Brahma prayed Yogmaya after seeing his life in crisis : जान संकट में देख ब्रह्मा ने की थी योगमाया की प्रार्थना। तब योगमाया ने ब्रह्मा की रक्षा थी। उन्होंने विष्णु को निद्रामुक्त किया। उन्होंने ब्रह्मा के लिए संकट बने दो राक्षसों से युद्ध किया। दोनों राक्षस अत्यंत शक्तिशाली थे। विष्णु उन पर भारी भी नहीं पड़ पा रहे थे। तब योगमाया ने अपना मायाजाल फैला कर उनके वध का रास्ता साफ किया। बात उस समय की है जब पूरा संसार जलमग्न था। विष्णु शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में लीन थे। तभी उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ नामक दो भयंकर असुर उत्पन्न हुए। वे दोनों ब्रह्माजी का वध करने को तत्पर हो गए। तब ब्रह्माजी भगवान विष्णु को जगाने के लिए योगमाया की प्रार्थना शुरू की। योगमाया की कृपा से उनकी रक्षा हो गई। दुर्गा सप्तशती में वर्णित इस प्रार्थना का पाठ सभी के लिए अत्यंत कल्याणकारी है।
योगमाया की प्रार्थना
ब्रह्मा ने जान संकट में देख इस तरह की प्रार्थना। ब्रह्मा जी ने कहा- देवि! तुम्हीं इस जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली हो। तुम्हीं जीवनदायिनी सुधा हो। देवि! तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो। तुम्हीं इस विश्व-ब्रह्मांड को धारण करती हो। तुमसे ही इस जगत् की सृष्टि होती है। तुम्हीं से इसका पालन होता है। कल्प के अंत में सदा तुम्हीं सबको अपना ग्रास बना लेती हो। जगन्मयी देवि! इस जगत् की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो। इसके पालन-काल में स्थितिरूपा हो। कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करनेवाली भी तुम्हीं हो। महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी तुम हो। तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करनेवाली सबकी प्रकृति हो। भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो।
हे महादेवी-तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो। लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शांति और क्षमा भी तुम्हीं हो। तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शंख और धनुष धारण करनेवाली हो। बाण, भुशुंडी और परिघ- ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं। तुम सौम्य और सौम्यतर हो। इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य एवं सुंदर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुंदरी हो। पर और अपर-सबके परे रहनेवाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। सर्वस्वरूपे देवि! कहीं भी सत्-असत्रूप आदि वस्तुएं हैं उन सबकी तुम्हीं शक्ति हो। ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? जान संकट में देख ब्रह्मा ने आगे निम्न तरीके से कहा।
योगमाया ने ही त्रिदेव को शरीर धारण कराया
ब्रह्माजी ने कहा-जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करने वाले भगवान को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन समर्थ हो सकता है? मुझको, भगवान शंकर को तथा भगवान विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है। इसलिए तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है? हे देवि! ये जो दोनों दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो। और भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन दोनों महान असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो।
प्रार्थना का शीघ्र हुआ असर
ब्रह्माजी की स्तुति पर योगमाया भगवान से निकलकर ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हो गईं। योगनिद्रा से मुक्त होने पर विष्णु शेषनाग की शैया से जाग उठे। उन्होंने ब्रह्मा जी की जान संकट में देख युद्ध करने का फैसला किया। उन्होंने दोनों असुरों को ब्रह्माजी को खाने का प्रयास करते देखा। उन्होंने असुरों के साथ पांच हजार वर्षो तक केवल बाहुयुद्ध किया। फिर महामाया ने दोनों असुरों को मोह में डाल दिया। इससे बलोन्मत्त होकर उन्होंने भगवान से वर मांगने को कहा। भगवान ने कहा कि यदि मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे हाथों मारे जाओ। असुरों ने कहा- जहाँ पृथ्वी जल में डूबी न हो, वहीं हमारा वध करो। तब भगवान ने दोनों के मस्तकों को अपनी जांघ पर रखकर चक्र से काट डाला।
नोट – यदि अपना कल्याण चाहते हैं तो इस प्रार्थना को नियमित रूप से करें। रोज संभव नहीं हो तो सप्ताह में एक दिन भी करना उपयोगी होगा। यह प्रार्थना दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय में है।
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