पहली महाविद्या काली से देवता भी पाते हैं शक्ति व सिद्धि

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शब्दों से परे हैं आदि शक्ति महाकाली
शब्दों से परे हैं आदि शक्ति महाकाली।

First mahavidya kali : पहली महाविद्या काली से देवता भी पाते हैं शक्ति व सिद्धियां। दस महाविद्या में ये पहली हैं। इनके भक्तों का काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। काल इन्हीं से नियंत्रित होता है। दुष्टों के लिए क्रोध में भरी रहती हैं। भक्तों पर हमेशा कृपा बरसाती हैं। ग्रंथों में इनके कई नाम और भेद हैं। इनमें दो रूप अधिक प्रचलित हैं। पहली हैं- श्यामा काली या दक्षिण काली। दूसरी हैं सिद्धिकाली या गुह्य काली। ये कलियुग की सबसे प्रभावी देवी हैं। सांसारिक सुखों के साथ मोक्ष भी देती हैं। ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, यम और रावण जैसों ने इनकी उपासना की। 

रूप की तरह काली के मंत्र भी अनेक

काली के रूपों की तरह मंत्र भी अनेक हैं। ये जटिल विषय है। इसे समझना आम लोगों के लिए कठिन होगा। इसलिए सीधे मूल मंत्रों पर आता हूं। ये आसान मंत्र शीघ्र फल देते हैं। नीचे इनके प्रमुख मंत्र और साधना विधि है। खास बात ये है कि भक्ति से भी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। साधना का मार्ग साधकों के लिए है। ये साधना काल में खुद को महसूस कराती हैं। आप उनकी उपस्थिति महसूस कर सकते हैं।

एकाक्षरी मंत्र

क्रीं

विनियोग, ध्यान व जप विधि

इस मंत्र के ऋषि भैरव हैं। गायत्री छंद। दक्षिण काली देवी। कं बीज। ईं शक्ति: एवं रं कीलक है। यह अत्यंत कल्याणकारी मंत्र है। इसकी साधना से ही विश्वामित्र महर्षि बने थे। शवारूढ़ां महाभीमां घोरद्रंष्ट्रां वर प्रदम से ध्यान करें। फिर एक लाख जप करें। अंत में दशांश (दस हजार) हवन करें।

करन्यास व हृदयादि न्यास

ऊं क्रां, ऊं क्रीं, ऊं क्रूं, ऊं क्रैं, ऊं क्रौं, ऊं क्रं, ऊं क्र: से करन्यास व हृदयादि न्यास करें।

द्वयक्षर मंत्र

क्रीं क्रीं

विनियोग व जप विधि

इस मंत्र के ऋषि भैरव हैं। छंद गायत्री। बीज क्रीं। शक्ति स्वाहा और कीलक हूं है। बाकी ऊपर बताए तरीके से करें।

काली के सबसे प्रभावी मंत्र

काली के 22 अक्षर वाले मंत्र सबसे प्रभावी हैं। इसका प्रयोग बेहद उग्र है। आज की स्थिति में थोड़ी कठिन है। अत: मैं सामान्य जानकारी ही दूंगा। वह भी अत्यंत उपयोगी है। पहली महाविद्या काली से आप सब कुछ पा सकते हैं। मेरी सलाह है कि इसकी साधना में भक्ति भरपूर हो। बड़े लक्ष्य के लिए गुरु की शरण में जाएं।

बाइस अक्षर मंत्र

क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

विनियोग

इस मंत्र के भैरव ऋषि: हैं। उष्णिक् छंद:। दक्षिण कालिका देवता। ह्रीं बीजं। हूं शक्ति:। क्रीं कीलकं हैं। सभी इच्छा की पूर्ति के लिए यही विनियोग है।

अंगन्यास

ऊं कुरुकुल्लायै नम: मुखे। ऊं विरोधिन्यै नम: दक्षिण नासिकायां। ऊं विप्रचित्तायै नम: वाम नासिकायां। ऊं उग्रायै नम: दक्षिण नेत्रे। ऊं उग्रप्रभायै नम: वाम नेत्रे। ऊं दीप्तायै नम: दक्षिण कर्णे। ऊं नीलायै नम: वाम कर्णे। ऊं घनायै नम: नाभौ। ऊं बालाकायै नम: हृदये। ऊं मात्रायै नम: ललाटे। ऊं मुद्रायै नम: दक्षिण स्कंधे।  ऊं मीतायै नम: वाम स्कंधे। इसके बाद शुदिध आदि कर्म करें। ह्रीं बीज से प्राणायाम करें।

ऋष्यादि न्यास

भैरव ऋषिये नम: शिरसि। उष्णिक छंदसे नम: हृदि। दक्षिणकालिकायै नम: हृदये। ह्रीं बीजाय नम: गुह्ये। हूं शक्तये नम: पादयो:। क्रीं कीलकाय नम: नाभौ। विनियोगाय नम: सर्वांगे।

षडंगन्यास

ऊं क्रां हृदयाय नम:। ऊं क्रीं शिरसे स्वाहा। ऊं क्रूं शिखायै वषट। ऊं क्रैं कवचाय हुं। ऊं क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट। ऊं क्र: अस्त्राय फट।

ध्यान

चतुर्भुजां कृष्णवर्णां मुंडमाला विभूषिताम्। खडग च दक्षिणो पाणौ विभ्रतींदीवर-द्वयम्।

द्यां लिखंती जटायैकां विभतीशिरसाद्वयीम्। मुंडमाला धरां शीर्षे ग्रीवायामय चापराम्।

वक्षसा नागहारं च विभ्रतीं रक्तलोचनां। कृष्ण वस्त्रधरां कट्यां व्याघ्राजिन समन्विताम्।

वामपदं शव हृदि संस्थाप्य दक्षिण पदम्। विलसद् सिंह पृष्ठे तु लेलिहानासव पिबम्।

सट्टहासा महाघोरा रावै मुक्ता सुभीषणा।

विधि एवं फल

निर्जन स्थान, वन या सूने घर में जप करें। मंदिर या नदी के किनारे भी जप कर सकते हैं। कठिन साधक श्मशान में करते हैं। यह मंत्र विशेष और शीघ्र फलदायी है। दो लाख जप से पुरश्चरण होता है। फिर दशांश (20 हजार) हवन करें। कनेर के फूलों से हवन उपयुक्त होता है। पहली महाविद्या काली से देवता भी शक्ति पाते हैं। मनुष्य का स्तर ऊपर उठना स्वाभाविक है। उच्चकोटि का साधक काली की नियमित उपासना करता है। इसका अर्थ कि साधक चरम की ओर अग्रसर है।

कुछ कठिन प्रयोग

काली के मंत्रों के कुछ प्रयोग अत्यंत कठिन हैं। आमलोगों के उससे परहेज करना चाहिए। गुरु की देखरेख में भी किया जा सकता है। अन्य लोगों को उसे नहीं करना चाहिए। इसलिए यहां उसकी जानकारी नहीं दे रहा हूं। यह साधना का चरम है। इनकी साधना से पहले सुनिश्चित करें। आपका आध्यात्मिक स्तर ऊंचा हो। साधना के क्षेत्र में चरण पाना चाहते हैं। हालांकि इससे सांसारिक सुख के साथ मोक्ष मिलता है।

गुह्यकाली या सिद्धकाली

सिद्धकाली का ही एक नाम काली है। इनका रूप विकट है। शरीर काले मेघ के सामान है। मुंडों की माला पहनी हुई हैं। इसके साथ सर्पों की भी माला है। नाग शैय्या पर स्थित हैं। बाएं अंग में शिव बालक रूप में हैं। पहली महाविद्या काली से चूंकि सभी फल मिलते हैं। अतः गुह्यकाली भी उसी तरह हैं। सिर्फ मंत्र और ध्यान में अंतर है। ये शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनके मंत्र अत्यंत फलदायी हैं।

1-नवाक्षर 

क्रीं गुह्ये कालिका क्रीं स्वाहा।

2-चतुर्दशाक्षर मंत्र

 क्रौं हूं ह्रीं गुह्ये कालिके हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

3-पंचदशाक्षर मंत्र

हूं ह्रीं गुह्ये कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

ध्यान

द्यायेन्नीलोत्पल श्यामामिन्द्र नील समुद्युतिम्। धनाधनतनु द्योतां स्निग्ध दूर्वादलद्युतिम्।

ज्ञानरश्मिच्छटा- टोप ज्योति मंडल मध्यगाम्। दशवक्त्रां गुह्य कालीं सप्त विंशति लोचनाम्।

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