डोंगरगढ़ की ऊंचे पहाड़ों वाली मां बमलेश्वरी
डोंगरगढ़ की ऊंचे पहाड़ों वाली मां बमलेश्वरी।

Maa Bamleshwari with high mountains of Dongargarh : डोंगरगढ़ की ऊंचे पहाड़ों वाली मां बमलेश्वरी। इनकी जबरदस्त मान्यता है। इनके दर्शन के लिए एक हजार से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इसके बावजूद श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वे यहां भक्ति भाव से आशा के साथ आते हैं। यहां माता मनोवांछित फल का आशीर्वाद पा लेते हैं। छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव जिले के डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन के पास मां बमलेश्वरी देवी मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह बड़ी बमलेश्वरी के नाम से भी जानी जाती हैं। माता 1600 फीट की ऊंची चोटी पर विराजमान हैं। छोटी बमलेश्वरी मंदिर नीचे भू-तल पर ही स्थित है।

मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों की भरमार

मां का मंदिर प्रकृति के अदभुत खूबसूरत नजारों के बीच है। पहाड़ियों पर घुमावदार सीढ़ियां चढ़ कर श्रद्धालु देवी बमलेश्वरी के दरबार में माथा टेकने पहुंचते हैं। मान्यता है कि माता के दरबार से भक्त खाली हाथ नहीं लौटते। पहले मंदिर तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम था। तभ भी श्रद्धालु आते रहते थे। सन् 1964 में खैरागढ़ राजपरिवार ने बमलेश्वरी देवी ट्रस्ट समिति बनाई। उसके बाद मंदिर तक जाने के लिए व्यवस्थित सीढ़ियां बनाई गई। रास्ते में भक्तों के लिए पानी की व्यवस्था भी की गई है। नवरात्रि के समय तो मीलों पैदल चलकर मां के दरबार में श्रद्धालु पहुंचते हैं। प्रदेश के प्राय: सभी क्षेत्रों से लोग नवरात्र शुरू होते ही पैदल डोंगरगढ़ की ऊंचे पहाड़ों वाली माता के दरबार की यात्रा करते हैं।

मंदिर की कथा, निःसंतान को संतान का आशीर्वाद

मां बमलेश्वरी देवी शक्तिपीठ का ज्ञात इतिहास लगभग 2200 वर्ष पुराना है। हालांकि डोंगरगढ़ से प्राप्त भग्नावेशों से प्राचीन कामावती नगरी होने के प्रमाण मिले हैं। कहा जाता है कि पूर्व में डोंगरगढ़ वैभवशाली कामाख्या नगरी कहलाती थी। किसी जमाने में वहां के राजा वीरसेन नि:संतान थे। कहा जाता है कि उन्होंने अपने शाही पुजारियों के सुझाव से देवताओं की पूजा की। विशेष रूप से शिव-पार्वती जी की पूजा करके मनौती मानी। एक साल के भीतर उनकी रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम मदन सेन रखा गया।  राजा वीरसेन ने इसे भगवान शिव और पार्वती का वरदान माना। फिर उनकी भक्ति में मां बमलेश्वरी का मंदिर बनवाया। तब से मंदिर की मान्यता दिनों-दिन बढ़ती ही गई है। भक्तों का विश्वास है कि माता के दरबार में पहुंचने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। खासकर निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है।

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ऐसे पहुंचें मां के दरबार में

डोंगरगढ़ की ऊंचे पहाड़ों वाली मां के दरबार के सबसे निकट का रेलवे स्टेशन डोंगरगढ़ है। यह रायपुर से 106 किलोमीटर दूर है। नागपुर, रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव आदि शहरों से रेल मार्ग से सीधे जुड़ा है। रायपुर से सड़क मार्ग से भी यहां पहुंचा जा सकता है। यदि आप दूसरे इलाके के हैं तो यहां पहुंचते समय मौसम का अवश्य ध्यान रखें। गर्मी अधिक पड़ती है। अतः उस दौरान आने से परहेज करें। सितंबर से अप्रैल तक का समय यहां आने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है। मंदिर सुबह 4.30 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक और दोपहर 2.30 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है। मंदिर परिसर में कैंटीन है। पास ही श्रद्धालुओं के रहने के लिए मंदिर ट्रस्ट की ओर से धर्मशाला उपलब्ध है। इसमें सामान्य से लेकर वातानुकूलित और कूलर वाले कमरे रियायती दरों पर उपलब्ध हैं।

शानदार रोप-वे

माता के दरबार तक जाने के लिए रोप-वे भी है। 2 अक्तूबर 2005 में यह सुविधा आरंभ हुई। रोप-वे सुबह आठ बजे से एक बजे तक और शाम तीन से छह बजे के बीच चलता है। इसके हर कार में चार लोग बैठ सकते हैं। इससे यात्रा करते समय आसपास के प्राकृतिक नजारे मन मोह लेते हैं।

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