंदिर की छत को नुकीली बनाने का कारण
आध्यात्मिक दृष्टि से बात करें तो ब्रह्मांड एक बिंदु के रूप में है। अतः मंदिर का शिखर एक बिंदु के रूप में होता है। उससे वह ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को संचित कर नीचे प्रवाहित करता है। विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि अंदर से खोखला इस तरह का आकार बनाने से उस खाली स्थान में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार एकत्रित होता है। यदि कोई मनुष्य इस ऊर्जा केंद्र के नीचे आता है तो उसे भी सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इसमें आवश्यक नहीं कि सामने भगवान की प्रतिमा हो। यदि सामने इष्टदेव की प्रतिमा हो तो सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव मानसिक रूप से कई गुना बढ़ जाता है। दूसरा प्रमुख कारण यह है कि ऐसी आकृति में सूर्य की किरणों की गर्मी उसे प्रभावित नहीं कर पाती और बाहर अधिक तापमान होने के बावजूद अंदर ठंडा रहता है। इससे आराम के साथ एकाग्रता हो पाती है।
शिखर के कुछ अन्य कारण
जानें मंदिरों पर क्यों होता है गुंबद में अब कुछ अन्य कारणों पर भी चर्चा। शिखर के कारण मंदिर को दूर से पहचाना जाता है। चूंकि नीचे भगवान की प्रतिमा होती है। अतः ऊपर ऐसी आकृति के कारण कोई भी व्यक्ति उस पर खड़ा नहीं हो सकता। मंदिर का वास्तुशिल्प ऐसा है, जिससे वहां पवित्रता, शांति और दिव्यता बनी रहती है। मंदिर की छत ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर भी बनाई जाती है। शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे मूर्ति स्थापित होती है। शिखर के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रों के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती हैं तथा वहां उपस्थित व्यक्ति को प्रभावित करती है। शिखर और मूर्ति का केंद्र एक ही होने से मूर्ति में निरंतर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है। जब हम उस मूर्ति को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं तो हमारे अंदर भी वह ऊर्जा प्रवेश करती है।
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