हमारा जीवन हमारे हाथ, हम जैसा चाहे बना सकते हैं

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शक्ति की उपासना
शक्ति की उपासना

make your life as you desire : हमारा जीवन हमारे हाथ में है। हम जैसा चाहे इसे वैसा बना सकते हैं। इसे विज्ञान के एक सिद्धांत से समझें। प्रत्येक क्रिया के विपरीत समान प्रतिक्रिया होती है। न्यूटन का यह सिद्धांत हर काल में महत्वपूर्ण है। ब्रह्मांड की हर गतिविधि इससे संचालित होती है। हमारी सोच व क्रियाएं भी इससे बाहर नहीं। दरअसल यह सिद्धांत हमारे धर्मग्रंथों का ही है। ऋषि-मुनियों ने बहुत पहले इसे कह दिया था। हम जैसा सोचते हैं, करते हैं, वही पाते हैं। हमें कर्मों व विचारों के अनुसार फल मिलता है। यही जीवन का मूल मंत्र है। विचार और कर्म जीवन का संचालन व निर्धारण करता है। जीवन का यह मंत्र सहज और सरल है। हमारा समय, आर्थिक-सामाजिक स्थिति, संबंध, कामधंधा आदि कैसा रहेगा, यह हम पर ही निर्भर करता है।

जीवन में दो चीजें होती हैं-सकारात्मक या नकारात्मक

जीवन में दो तरह की चीजें होती हैं। पहला सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। धन, स्वास्थ्य, काम या संबंध भी सकारात्मक या नकारात्मक होता है। जैसे- आर्थिक स्थिति अच्छी होती है या बुरी। कामधंधा अच्छा चलता है या बुरा। लोग स्वस्थ रहते हैं या अस्वस्थ। यदि बुरा हो रहा तो जीवनधारा में गड़बड़ी है। सोच में नकारात्मकता हावी है। विश्वास रखें कि प्रकृति कभी बुरा नहीं चाहती। उसकी व्यवस्था सबको सुखी और आनंद से परिपूर्ण रखने की है। इसके लिए छोटी सी शर्त है। आपकी सोच सकारात्मक हो। सफल जीवन जीने वाले लोगों को देखें। आप देखेंगे कि उनका रुख बेहद सकारात्मक होता है। वे सफलता व उससे जुड़ी चीजों से खूब प्रेम करते हैं। उसका प्रेम ही सफलता को आकर्षित करता है। इसी तरह जब कोई नकारात्मक होता है। अर्थात उसे अपने से दूर करता है। यही असफलता का कारण है। 

जो वस्तु चाहिए उससे प्रेम करें, अवश्य मिलेगी

धन चाहिए तो उससे प्रेम करें। उसके प्रति नकारात्मक होंगे तो उसके लिए तरसते रहेंगे। जिसके पास बहुत धन है तो वह उससे प्यार करता है। पैसे की तंगी झेलने वाले उसकी कमी महसूस करते हैं। वे धन के प्रति नकारात्मक होते हैं। वे मानते हैं कि धन अनुचित साधन से आता है। अधिकांश लोगों को बचपन से ही गलत शिक्षा मिलती है। उन्हें बताया जाता है कि अधिक धन अनुचित तरीके से कमाया जाता है। पैसे भले कम हों ईमानदारी जरूरी है। इस तरह अनजाने में धन से घृणा करते हैं। उसके प्रति नकारात्मकता बढ़ती है। वह पैसे की कमी महसूस करते हैं। उसे पाना भी चाहते हों। इसके बाद भी उससे प्रेम नहीं, घृणा करते हैं। यही कारण है कि धन से दूर रहते हैं। सच ये है कि हमारा जीवन हमारे हाथ में है।

जो नहीं चाहिए उसकी अनदेखी करें

महात्मा बुद्ध ने भी कहा था। “कोई बुरे विचार के साथ बोलता या काम करता है, तो दुख उसका पीछा करता है। यदि अच्छे विचार के साथ बोलता है। काम करता है तो खुशी उसके पीछे आती है।” दार्शनिकों ने प्रेम को सर्वाधिक महत्व दिया है। उन्होंने प्रेम को सकारात्मक शक्ति के रूप में रेखांकित किया। प्रेम ही हर अच्छी वस्तु का आधार है। अपने आसपास पर नजर डालें। कोई गंभीर रूप से बीमार है। वह स्वस्थ जीवन की कमी महसूस करता है। वह अनचाहे रूप में अधिक बीमारी को आमंत्रित करता है। कुछ लोग बीमारी में भी सकारात्मक सोच रखते हैं। वे शीघ्र स्वस्थ होने का भाव रखते हैं। बीमारी की चर्चा न के बराबर करते हैं। ऐसे लोग जल्दी स्वस्थ होते हैं। पाश्चात्य चिकित्सा के जनक हिप्पोक्रेट्स के अनुसार हमारे भीतर की प्राकृतिक शक्तियां ही रोग की सच्ची उपचारक हैं।

(जारी)

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