Know what is Ghost and how to get rid of it : जानें क्या है भूत (प्रेत) और कैसे पाएं इससे मुक्ति। जिसका न कोई वर्तमान हो और न भविष्य, वही भूत है। भूत का अर्थ है अतीत। इसके विपरीत मनुष्य जीवन सदा वर्तमान है। जो वर्तमान है वह भविष्य की ओर कदम बढ़ाता है। अच्छा भविष्य मुक्ति की ओर ले जाता है। दूसरी ओर अतीत में अटकी आत्मा भूत बन जाती है। आत्मा के तीन स्वरूप हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। भौतिक शरीर में वास करने वाली को जीवात्मा कहते हैं। वासना और कामना से भरे शरीर में निवास करने वाली आत्मा मनुष्य की मृत्यु के बाद प्रेतात्मा बनती है। अर्थात अतृप्त वासना वाली आत्मा प्रेतात्मा कहलाती है। जीवात्मा पंचतत्व युक्त शरीर में वास करती है, जबकि प्रेतात्मा में वायु तत्व की प्रधानता होती है। जब आत्मा सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करती है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।
अतृप्त आत्माएं बनती हैं भूत
अतृप्त इच्छाओं से भरे मनुष्य की जब मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा प्रेत योनि में जाकर भूत बन जाती है। दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या या किसी अन्य कारणों से अकाल मृत्यु के शिकार लोगों की आत्मा भी भूत बन जाती है। ये अपनी इच्छा तृप्ति के लिए भटकती रहती है लेकिन अपने प्रयास से तृप्त नहीं हो पाती है। श्रीमद्भागवत पुराण में धुंधकारी के प्रेत बनने की कथा है। श्राद्ध और तर्पण से अतृप्त आत्मा को राहत मिलती है। तृप्त आत्मा उर्ध्वगति को प्राप्त करती है। जब उनकी संतति ठीक से श्राद्ध व तर्पण नहीं करती तो भूत की परेशानी बढ़ जाती है। ऐसे ही पितरों का दोष उनकी संतति पर भारी पड़ती है। भूतों को खाने-पीने की इच्छा अधिक रहती है। वे दुखी और चिड़चिड़े होते हैं। वे इस खोज में भटकते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। गरुड़ पुराण में इसका विस्तार से वर्णन है।
भूतों के प्रकार
जानें क्या है भूत में अब बात इसके प्रकार की। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के कर्म के आधार पर मरने वाली आत्मा की स्थिति निर्धारित होती है। अर्थात कर्म के अनुसार उसके उप भेद बनते हैं। मोटे तौर पर उन्हें भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्म राक्षस, चुड़ैल आदि कहा जाता है। इनके 18 प्रकार हैं। इन सभी की उत्पत्ति अपने पापों, दुवृत्तियों, अकाल मृत्यु या श्राद्ध न होने के कारण होती है। इनमें भूत सबसे शुरुआती पद है। अर्थात जब कोई आम मनुष्य मरता है तो सर्वप्रथम भूत बनता है। प्रारंभ में उसमें कोई शक्ति नहीं होती है। हालांकि प्रेत योनि में जाने वाले अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। सभी आत्मा इस योनि में नहीं जाती। हां, सभी आत्माएं अदृश्य अवश्य होती हैं। मनुष्य कर्म के अनुसार उसकी आत्मा की गति तय होती है। बहुत सी आत्मा प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बनती हैं।
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अच्छे और बुरे भूत
मनुष्य के कर्म और इच्छा के अनुसार उसकी आत्मा को अच्छा और बुरा भूत माना जाता है। आमतौर पर अच्छी आत्मा पितृ लोक में और बुरी आत्मा प्रेत लोक में रहती हैं। शास्त्रों के अनुसार तिथि और पवित्रता की अवहेलना करने वाले का आधार कमजोर हो जाता है। ईश्वर, देवता व गुरु का अपमान करने व कर्तव्य पालन नहीं करने तथा पाप कर्म करने वाले की स्थिति कमजोर होती है। इनके साथ ही नकारात्मक विचारों वाले भी भूत-प्रेत के आसान शिकार बनते हैं। कमजोर मानसिक शक्ति वाले भी भूतों के चक्कर में फंसते हैं। सनातन धर्म में रात्रि में धार्मिक और मांगलिक कार्यों पर रोक है। ऐसे समय में मांगलिक और धार्मिक कार्य करने वाले भी भूतों के आसान शिकार होते हैं। तांत्रिक रात्रि में अनुष्ठान करते समय पहले रक्षा चक्र बनाकर सुरक्षित हो जाते हैं। अब जानें क्या है भूत की शक्ति और कैसे पाएं इनसे मुक्ति।
भूत की स्थिति और मुक्ति के उपाय
सामान्य भूतों में कोई विशेष शक्ति नहीं होती है। वे हवा के झोंके की तरह होते हैं। कुछ में स्पर्श की शक्ति होती है। वे देहधारी होने और असाध्य कार्य कर पाने में सक्षम होते हैं। उनकी सबसे बड़ी शक्ति मानसिक होती है। इसके बल पर वे मनुष्य के मस्तिष्क को प्रभावित कर उससे कुछ भी करा लेते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर का इच्छानुसार उपयोग कर लेते हैं। कृष्ण पक्ष इन्हें प्रिय है। त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या के दिन ये अधिक मजबूत होते हैं। काफी समय से सूने पड़े घर, खंडहर, वन आदि इनके प्रिय स्थान हैं। वायु तत्व की प्रधानता होने के कारण इन पर भौतिक अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं होता है। भूतों को अधिक शोर, तेज प्रकाश, यंत्र, मंत्र, तंत्र और मजबूत आत्मबल से दूर रखा जा सकता है। यदि ये उपाय शुक्ल पक्ष में किए जाएं तो अधिक अच्छा परिणाम मिलता है।
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