शिवलिंग पर लगाने वाले गोमय भस्म बनाने की विधि जानें

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शिवलिंग पर लगाने वाले गोमय भस्म बनाने की विधि जानें
शिवलिंग पर लगाने वाले गोमय भस्म बनाने की विधि जानें।

Learn to make Gomaya Bhasma to applied on Shivling : शिवलिंग पर लगाने वाले गोमय भस्म बनाने की विधि जानें। भोलेनाथ को भस्म अत्यंत प्रिय है। भक्त इसे अपने शरीर पर भी लगा सकते हैं। बिना विधि के बनाए भस्म का लाभ नहीं होता है। भस्म बनाने के बारे में धर्मशास्त्रों में स्पष्ट रूप से विधि की जानकारी दी गई है। यहां मैं कांची कामकोटि पीठ की जोधपुर शाखा के पीठाधीश्वर स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी ने भस्म बनाने की विधि बताई है जो साझा कर रहा हूं। यह भस्म गाय के गोबर से बनाया जाता है। उचित होगा कि गाय देसी हो। उसके उपले के भस्म का ही लाभ मिलता है। शरीर पर भस्म लगाने की विधि परंपरानुसार अपने संप्रदाय से ही मिलती है। अतः यहां उसकी जानकारी नहीं दे रहा हूं।

ऐसे करें गोबर एकत्र

भस्म बनाने के लिए गोबर एकत्र करते समय ध्यान रखें कि गाय देसी हो। उससे प्राप्त गोबर भूमि पर गिरा न हो। इसके लिए उचित होगा कि गाय के गोबर देते समय भूमि पर गिरने से पहले ही उसे बांस की टोकरी या केले के पत्ते के समान बड़े पत्ते पर रख लें। तत्पश्चात यथाशीघ्र बड़े पत्ते, बांस की चटाई आदि पर उपले (कंडे) थाप लें। इसमें शीघ्रता इसलिए क्योंकि गोबर निकलने के तीन घंटे के पश्चात उसमें कीड़े बनने लगते हैं। इन उपलों को कड़ी धूप से सुखा लें। उपले बनाने और सुखाने के लिए सबसे उपयुक्त समय मकर संक्राति से लेकर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने तक का है। इसका मकसद उपले को सुखाने के लिए कड़ी धूप की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। ठीक से सुखा लेने के बाद उपले को किसी स्वच्छ स्थान पर उसे संग्रहित कर लें।

उपले जलाने की विधि

शिवलिंग पर लगाने वाले गोमय भस्म को बनाने की विधि सरल है। उपले जब ठीक से सूख जाएं तब उन्हें आवश्यक संख्या में भस्म बनाने के लिए निकाल लें। उपले को एक के ऊपर एक करके जमा कर लें। उपलों के बीच इतना ही अंतर हो कि हवा ठीक से लगे लेकिन जब आग लगे तो वह क्रमशः नीचे से ऊपर पहुंच सके। उसके नीचे घी का एक दीया रख लें। उपले और दीया के बीच इतना स्थान अवश्य हो कि दीये को बाद में जलाया जा सके। उन दोनों के बीच अंतर इतना ही हो कि दीये की लौ उपले तक ठीक से पहुंच जाए। इसके बाद दीये को जला लें। इससे उपले एक-एक कर धीमी आंच में जलने लगेंगे। पूरे जल जाने के बाद वे भुरभुरे हो जाते हैं। हालांकि जब तक उन्हें छुआ न जाए तब तक उपले के आकार में ही दिखते हैं।

ऐसे बनाएं गोमय भस्म

जले हुए उपले को सावधानी से एक-एक कर उठाकर बोरी में रखें। फिर बोरी के मुंह को बांध लें। अब किसी भारी व मजबूत लाठी से बोरी को पीट-पीटकर जले उपलों को चूर्ण बना दें। फिर उन्हें सूती वस्त्र या बारीक चलनी से छान लें। तत्पश्चात भस्म को वायु रोधक (एयर टाइट) पात्र में रख लें। इससे यह संबे समय तक सुरक्षित रहती है। अब भस्म प्रयोग के लिए पूरी तरह से तैयार है। इन्हें जब आवश्यक हो शिवलिंग पर लेपित करें। सूखे उपलों से वर्ष भर भस्म को बनाया जा सकता है। मात्र उपले बनाने का समय निर्धारित है। ताकि उसे सुखाने के लिए ठीक से कड़ी धूप मिल सके। शिवलिंग पर लगा भस्म अत्यंत उपयोगी होता है। छोटी-मोटी बीमारी, तंत्र-मंत्र, टोना-टोटका में यह उपयोगी है। पीड़ित व्यक्ति को इसका टीका लगाने से उसे राहत मिलती है।

संदर्भ- शिव पुराण, कांची कामकोटि की जोधपुर शाखा के पीठाधीश्वर स्वामी मृगेंद्र सरस्वती के विचार।

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