भौतिक सुख की लालसा से ईश्वर की प्राप्ति नहीं

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ग्रहों के आधार पर करें भूमि व भवन के वास्तु का संतुलन
ग्रहों के आधार पर करें भूमि व भवन के वास्तु का संतुलन।

No longing of material happiness is the realization of God : भौतिक सुख की लालसा से ईश्वर की प्राप्ति नहीं। अध्यात्म का क्षेत्र ही ऐसा है। इसमें किसी को जबरन नहीं ले जाया जा सकता। मनुष्य को लक्ष्य पाने के लिए स्वयं प्रयास करना पड़ता है। दूसरे मात्र मार्ग दिखा सकते हैं। यदि किसी को जबरन आगे ले जाने की कोशिश की तो अपनी क्षमता और श्रम बेकार करना होगा। असफलता का बोझ अलग उठाना पड़ेगा। इस पर एक सुंदर बोध कथा है। यह कथा एक प्रजा वत्सल राजा और भक्त वत्सल ईश्वर की है। सुधी पाठक उसे पढ़कर इसका आनंद लें।

राजा ने ईश्वर से सभी को दर्शन देने की प्रार्थना की

एक न्यायप्रिय और प्रजा वत्सल राजा थे। वह नित्य ईश्वर की बड़ी श्रद्धा से पूजा करते थे। एक दिन ईश्वर ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। कहा, “राजन, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। बोलो तुम्हारी कोई इच्छा है?” प्रजा को चाहने वाला राजा बोले। “भगवन, मेरे पास आपका दिया सब कुछ है। राज्य में सुख-शांति है। सिर्फ एक कमी खलती है कि मेरे बंधु-बांधव और प्रजा भी धर्मपरायण हो। मेरी इच्छा है कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरे बंधु-बांधव एवं प्रजा को भी दर्शन  दीजिए।” “यह संभव नहीं है।” भगवान ने राजा को कहा। परंतु प्रजा वत्सल राजा जिद करने लगे। आखिर भगवान को भक्त के सामने झुकना पड़ा। वे बोले, “ठीक है, कल अपनी सारी प्रजा को पहाड़ी के पास लाना। मैं वहीं दर्शन दूंगा।”

ईश्वर की दर्शन का ढिंढोरा पिटवाया

भौतिक सुख की लालसा के प्रभाव से अंजान राजा अत्यन्त प्रसन्न हुए। तत्काल सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया। कल सभी पहाड़ के नीचे मेरे साथ पहुंचें। वहां भगवान दर्शन देंगे। दूसरे दिन राजा समस्त प्रजा ओर स्वजनों के साथ पहाड़ी कि ओर चलने लगे। रास्ते में अचानक एक स्थान पर तांबे के सिक्कों का पहाड़ दिखा। प्रजा में से कुछ लोग उस ओर भागने लगे। ज्ञानी राजा ने सतर्क किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे। तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो। तांबे के सिक्के के पीछे अपने भाग्य को नहीं ठुकराओ। परंतु लालच के वशीभूत कई लोग तांबे के सिक्कों वाली पहाड़ी कि ओर भाग गए। वे सिक्कों की भारी गठरी बनाकर अपने घर की ओर लौट गए। वे सोच रहे थे कि पहले इन सिक्कों को समेट लूं। भगवान से तो फिर कभी मिल लूंगा।

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सोने-चांदी की लालसा में लोग भगवान को भूले

राजा खिन्न मन से आगे बढ़े। कुछ दूर चलने पर चांदी के सिक्कों का चमचमाता पहाड़ दिखाई दिया। इस बार बची हुए प्रजा में से कुछ लोग उस ओर भाग गए। वे चांदी के सिक्कों को गठरी बनाकर अपने घर की ओर लौट पड़े। वे सोच रहे थे कि ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता है। चांदी के इतने सिक्के फिर मिले न मिले। भगवान तो कभी न कभी मिल जाएंगे। कुछ और आगे बढ़ने पर सोने के सिक्कों का पहाड़ नजर आया। अब तो बचे हुए सारे लोग तथा राजा के स्वजन भी उस ओर भागने लगे। राजा उन्हें रोकते रहे। पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। वे भी दूसरों की तरह सिक्कों कि गठरी लाद कर अपने-अपने घरों की ओर चल दिए। भौतिक सुख की लालसा ने उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी थी। अब केवल राजा ओर रानी ही शेष रह गए थे।

हीरे की लालसा में रानी ने भी साथ छोड़ा

राजा ने रानी से कहा, “देखो कितने लोभी हैं ये लोग। भगवान से मिलने का महत्व ही नहीं जानते हैं। उनके सामने सारी दुनिया की दौलत क्या चीज है?” रानी ने राजा की बात का समर्थन किया। फिर दोनों आगे बढ़ने लगे। कुछ दूर चलने पर उन्होंने देखा कि सप्तरंगी आभा बिखेरता हीरे का पहाड़ है। अब तो रानी से भी रहा नहीं गया। हीरे के आकर्षण में वह भी दौड़ पड़ी। वह हीरों की गठरी बनाने लगी। फिर भी उसका मन नहीं भरा तो साड़ी के पल्लू में उन्हें बांधने लगी। इस चक्कर में वस्त्र देह से अलग हो गए। हीरों की तृष्णा फिर भी नहीं मिटी। यह देख राजा को अत्यन्त ग्लानि और विरक्ति हुई। दुखी मन से राजा अकेले ही आगे बढ़ गए।

भगवान तक सिर्फ राजा पहुंचे

पहाड़ पर सचमुच भगवान खड़े इंतजार कर रहे थे। राजा को देखते ही वे मुसकुराए। फिर पूछा, “कहाँ हैं तुम्हारी प्रजा और तुम्हारे प्रियजन? मैं तो कब से उनसे मिलने के लिए बेकरारी से इंतजार कर रहा हूं।” राजा ने शर्म और ग्लानि से अपना सर झुका दिया। तब भगवान ने राजा को समझाया। “राजन जो लोग भौतिक सुख की लालसा में डूबे हैं। वे सांसारिक सुख प्राप्ति को मुझसे अधिक महत्व देते हैं। उन्हें कदापि मेरी प्राप्ति नहीं होती है। वे मेरे स्नेह और कृपा से भी वंचित रह जाते हैं। मैं भी उनका कल्याण नहीं कर पाता हूं।”

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