मनु स्मृति : सामाजिक समरसता का देती है संदेश

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मनु स्मृति : सामाजिक समरसता का देती है संदेश
मनु स्मृति देती है सामाजिक समरसता का संदेश। इसमें वैमनस्यता की बात नहीं है।

Manu Smriti : मनु स्मृति : सामाजिक समरसता का संदेश देती है। यह विद्वेष नहीं फैलाती है। विद्वेष की बात बड़ा धोखा है। इसे विदेशी आक्रमणकारियों ने फैलाया। उन्होंने इसका मूल स्वरूप बिगाड़ दिया। ताकि भारतीय समाज बंटा रहे। उनकी सत्ता को कोई खतरा न हो। इसमें वे सफल भी रहे। अब मनु स्मृति मूल स्वरूप में नहीं हैं। उसमें अपने श्लोक सिर्फ 630 हैं। 1770 श्लोक बाद में जोड़े गए हैं। जोड़े श्लोकों में जहर भरा गया है।

शोध नहीं होने से अंधेरे में हैं लोग

अब देश आजाद है। सब कुछ अपने हाथ में है। दुर्भाग्य से अभी भी व्यवस्था पुरानी ही है। इसमें ठोस बदलाव नहीं हुआ है। अपने ही ग्रंथों पर देश में काम नहीं हुआ। विदेश से छन कर जानकारी आती है। इससे लोग अपने ही ग्रंथों का सच नहीं जानते। थोपे गए विचार को असली मानते हैं। इसी से मनु स्मृति को दलित विरोधी मानने लगे। दरअसल उपलब्ध मनु स्मृति फर्जी है। वह विरोध के लायक ही है।

हमारा सिद्धांत वसुधैव कुटुंबकम

हिंदुओं का मंत्र वसुधैव कुटुंबकम है। वह दुनिया को मित्र मानता है। फिर अपनों से पक्षपात कैसे करेगा? वेदों में वर्ण व्यवस्था की बात है। जाति की बात नहीं की गई है। वर्ण का निर्धारण जन्म से नहीं होता था। कर्म से वर्ण बनता था। वाल्मीकि, ऐतरेय व विश्वामित्र प्रमाण हैं। दलित आज वाल्मीकि को अपना कहते हैं। ऐतरेय दासी पुत्र थे और विश्वमित्र राजा थे। अर्थात जन्म से ब्राह्मण नहीं थे। इसके बाद भी इनका काफी सम्मान था।

 

जाति से नहीं होता था ब्राह्मण

वज्रसूच्योपनिषद में इस पर लिखा गया है। ऋषि ऐतरेय ने भी जाति को खारिज किया है। उन्होंने कहा-यदि जाति से कोई ब्राह्मण होता तो दूसरी जाति में उत्पन्न लोग महर्षि कैसे बनते। अब बात मनु स्मृति की। उसका मौजूदा रूप सही नहीं है। असली ग्रंथ को आततायियों ने बर्बाद कर दिया। उससे छेड़छाड़ कर मौलिकता नष्ट कर दी। इसे समझने के लिए पहले ग्रंथ का समय जानें। मनु स्मृति के समय के ग्रंथ वेद हैं। उनकी भाषा को पढ़ें। फिर मनु स्मृति से तुलना करें। दोनों की भाषा एक सी नहीं है। मनु स्मृति की भाषा बहुत बाद की लगती है।  

12 हजार साल पुरानी है मनु स्मृति

नाम से ही स्पष्ट है कि इसे मनु ने लिखा था। वैसे तो कई मनु हुए। इनमें अंतिम मनु भी सतयुग में थे। भगवान राम त्रेता के अंत के थे। अर्थात मनु उनसे हजारों साल पहले के थे। जाहिर है कि उसी समय की मनु स्मृति है। राजा मनु के किसी गलत आचरण की जानकारी कहीं नहीं है। फिर यह सवाल उठता है कि उन्होंने इतनी कटुता वाली पुस्तक क्यों लिखी? इसका यही जवाब है कि मनु स्मृति : सामाजिक समरसता का संदेश देती है। वह वैमनस्यता नहीं फैलाती है।

चीनी पांडुलिपियों में मनु स्मृति का जिक्र

विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारी संस्कृति और ग्रंथों को भारी नुकसान पहुंचाया। उन्होंने नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, बौद्ध विहार एवं प्राचीन मंदिरों को नष्ट किया। जिन्हें सच की खोज करनी चाहिए वे आंखें मूंदे बैठे हैं। इसलिए मैं चीन व ब्रिटेन का उदाहरण दे रहा हूं। सन 1932 में जापान-चीन में युद्ध हुआ। इसमें बम विस्फोट में चीन की दीवार का हिस्सा टूटा। टूटे हिस्से से बक्से में बंद कुछ प्राचीन पांडुलिपियां मिलीं। चीना भाषा में लिखी ये पांडुलिपियां आगस्ट्स रिट्ज जार्ज के हाथ लगी। वह अब ब्रिटिश म्यूजियम में है। इसमें मनु स्मृति का भी जिक्र है।

चीनी पांडुलिपियों में चौंकाने वाली जानकारी

पांडुलिपियों में चौंकाने वाली जानकारी मिली। उसमें मनु स्मृति का भी जिक्र है। उसके अनुसार मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है। वह दस हजार साल पुराना और वैदिक काल का है। उसमें 630 श्लोक हैं। वर्तमान मनु स्मृति में 2400 श्लोक हैं। मतलब 1770 श्लोक बाद में जोड़े गए।

12 हजार साल से ज्यादा पुरानी है मनु स्मृति

चीन की दीवार 220 से 206 ईसा पूर्व की है। अर्थात पांडुलिपि उससे भी पहले की है। इस तरह मनुस्मृति 10000+220=10220 ईसा पूर्व की हुई। अर्थात आज से 12220 साल पहले का जिक्र है।

संतान से घृणा नहीं कर सकता पिता

विद्वानों में मनु स्मृति के लेखकों में भी विवाद है। कुछ के अनुसार इसे राजा वैवस्वत मनु ने लिखा। धर्मग्रंथों के अनुसार उनका जन्म 8340 ईसा पूर्व हुआ था। उनसे पूर्व छह मनु हुए थे। प्रथम मनु 9057 ईसा पूर्व थे। चीनी पांडुलिपि के अनुसार उनका समय मिलता है। पेंच यह है कि सभी मनुष्य उन्हीं की संतान हैं। अर्थात उनके लिए सभी बराबर थे। फिर उनसे भेदभाव की कल्पना नहीं जा सकती। दूसरी बात की उस समय जाति-व्यवस्था थी ही नहीं। फिर उनके नाम पर ऐसा ग्रंथ किसने बनाया? स्पष्ट है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया। किसी ने भारी हेराफेरी की। उनकी मनुस्मृति : सामाजिक समरसता का संदेश देने वाली है।

जरूरत है सही शोध की

जरूरत मूल मनु स्मृति की तलाश की है। विद्वानों को इस पर शोध करना चाहिए। उन्हें कालखंडों की भाषा के आधार पर पता लगाना चाहिए कि मनु स्मृति के 630 श्लोक कौन से हैं। उनमें कौन से 1770 श्लोक जोड़े गए हैं। यह कठिन काम भी नहीं है। इससे धर्म, समाज और मानवता का भला होगा। साथ ही देश को भी दिशा मिलेगी। फिर सभी मानेंगे कि मनु स्मृति : सामाजिक समरसता का संदेश देती है।

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2 COMMENTS

  1. मनुस्मृति के आधार पर समाज को बांटने का जो कुत्सित कृत्य वाम विचारधारा के कथित विद्वानों द्वारा पृष्ठपोषित है; उसका केवल एक ही निराकरण है कि मनुस्मृति के मूल 630 श्लोकों की पहचान कर उसे प्रामाणिकता के साथ सामने लाया जाए। कार्य कठिन है किंतु असंभव नहीं है, यदि यह राजकीय संरक्षण में हो।

    • जी, मेरी भी यही राय है। इस पर काम होना ही चाहिए।

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