Make life happy by balancing the Pancha Tatva in body : पंच तत्व का शरीर में संतुलन कर जीवन बनाएं सुखी। धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य पंच तत्वों से बना है। वे पंच तत्व पृथ्वी (भूमि), जल, अग्नि, आकाश और वायु हैं। चीनी और जापानी विद्वान भी पंच तत्व मानते हैं। हालांकि प्राचीन ग्रीक विद्वानों ने चार तत्व (आकाश छोड़कर) को मान्यता दी थी। पंच तत्व को सभी ग्रंथों में महत्व दिया गया है। यहां तक कहा कि पंच तत्व सृष्टि का आधार है। इनके संतुलन से सृष्टि का संचालन होता है। इसमें गड़बड़ी हुई तो शरीर क्या सृष्टि का संतुलन भी बिगड़ जाता है। इन पंच तत्वों के संतुलन से ही ग्रह-नक्षत्र का भी संतुलन संभव है। परिवर्तन की आवाज टीम ने इस पर शोध कर शानदार रहस्यों को जाना है। जनहित में इस पर श्रृंखला का प्रकाशन किया जा रहा है। यह साप्ताहिक होगा।
भगवान शब्द से भी पंच तत्व का संदेश
भगवान शब्द को अलग-अलग करके देखें। भगवान शब्द में भ, ग, व, आ और न अक्षर है। अब इन्हें एक-एक कर देखें। भ से भूमि (पृथ्वी), ग से गगन, व से वायु, आ से आग और न से नीर (जल) बनता है। हो गया पंचतत्व पूरा साथ ही भगवान भी। हालांकि यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि आधुनिक विज्ञान पंच तत्व का समर्थन नहीं करता है। उसने सौ से अधिक रासायनिक तत्वों की खोज की है। वास्तव में यह उनके सीमित ज्ञान और शब्द के पीछे भागने की सोच का दुष्परिणाम है। भारतीय पंच तत्व का अर्थ वैज्ञानिक तत्व से है ही नहीं। वैज्ञानिक जिसे तत्व मानते हैं, वह तत्व नहीं है। विज्ञान के घोषित सभी तत्वों को टुकड़े-टुकड़े करते जाएं तो वे न्यूट्रॉन, प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन से होते गॉड पार्टिकल में बंट जाएंगे। लेकिन सृष्टि के निर्माण के कारक सनातन धर्म के पंच तत्व स्वतंत्र हैं और रहेंगे।
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हर तत्व स्वतंत्र और महत्वपूर्ण
पंच तत्व का शरीर में संतुलन जानने के लिए इनके महत्व को जानना होगा। वास्तव में सभी तत्व एक (भगवान के अंश) होते हुए भी स्वतंत्र और महत्वपूर्ण हैं। यह पूरी सृष्टि को प्रभावित करते हैं। प्राणी मात्र के साथ ही ये सभी ग्रहों, रंगों और वनस्पतियों तक से सीधे जुड़े हैं। भगवान ने ब्रह्मांड की रचना ही इस तरह से की है कि सभी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। उनका ध्यान रखकर ही हम सुखी हो सकते हैं। इस रहस्य को समझ लें तो जीवन सहज, सरल और प्रसन्नता से भर जाएगा। ऋषियों ने प्राचीन काल में ही इस रहस्य को समझ लिया था। इसी कारण उन्होंने प्रकृति संरक्षित व्यवस्था बनाई। वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र दिया। पंच तत्व का संतुलन का रहस्य इसी व्यवस्था में निहित है। दुर्भाग्य से कथित प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच वाले लोग इसे नहीं समझ रहे हैं और विनाश का सामान तैयार कर रहे हैं।
ग्रह, नक्षत्र और देवता भी जुड़े हैं इनसे
सृष्टि का सीधा संबंध पंच तत्वों से है। हर तत्व के अलग-अलग ग्रह, नक्षत्र, दिशा, देवता आदि हैं। शरीर में उनका केंद्र, नियंत्रण का तरीका, रंग भी निर्धारित हैं। यहां तक कि उनकी प्रकृति, दशा, अन्न, चक्र भी भिन्न हैं। इनकी कमी और अधिकता से ही मनुष्य का भाग्य, स्वास्थ्य, स्वभाव आदि निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए पृथ्वी तत्व को लें। इसकी प्रकृति भारी, गुण सहनशीलता, शरीर में स्थिति जांघ है। यह व्यक्ति के खून व त्वचा की स्थिति को निर्धारित करता है। इसी से किसी व्यक्ति में अहंकार आता है। इसकी कमी हो तो पारिवारिक संबंधों में असुरक्षा उत्पन्न हो जाती है। इसका रंग पीला और ग्रह बुध और मंत्र लं है। इसकी दिशा पूर्व और उंगली अनामिका है। अनामिका उंगली की मुद्रा, पीला रंग को जीवन में बढ़ाकर या लं मंत्र का जप कर इसके प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
नोट- अगले अंक में पढ़ें बारी-बारी से पंच तत्वों, उसके गुणों, प्रभाव और नियंत्रित करने की विधि के बारे में।
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