आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति का खजाना भी है श्रीशैलम में

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आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति का खजाना भी है श्रीशैलम में
आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति का खजाना भी है श्रीशैलम में।

Not only spiritual, nature is also a treasure in Srishailam : आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति का खजाना भी है श्रीशैलम में। श्री मल्लिकार्जुन मंदिर से बाहर निकले तो धूप बहुत चटख हो चुकी थी। जनवरी के महीने में भी हाफ शर्ट पहन कर चलना मुश्किल हो रहा था। बच्चे मस्ती के मूड में थे। उधर साथ की देवियां खऱीदारी के मूड में थीं और मंदिर के चारों तरफ़ फैले बाज़ार की एक-एक दुकान पर सामान देखने व मोलभाव का मौक़ाहाथ से निकलने नहीं देना चाहती थीं। भला हो बच्चों का, जिन्हें एक तो डैम देखने की जल्दी थी और दूसरे भूख भी लगी थी। इसलिए बाज़ार हमने एक घंटे में पार कर लिया। बाहर गेस्ट हाउस के पास ही आकर एक होटल में दक्षिण भारतीय भोजन किया।

आकर्षण का केंद्र है मनमोहक डैम

बच्चे डैम देखने के लिए इतने उतावले थे। इसलिए भोजन के लिए अल्पविश्राम की अर्जी भी नामंजूर हो गई। हमें तुरंत टैक्सी करके श्रीशैलम बांध देखने के लिए निकलना पड़ा। श्रीशैलम में एक अच्छी बात यह भी थी कि यहां भाषा की समस्या नहीं मिली। वैसे यहां मुख्य भाषा तेलुगु ही है, लेकिन हिंदीभाषियों के लिए कोई असुविधा नहीं है। हिंदी फिल्मों के गाने यहां ख़ूब चलते हैं। जिस टैक्सी में हम बैठे उसमें ‘बजावें हाय पांडे जी सीटी पहले से ही जारी था। मैंने ड्राइवर से पूछा, ‘इसका मतलब समझते हो? ‘हां, मतलब टीक से समझता हाय’ उसने दोनों तरफ़ सिर हिलाते हुए कहा, ‘यहां टूरिस्ट लोग ख़ूब आता रहता है न, तो हम लोग हिंदी अच्चे से जानता है।’ उसने पूरा वृत्तांत बताना शुरू कर दिया। यहां कब-कब किस-किस फिल्म की शूटिंग हुई, विशेषकर श्रीशैलम मंदिर के माहात्म्य को ही लेकर कौन-कौन सी फिल्में बनीं।

साक्षी गणेश का दर्शन अवश्य करें

कौन-कौन से मशहूर लोग यहां अकसर मल्लिकार्जुन स्वामी के दर्शन के लिए आते हैं… आदि-आदि। क़स्बे से डैम तक पहुंचने में केवल आधे घंटे का समय लगा, वह भी तब जबकि रास्ते में हमने साक्षी गणपति का भी दर्शन कर लिया। ऐसी मान्यता है कि मल्लिकार्जुन स्वामी के दर्शन-पूजन के लिए जो लोग आते हैं, उनका हिसाब-किताब गणपति ही रखते हैं और यही उनका साक्ष्य देते हैं। इसीलिए इनका नाम साक्षी गणपति है। यह जगह सचमुच आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति का खजाना भी है।

बंद डैम का आनंद

डैम पहुंच कर बच्चे अभिभूत थे। हालांकि उस समय यहां पानी कुछ ख़ास नहीं था। पानी के अभाव में कोई टर्बाइन नहीं चल रही थी। लेकिन, चारों तरफ़ पहाड़ों से घिरी नदी की गहरी घाटी। उस पर बनी विशाल बांध परियोजना। दूर-दूर तक ख़तरनाक मोड़ों वाली बलखाती सड़क। बच्चों के लिए यह सौंदर्य ही काफी था। वहां हमारे जैसे कई पर्यटक मौजूद थे। सबके नैसर्गिक मनोरंजन के लिए बंदरों के झुंड भी। व्यू प्वाइंट पर ही कुछ स्थानीय लोग मूंगफली बेच रहे थे और चाय की भी एक दुकान थी। चारों तरफ़पहाड़, सामने नदी, पेड़ों की छाया और आसपास उछलते-कूदते बंदरों के झुंड, कहीं गिलहरियां और कहीं तरह-तरह के पक्षियों की चहचहाहट… कुल मिलाकर यह माहौल अत्यंत मनोहारी हो गया था। सब जानते-देखते शाम के पांच बज गए थे और अब लौटना ज़रूरी था। लिहाज़ा हम वापस श्रीशैलम लौट चले।

मनमोहक है गोपुरम की रात्रिकालीन सज्जा

थोड़ी देर विश्राम के बाद शाम सात बजे फिर निकल पड़े, नगर दर्शन के लिए। थोड़ी देर मंदिर के मुख्य द्वार के सामने बैठे रहे। गोपुरम वहां से साफ़ दिखाई दे रहा था और उसकी रात्रिकालीन सज्जा भी अद्भुत थी। झिलमिलाती लाइटों से सजे गोपुरम की छटा देखते ही बनती थी। पूरे दिन गर्मी झेलने के बाद अब शाम की ठंडी-ठंडी हवा हमें बेहद सुकून दे रही थी। थोड़ी देर बैठने के बाद हम नगर दर्शन के लिए निकल पड़े। धार्मिक स्थलों की तरह यहां भी बाजार पूजा सामग्रियों से ही अटा पड़ा है। खऱीदने लायक चीज़ों में यहां जंगल का असली शहद और काजू की गजक है। शहद के बारे में एक स्थानीय व्यक्ति ने पहले ही बता दिया था कि इसमें धोखाधड़ी बहुत है। असली शहद लेना हो तो उसे म्यूजिय़म (चेंचू लक्ष्मी ट्राइबल म्यूजिय़म) से ही लें। गजक भी 400 रुपये किलो था।

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टाइगर प्रोजेक्ट की सैर

आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति का खजाना भी है यहां। उसे देखने कि लिए हम सुबह आठ बजे तैयार हो गए। फिर टैक्सी से टाइगर प्रोजेक्ट रवाना हुए। वहां अपने वाहन से आप जंगल के अंदर नहीं जा सकते। जंगल के भीतर सैर-सपाटे के लिए जीप सफारी लेनी पड़ती है। इसका शुल्क उस समय 800 रुपये था। हम चल पड़े। जंगल के भीतर थोड़ी दूर ही अच्छी सड़क है। इसके बाद कच्चा रास्ता। वह भी थोड़े दिन पहले बारिश होने के नाते कई जगह कीचड़ से भरा हुआ था। इस रास्ते पर चलना सधे हुए ड्राइवरों के ही बस की बात है। बीच-बीच में जंगल इतना घना कि दोपहर में ही अंधेरा जैसा लगता है। ड्राइवर-सह-गाइड महोदय हमें आश्वस्त कर रहे थे, ‘डरने का तो कोई बात नहीं। जानवर हमला नहीं करते। बस, आप लोग चीखना मत। जानवर ऐसे ई घूमता, कुछ नहीं बोलता।’

राजा का सम्मान

मुश्किल तब हुई, जब चौकड़ी भरता हिरनों का एक समूह हमारे सामने ही सड़क पर भागने लगा। ड्राइवर ने जीप रोकी और तुरंत मुड़कर इशारा किया। उसके चेहरे पर जैसा ख़ौफ़ दिखा, उसने बच्चों की सिट्टी-पिट्टी गुम कर दी। अब कोई बोल नहीं रहा था। आगे बैठे होने के नाते उसने मुझे कोहनी मार कर समझा दिया था कि ये नाटक है। धीरे से उसने यह भी बताया, ‘अब्बी, एकदम अब्बी कहीं से राजा आएगा। बोलने का नईं, एकदम नईं। कऱीब बीस मिनट बाद जंगल में बाईं तरफ़ इशारा किया। घने जंगल में वाक़ई महाराजाधिराज सपरिवार चले जा रहे थे। वे बड़े इत्मीनान से जा रहे थे। इसके पहले कि बच्चे कुछ बोलें, उन्हें एक बार फिर चुप रहने का इशारा कर दिया गया। कऱीब दस मिनट तक हम सब उन्हें जाते हुए निहारते रहे। जब वे घने जंगलों में गुम हो गए तो हम भी आगे बढ़ गए।

घूमने के लिए कई और जगहें

घूमने के लिए यहां और भी कई जगहें हैं। आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति का भी खजाना है। इनमें पंचमठम का श्रीशैलम के इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन मठों में घंट मठम, भीमशंकर मठम, विभूति मठम, रुद्राक्ष मठम और सारंगधारा मठम शामिल हैं। इनका इतिहास सातवीं शताब्दी से शुरू होता है। तब यहां कई मठ थे। अब केवल यही पांच बचे हैं। वे भी जीर्ण हालत में हैं। ये मठ श्रीशैलम मुख्य मंदिर से कऱीब एक किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित हैं। श्रीशैलम से आठ किमी दूर स्थित शिखरम समुद्रतल से 2830 फुट की ऊंचाई पर है। शिखरेश्वरम मंदिर में गर्भगृह और अंतरालय के अलावा 16 स्तंभों वाला मुखमंडपम भी है। यहां के इष्ट वीर शंकर स्वामी हैं। उन्हें शिखरेश्वरम के रूप में पूजा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार इसके शिखर के दर्शनमात्र से मल्लिकार्जुन स्वामी के दर्शन का फल प्राप्त होता है।

थोड़ा और समय होता…

सुंदर जलप्रपात फलधारा पंचधारा क़स्बे से पांच किलोमीटर और अक्क महादेवी की गुफाएं कऱीब 10 किलोमीटर दूर हैं। समय हो तो आप हटकेश्वरम, कैलासद्वारम,भीमुनि कोलानू, इष्ट कामेश्वरी मंदिर, कदलीवनम, नगालूती, भ्रमरांबा चेरुवु, सर्वेश्वरम और गुप्त मल्लिकार्जुनम को भी अपनी यात्रा योजना में शामिल कर सकते हैं। यहां आकर हमें एहसास हुआ कि इस छोटे से क़स्बे की घुमक्कड़ी का पूरा आनंद लेने के लिए कम से कम एक हफ़्ते का समय चाहिए। हम इतना समय निकाल नहीं सकते थे। लिहाज़ा चार बजे की बस से हैदराबाद के लिए रवाना हो गए। आध्यात्मिक ही नहीं प्रकृति के खजाने को ठीक से देखने के लिये अपने आप से इस वादे के साथ कि फिर मिलेंगे। जरूर मिलेंगे। आगे बढ़ने पर तो श्रीशैलम से हैदराबाद के बीच प्रकृति की मनोरम झांकियों ने हमारे मन का भारीपन भी खुद हर लिया।

इस तरह पहुंचें

जो रास्ता हमने चुना, वह चुनने की ग़लती आप न करें। हैदराबाद तक भारत के हर बड़े शहर से हवाई, रेल और सड़क मार्गों का सीधा संपर्क है। इसके बाद सिर्फ सड़क है। आप चाहें तो अपने या किराये के वाहन से जा सकते हैं। साधारण और लग़्जऱी बसें भी नियमित रूप से उपलब्ध होती हैं। हैदराबाद से 215 किलोमीटर की यह दूरी तय करने में आम तौर पर चार से छह घंटे लगते हैं। स्थानीय भ्रमण के लिए आप टैक्सी या ऑटो ले सकते हैं। शहर में बड़ी संख्या में बजट होटल, गेस्ट हाउस और धर्मशालाएं हैं। कुछ में आप पहले से बुकिंग भी करा सकते हैं। न भी हो सके, तो चिंता न करें। वहां पहुंच कर भी ठहरने की व्यवस्था आसानी से हो जाएगी।

साभार- इष्ट देव सांकृत्यायन

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