पंच तत्व का शरीर में संतुलन कर जीवन बनाएं सुखी

310
प्रतिकूल ग्रहों को शांत करने के लिए करें ये उपाय
प्रतिकूल ग्रहों को शांत करने के लिए करें ये उपाय।

Make life happy by balancing the Pancha Tatva in body : पंच तत्व का शरीर में संतुलन कर जीवन बनाएं सुखी। सनातन धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य पंच तत्वों से बना है। वे पंच तत्व पृथ्वी (भूमि), जल, अग्नि, आकाश और वायु हैं। चीनी और जापानी विद्वान भी पंच तत्व मानते हैं। हालांकि प्राचीन ग्रीक विद्वानों ने चार तत्व (आकाश छोड़कर) को ही मान्यता दी थी। आज मैं मानव शरीर में इनके महत्व, उपयोगिता और संतुलन की चर्चा करूंगा। भौतिक या अभौतिक रूप में इन्हीं का प्रभाव पूरे जीवन में बना रहता है। किसी भी तत्व का संतुलन बिगड़ने का सीधा असर शरीर पर पड़ता है। वह अस्वस्थ और असंतुलित हो जाता है। पृथ्वी में भी मूल रूप से यही पांच तत्व हैं। यही कारण है कि पृथ्वी और मानव एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। जानें पंच तत्व का मनुष्य के लिए महत्व और उपयोगिता है।

जानें पृथ्वी तत्व के बारे में

शरीर की रचना में पृथ्वी तत्व का बड़ा योगदान रहता है। खून में लौह तत्व, हड्डियों में कैल्शियम, कार्बन, फाइबर, प्रोटीन आदि इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। आयुर्वेदिक उपचार में भी इनका ध्यान रखा जाता है। इसकी प्रकृति भारी (वजनी) है। यह शरीर में वजन और एकजुटता का प्रतीक है। शरीर में इस तत्व की स्थिति जांघ में मानी जाती है। इसी से गंध की अनुभूति होती है। यही अहंकार के लिए भी जिम्मेदार है। पृथ्वी तत्व को ही अन्नमय कोष कहते हैं। यह अपान वायु से जुड़ा है। मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। इस पर नियंत्रण का अर्थ मूलाधार चक्र को पार करना है। पृथ्वी का कारक ग्रह बुध है। यह पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। इसका रंग पीला है। इसका एक प्रमुख केंद्र अनामिका उंगली है। उसके माध्यम से इस तत्व को नियंत्रित कर सकते हैं। इसका मंत्र लं है।

शरीर में तरलता है जल तत्व

पंच तत्व का शरीर में महत्व में जानें जल तत्व के बारे में। शरीर में खून, पानी, रस आदि इसके रूप हैं। यह पोषण करता है। रंग सफेद है। आयुर्वेद में जल तत्व का ही नाम कफ है। इसकी प्रकृति शीतलता है। गुण की बात करें तो यह द्रव रूप में रहता है। संकुचन भी इसका गुण है। शरीर में इसका स्थान पैर में माना जाता है। यही बुद्धि के लिए जिम्मेदार है। इसी से स्वाद की अनुभूति होती है। यह तत्व प्राण और प्राणमय कोष का प्रतीक व पश्चिम दिशा का स्वामी है। इसी से स्वाद की अनुभूति होती है। इसे स्वाधिष्टान चक्र भी कह सकते हैं। इस पर नियंत्रण कर इस चक्र को पार कर सकते हैं। चंद्र और शुक्र इसके कारक ग्रह हैं। शरीर में इसका प्रमुख केंद्र कनिष्ठा उंगली है। इसके माध्यम से जल तत्व को नियंत्रित कर सकते हैं। इसका मंत्र वं है।

ऊर्जा का पर्याय है अग्नि तत्व

अग्नि तत्व का अर्थ ऊर्जा और ऊष्मा से है। शरीर में गर्मी, भोजन पचाने और निरोग रखने में इस तत्व की महती भूमिका है। इसी से मनुष्य को शक्ति मिलती है। आयुर्वेद में इसे पित्त के नाम से जाना जाता है। इसकी प्रकृति उष्ण है। इसके गुण गर्म और फैलने वाला है। रंग लाल और मणिपूर चक्र का कारक है। इसका कार्य भूख, प्यास और नींद है। इसी तत्व से देखने की क्षमता मिलती है। यह विवेक का कारक है। शरीर में इसका स्थान कंधा है। इसकी वायु समान और कोश मनोमय है। सूर्य और मंगल इसके कारक ग्रह है और दक्षिण दिशा का स्वामी है। शरीर में इसका नियंत्रक केंद्र अंगूठा है। इसके माध्यम से अग्नि तत्व को नियंत्रित कर मणिपूर चक्र को पार किया जा सकता है। इसका मंत्र रं हैं। पंच तत्व का शरीर में महत्व में वायु तत्व के बारे में।

यह भी पढ़ें- योग मुद्राओं के अनगिनत लाभ, बदल जाएगी जिंदगी

वायु तत्व का महत्व

वायु के बिना मनुष्य के जीवित रहने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसके बिना सांस लेना ही संभव नहीं है। यह नहीं मिले तो दिल की धड़कन रुक जाएगी। इसलिए इसे प्राण वायु भी कहते हैं। आयुर्वेद में इसे वात के नाम से जाना जाता है। इसकी प्रकृति अनिश्चित है। गति इसका गुण है। इसका रंग हरा और भूरा माना जाता है। स्पर्श की अनुभूति इससे ही होती है। यह शरीर में पेशियों के संकुचन और आकुचन का कार्य करता है। इसका स्थान नाभि में है। यही चित्त को नियंत्रित करता है। इसकी वायु उदान और कोश विज्ञानमय है। इसका ग्रह शनि और दिशा उत्तर है। इसे ही अनाहत चक्र कहा जाता है। इसका मंत्र यं है। शरीर में इसका नियंत्रक स्थान तर्जनी है। इसके माध्यम से इस तत्व को नियंत्रित कर अनाहत चक्र पार किया जा सकता है।

प्रज्ञा का कारक है आकाश तत्व

आकाश तत्व को मन से जोड़ा जाता है। इसकी महिमा और महत्व उच्च कोटि के वैसे साधक ही महसूस करते हैं जिनका मन पर नियंत्रण होता है। इसकी प्रकृति मिश्रित है। इसका गुण फैलाव का है। इसका रंग काला है। संवेग और वासना इसके कार्य है। इसी से शब्द की अनुभूति होती है। शरीर में इसका स्थान मस्तिष्क में है। यह प्रज्ञा का कारक है। वायु में व्यान और कोश में आनंदमय है। बृहस्पति इसके ग्रह हैं। मध्य-ऊर्ध्व इसकी दिशा है। आकाश तत्व का चक्र विशुद्धि है। इसका मंत्र हं है। शरीर में मध्यमा उंगली इसका केंद्र है। इसके माध्यम से भी आकाश तत्व को नियंत्रित किया जा सकता है। आकाश तत्व पर नियंत्रण का अर्थ विशुद्धि चक्र पर नियंत्रण होना है। पंच तत्व का शरीर में महत्व और संतुलन के बारे में आपने जान लिया। अब पढ़ें पंच तत्वों के नियंत्रित करने के तरीके।

मुद्राओं के अनगिनत लाभ
मुद्राओं के अनगिनत लाभ। इससे बदल जाएगी जिंदगी।

मंत्र, रंग और मुद्रा से करें पंच तत्वों का संतुलन

पंच तत्व के संतुलन से मनुष्य निरोगी और सुखी रहता है। साथ ही इससे सातों चक्र को जाग्रत करना भी संभव है। चक्र जाग्रत करने का अर्थ सिद्धियां और मोक्ष की प्राप्ति। अर्थात एक साथ भौतिक और आध्यात्मिक लक्ष्य पा लेना। इसकी विधि सरल है। ऊपर के लेख में मैंने स्पष्ट कर दिया है कि हर तत्व का अपना मंत्र और रंग है। उनकी अपनी दिशा है। ग्रह हैं। उंगलियों में उसका नियंत्रक केंद्र है। वहां से लगातार विद्युत तरंगें शरीर में निकल कर संबंधित तत्व को नियंत्रित करती रहती है। अतः मनुष्य अपनी आवश्यकता, सुविधा और क्षमता के अनुरूप मंत्र जप, रंगों के उचित संयोजन, हस्त मुद्रा या ग्रह को बलवान बनाकर इच्छित लक्ष्य को पा सकता है। इससे न सिर्फ बीमारियों पर नियंत्रण संभव है अपितु जीवन की बाधाएं भी दूर की जा सकती हैं। आवश्यकता इसके सटीक ज्ञान की है।

नोट- इस मसले पर यदि कोई संशय हो या अधिक जानकारी चाहते हों तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं। मैं वाट्सएप नंबर 9473196162 पर मैसेज के माध्यम से उपलब्ध रहता हूं। चाहें तो इस वेबसाइट की मेल आइडी www.parivartankiawaj.com पर मेल भी कर सकते हैं।

संदर्भ- वेद, अग्नि पुराण, श्रीमद भगवत गीता, भारतीय ज्योतिष और योग शास्त्र।

यह भी पढ़ें- एक साथ वास्तु और ग्रह दोष दूर करें, जीवन बनाएं खुशहाल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here