आत्मरक्षा व शत्रुनाश में प्रत्यंगिरा मंत्र का जवाब नहीं

11715
आत्मरक्षा-शत्रुनाश में प्रत्यंगिरा व विपरीत प्रत्यंगिरा मालामंत्र बेजोड़
आत्मरक्षा-शत्रुनाश में प्रत्यंगिरा मालामंत्र जप में करें इस यंत्र का उपयोग।

No one can stand before Pratyangira Mantra : आत्मरक्षा व शत्रुनाश में प्रत्यंगिरा मंत्र बेजोड़ है। यह शत्रु की प्रबलतम तांत्रिक क्रियाओं को लौटने वाली है। यह मंत्र स्वयंसिद्ध है। इसे पुन: सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। बेहतर परिणाम के लिए प्रयोग से पूर्व एक बार ग्यारह हजार मंत्रों का जप कर लें। तस्वीर से बेहतर संलग्न यंत्र का प्रयोग उचित होगा। इससे कई कठिन और मारक प्रयोग किए जा सकते हैं। लेकिन बिना गुरु के निर्देश के ऐसा न करें। चूक होने पर नुकसान हो सकता है। इसका प्रयोग आत्मरक्षा के लिए ही करें। प्रतिदिन 108 मंत्रों का जप पर्याप्त है। विरोधी कभी आप पर हावी नहीं हो सकेंगे। पाठकों की मांग पर इसे और समृद्ध करके पुनः दे रहा हूं। 

ध्यान

नानारत्नार्चिराक्रान्तं वृक्षाम्भ: स्त्रवर्युतम। व्याघ्रादिपशुभिर्व्याप्तं सानुयुक्तं गिरीस्मरेत।।

मत्स्यकूर्मादिबीजाढ्यं नवरत्न समान्वितम। घनच्छायां सकल्लोलम कूपारं विचिन्तयेत।।

ज्वालावलीसमाक्रान्तं जग स्त्री तयमद्भुतम्। पीतवर्णं महावह्निं संस्मरेच्छत्रुशान्तये।।

त्वरा समुत्थरावौघमलिनं रुद्धभूविदम्। पवनं संस्मरेद्विश्व जीवनं प्राणरूपत:।।

नदी पर्वत वृक्षादिकालिताग्रास संकुला। आधारभूता जगतो ध्येया पृथ्वीह मंत्रिणा।।

सूर्यादिग्रह नक्षत्र कालचक्र समन्विताम्। निर्मलं गगनं ध्यायेत् प्राणिनामाश्रयं पदम।।

 

मालामंत्र

ॐ ह्रीं नम: कृष्णवाससे शतसहस्त्रहिंसिनि सहस्त्रवदने महाबलेअपराजिते प्रत्यंगिरे परसैन्य परकर्म विध्वंसिनि परमंत्रोत्सादिनि सर्वभूतदमनि सर्वदेवान बंध बंध सर्वविद्यांसि छिंदि छिंदि क्षोभय क्षोमय परयंत्राणि स्फोटय स्फोटय सर्वश्रृंखलान त्रोटय त्रोटय ज्वल ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे ह्रीं नम: ऊं। 

विनियोग

अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि अनुष्टप् छंद: देवीप्रत्यंगिरा देवता ॐ बीजं, ह्रीं शक्तिं, कृत्यानाशने जपे विनियोग:।

ध्यान

सिंहारुढातिकृष्णांगी ज्वालावक्त्रा भयंकरराम।

शूलखड्गकरां वस्त्रे दधतीं नूतने भजे।।

अन्य प्रमुख मंत्र

इससे संबंधित अन्य प्रमुख मंत्र नीचे हैं। आत्मरक्षा व शत्रुनाश में ये भी प्रभावी हैं।

1-ऊं ह्रींं कृष्णवाससे नारसिंहवदे महाभैरवि ज्वल-ज्वल विद्युज्जवल ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे क्ष्म्रीं क्ष्म्यैम नमो नारायणाय घ्रिणु: सूर्यादित्यों सहस्त्रार हुं फट्।

2-ॐ ह्रीं यां कल्ययन्ति नोस्रय: क्रूरां कृत्यां वधूमिव तां ब्रह्मणास्पानिर्नुद्म प्रत्यक्कर्त्तारमिच्छतु ह्रीं ॐ।

ध्यान

खड्गचर्मधरां कृष्णाम मुक्तकेशीं विवाससम्।

दंष्ट्राकरालवदनां भीषाभां सर्वभूषणाम्।

ग्रसन्तीं वैरिणं ध्यायेत् प्रेरीतां शिवतेजसा।।

 

यह भी पढ़ें- आठवीं महाविद्या बगलामुखी शत्रुनाश व स्तंभन में बेजोड़ में

प्रत्यंगिरा व विपरीत प्रत्यंगिरा

शत्रु की तांत्रिक क्रियाएं लगातार हों। वह बर्बाद करने पर उतारू लगे। जान लेने को तैयार हो। डरें नहीं, विपरीत प्रत्यंगिरा का सहारा लें। आत्मरक्षा व शत्रुनाश में इसका जवाब नहीं है। इससे शत्रु की क्रिया वापस उसी पर लौटेगी। उसको आपकी ही तरह दर्द का एहसास होगा। इसे ही विपरीत प्रत्यंगिरा कहा जाता है। प्रत्यंगिरा और विपरीत प्रत्यंगिरा में यही भेद है। प्रत्यंगिरा शक्ति सिर्फ वापस लौटाती है। विपरीत प्रत्यंगिरा शत्रु को उसी शक्ति से चोट पहुंचाती है। जाहिर है कि अपनी रक्षा होती ही है। इस प्रयोग के बाद शत्रु दोबारा प्रयोग नहीं कर सकेगा। उसकी वह शक्ति खत्म हो जाती है।

मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं प्रत्यंगिरे मां रक्ष रक्ष मम शत्रून भंजय भंजय फे हुं फट् स्वाहा।

विनियोग

ऊं अस्य श्री विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्रस्य भैरव ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, श्री विपरीत प्रत्यंगिरा देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे पाठे च विनियोग:।

माला मंत्र

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ कुं कुं कुं मां सां खां चां लां क्षां ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ ॐ ह्रीं वां धां मां सां रक्षां कुरु। ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ स: हुं ॐ क्षौं वां लां धां मां सां रक्षां कुरु। ॐ ॐ हुं प्लुं रक्षां कुरु।

ॐ नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै विद्याराज्ञि त्रैलोक्यवंशकरि तुष्टि-पुष्टि-करि सर्वपीडापहारिणि सर्वापन्नाशिनि सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिनि मोदिनि सर्वशास्त्राणां भेदिनि क्षोभिणि तथा परमंत्र-तंत्र-यंत्र-विष-चूर्ण-सर्वप्रयोगादीननयेषां निर्वर्तयित्वा यत्कृतं तन्मेस्स्तु कलिपातिनि सर्वहिंसा मा कारयति अनुमोदयति मनसा वाचा कर्मणा ये देवासुर राक्षसास्तिर्यग्योनिसर्वहिंसका विरुपेकं कुर्वंति मम मंत्र-तंत्र-यंत्र-विष-चूर्ण-सर्व-प्रयोगादीनात्महस्तेन यः करोति करिष्यित्वा पातय कारय मस्तके स्वाहा।

सभी मंत्रों के जप और हवन में रखें ध्यान

आत्मरक्षा व शत्रुनाश में सभी मंत्रों के जप में माला का ध्यान रखें। माला रक्त चंदन या कमलगट्टे की हो। मनके 108 हों। जप के समय सुमेरु को पार न करें। जप के बाद दशांश हवन करें। हवन में घी के साथ सरसो, काली मिर्च, खील व नमक हो। सुविधा के लिए अन्य ज्वलनशील हवन सामग्री का भी उपयोग करें। ध्यान रखें कि वह सहायक सामग्री होगी। यह अनुष्ठान कभी भी किया जा सकता है। मेरा अनुभव है कि रात्रि नौ के बाद अधिक प्रभावी होता है। अतः संभव हो तो उसी समय जप व हवन करें।

यह भी पढ़ें – महाविपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र का कोई नहीं कर सकता सामना

 

7 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here