मां ताराचंडी मंदिर है भक्ति और सौंदर्य का संगम

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मां ताराचंडी मंदिर है भक्ति और सौंदर्य का संगम
मां ताराचंडी मंदिर है भक्ति और सौंदर्य का संगम।

Maa Tarachandi temple is a confluence of devotion and beauty : मां ताराचंडी मंदिर है भक्ति और सौंदर्य का संगम। बिहार के सासाराम में स्थित है यह शक्तिपीठ। मनोहक प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है यह मंदिर। इसके चारों तरफ पहाड़, झरने और जल स्त्रोत हैं। इस मंदिर की जबरदस्त मान्यता है। मनोकामना पूरी होने की लालसा में दूर-दूर से भक्त आते हैं। यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि माता  शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। यहां माता को नारियल और चुनरी चढ़ाया जाता है।

दायां नेत्र गिरा था माता सती का 

विन्ध्य पर्वत की कैमूर पर्वत श्रृंखला पर स्थित है यह मंदिर। यहां विष्णु के चक्र से खंडित होकर माता सती का दायां नेत्र गिरा था। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था। यहीं पर परशुराम ने सहस्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी। मां इस शक्तिपीठ में बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं। उन्होंने यहीं पर चंड का वध किया। इसलिए वे चंडी भी कहलाईं। सासाराम पहले करूश प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यहां के राजा कार्तवीर्यपुत्र सहस्रबाहु थे। यह क्षेत्र मनोरम पर्वत श्रृंखलाओं, नदियों और तराइयों से हरा-भरा है। इस धाम पर वर्ष में तीन बार उत्सव मनाया जाता है। दोनों नवरात्रों के अलावा, गुरुपूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा तक पूरे एक माह का यहां विशाल मेला लगता है। इसके साथ ही भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है।

भैरव-चंडीकेश्वर महादेव मंदिर

मां ताराचंडी मंदिर के पास ही भैरव-चंडीकेश्वर महादेव मंदिर है। उसे सोनवागढ़ शिव मंदिर कहा जाता है। मनोकामना पूर्ति के लिए इस मंदिर की भी बहुत मान्यता है। उसमें सोमवार को काफी भीड़ लगती है। मान्यता है कि जो भक्त सोमवार को दूध और अक्षत चढ़ाते हैं, उन पर शिव की कृपा शीघ्र बरसती है। यहां से 60 किलोमीटर पश्चिम में मुंडेश्वरी माता का मंदिर है। यह पहाड़ पर स्थित है। मुंड का वध करने के कारण माता का नाम मुंडेश्वरी पड़ा। आप यहां आने के बाद इस मंदिर का दर्शन भी करना चाहिए। मां ताराचंडी मंदिर है भक्ति का केंद्र पर इसका महात्म्य भी बहुत है।

परशुराम कुंड

तारा माता के मंदिर के पास ही परशुराम कुंड है। यह कुंड मां के चरणों को पखारता है। श्रद्वालु इसी कुंड में स्नान करके मां की पूजा करते हैं। इस कुंड के बारे में बताया जाता है कि पेट कितना भी भरा हो इस कुंड का पानी पीते ही तुरंत खाना पच जाता है। यह कुंड अन्य कुंडों से भिन्न है। इसमें बैठने के लिए जगह-जगह पत्थरों के बैठक बने हैं। उन पर बैठकर आसानी से स्नान कर सकते हैं। रक्षाबंधन के समय लगभग एक महीने तक यहां लोगों की भारी भीड़ लगती है। कुंड का पूरा वातावरण मनोरम है।

किंवदंतियां अनेक

मंदिर को लेकर अनेक किंवदंतियां है। एक के अनुसार बोधगया से सारनाथ जाते हुए महात्मा बुद्ध 21 दिनों तक यहां रहे। इस दौरान उन्होंने मां ताराचंडी की उपासना की थी। इसका उल्लेख मंदिर के गर्भ गृह में स्थित पत्थर पर पाली भाषा में है। एक और किंवदंती प्रसिद्ध है। उसके अनुसार पूर्व दिशा में गोडइला पर्वत पर तारकनाथ नामक स्थान पर ही ताड़का राक्षसी रहती थी। उसका वर्णन रामायण में भी है। मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर विश्वाकमित्र का आश्रम था। यहीं उन्होंने राम-लक्ष्मण को दीक्षा दी थी। यहीं पर ताड़का का वध भी हुआ था। इसी स्थान पर गुरु तेगबहादुर ने अपनी पत्नी तथा शिष्यों के साथ ताराचंडी माता का पूजन किया था। आज भी सिख यहां तीन दिन ठहर कर अरदास तथा पूजा करते हैं। अन्य मान्यताओं के साथ ही मां ताराचंडी मंदिर है अपने आप में महत्वपूर्ण केंद्र।

इस तरह पहुंचें

देश के प्रमुख शहरों से यहां ट्रेन से पहुंचा जा सकता है। इसके साथ ही बस या टैक्सी से भी पहुंच सकते हैं। शहर में ऑटो की भी बेहतरीन व्यवस्था है। सासाराम के नजदीक वाराणसी, पटना और गया हवाई अड्डा भी है। वहां तक हवाई जहाज से पहुंच कर तीन से पांच घंटे में ही मंदिर पहुंचा जा सकता है।

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