Know the scientific logic of Hindu traditions : जानिए सनातन परंपराओं के वैज्ञानिक तर्क। ये परंपराएं हमारी उन्नत जीवनशैली के प्रमाण हैं। इससे पता चलता है कि भारत क्यों और कैसे विश्व गुरु रहा है। यह सही है कि विदेशी आक्रमणकारियों के कारण इसमें कई कुप्रथाएं आ गई हैं। इसे लेकर तथाकथित बुद्धिजीवी भी इसे खारिज करने का कोई मौका नहीं चूकते है। सच यह है कि मूल परंपराएं मानवीय और वैज्ञानिक कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती हैं। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तक चलने वाली इन परंपराओं के ठोस वैज्ञानिक आधार हैं। त्रिकालदर्शी ऋषियों ने गहन शोध के बाद इन परंपराओं की स्थापना की है। हर परंपरा के ठोस कारण हैं और हमारे लिए उनके विशेष अर्थ भी हैं। उनका हम पर सीधा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनकी अवहेलना नुकसानदेह है। इस लेख में मैं कुछ प्रमुख परंपराओं और उनके कारणों पर प्रकाश डालूंगा।
अभिवादन का हमारा तरीका सर्वश्रेष्ठ
विभिन्न देशों में अभिवादन के लिए हाथ मिलाना, गले मिलना आदि परंपरा है। कोरोना काल ने विश्व को समझा दिया है कि किसी अनजान व्यक्ति का स्पर्श असुरक्षित है। सनातन परंपरा में औपचारिक मुलाकात में दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन किया जाता है। यदि सामने वाला परिचित और श्रेष्ठ है तो चरण स्पर्श किया जाता है। अति सम्माननीय को दंडवत प्रणाम करते हैं। यह दोनों विधि वैज्ञानिक और तर्कसंगत हैं। दोनों हाथ जोड़ने से सभी उंगलियों के पोरों पर हल्का दबाव पड़ता है जो आंख, कान और दिमाग के तंतु को सक्रिय करते हैं। इससे हम सामने वाले को अधिक समय तक याद रख पाते हैं। वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि शरीर में सिर से पैर तक ऊर्जा का संचार होता रहता है। चरण स्पर्श में श्रेष्ठजन के पैर का स्पर्श करने से उनकी सकारात्मक ऊर्जा हाथों के पोर से शरीर में प्रवेश करती है।
माथे पर तिलक लगाना
जानिए सनातन परंपराओं के वैज्ञानिक तर्क में अब तिलक लगाने के बारे में। धार्मिक अनुष्ठानों में माथे पर तिलक लगाने की परंपरा है। यह शुभ माना जाता है। इसके लिए कुमकुम या सिंदूर का उपयोग किया जाता है। सुहागन महिलाओं के लिए तो कुमकुम सुहाग और सौंदर्य के प्रतीक के रूप में जीवन का अभिन्न अंग है। इसके भी सशक्त वैज्ञानिक कारण हैं। मानव शरीर में आंखों के मध्य से लेकर माथे तक एक नस होती है। जब भी माथे पर तिलक या कुमकुम लगाया जाता है, उस नस पर दबाव पड़ता है। इससे वह अधिक सक्रिय हो जाती है। फिर पूरे चेहरे की मांसपेशियों तक रक्त संचार बेहतर तरीके से होता है। इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। महिलाएं जो सिंदूर लगाती हैं, उसमें हल्दी, चूना एवं पारा होता है, जो रक्तचाप को नियंत्रित करता है।
सूर्य नमस्कार और तुलसी पूजन
वैज्ञानिक मान चुके हैं कि पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है। उसकी रोशनी सभी प्राणियों, यहां तक कि वनस्पतियों के लिए भी आवश्यक है। ऋषि इसे जानते थे, इसलिए उन्हें कृतज्ञता ज्ञापित कर उनकी सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए उन्हें नमस्कार करने की परंपरा प्रारंभ की। इसके साथ ही सूर्य को अर्घ्य देने से जल के माध्यम से पार होकर आने वाली उसकी किरणें भी स्वास्थ्य को बेहतर बनाती हैं। तुलसी पौधे की उपयोगिता अब सर्वविदित है। उसकी पत्तियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता है तो उससे निकलने वाली प्राण वायु मनुष्य ही नहीं आसपास के वातावरण को भी शुद्ध बनाती है। इसी कारण तुलसी के पौधे को घर में रखने, उन्हें जल, धूप, दीप आदि चढ़ाने का विधान बनाया गया है। जानिए सनातन परंपराओं के वैज्ञानिक तर्क में आपने कुछ परंपराओं के बारे में जाना। आगे कुछ और परंपराओं के बारे में जानें।
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कान छिदवाने और सिर पर चोटी रखने के कारण
कान छिदवाना हिंदुओं की प्रमुख परंपरा है। चिकित्सा शोध से सिद्ध हो चुका है कि कान से दिमाग तक सीधी नसें हैं। कान छिदवाने से इस नस का रक्त संचार तीव्र और बेहतर होता है। इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है और दिमाग शांत रहता है। मान्यता है कि इसका सकारात्मक प्रभाव मनुष्य के बोलने की शक्ति पर भी पड़ता है। इससे उसकी स्पष्ट उच्चारण करने की क्षमता बढ़ती है। इसी तरह मस्तिष्क पर चोटी रखने के भी ठोस कारण हैं। सिर में चोटी का स्थान अति संवेदनशील होता है। परंपरा के अनुसार चोटी वाले स्थानों पर बालों का बड़ा गुच्छा बांधकर रखा जाता है। बालों का बड़ा गुच्छा मस्तिष्क के उस हिस्से को सर्दी, गर्मी और सामान्य चोटों से बचाता है। इसके साथ ही वह गुच्छा थोड़ा खिंचाव पैदा कर वहां की नसों पर दबाव बढ़ता है। इससे वह अधिक सक्रिय होकर दिमाग को शांत रखता है।
दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोने व व्रत करने की परंपरा
दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोने के भी वैज्ञानिक कारण हैं। पृथ्वी की चुबंकीय तरंगें दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं। शरीर की अपनी तरंगें सिर से पैर की ओर प्रवाहित होती हैं। अतः दक्षिण की ओर से सिर रखने पर वह सिर से होकर पैर से निकल जाती हैं। इससे शरीर सुरक्षित और सक्रिय रहता है। उस दिशा में पैर रखने पर दोनों तरंगों में टकराव होता है। इसमें शरीर में मौजूद लौह तत्व दिमाग की ओर प्रवाहित होने लगता है। इससे रक्तचाप बढ़ने के साथ ही मानसिक समस्या होने का खतरा रहता है। सनातन परंपरा में व्रत रखने का बहुत महत्व है। व्रत शरीर और मन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए लाभकारी है। इससे पाचन क्रिया बेहतर होती है। फलाहार से शरीर के हानिकारक तत्व बाहर निकल जाते हैं। इससे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है।
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