Only incompetent and lazy cry for luck : अयोग्य और आलसी ही रोते हैं भाग्य का रोना। योग्य और परिश्रमी अपनी राह बनाते हैं। यह संभव है कि असफलता बार-बार मिले। लेकिन लगे रहें तो सफलता अवश्य मिलेगी। आज इसी पर आधारित है एक बोध कथा। पढ़ें और खुद विचार करें।
संगीतज्ञ के परिवार की बोध कथा
एक घर में सैकड़ों वर्षों से एक वीणा रखी हुई थी। किसी जमाने में उस खानदान में बहुत बड़ा संगीतज्ञ था। तब वह घर संगीत का केंद्र होता था। संगीतज्ञ की मौत के बाद भी कुछ पीढ़ी तक संगीत के ज्ञान वाले लोग थे। तब कभी-कभी वीणा का उपयोग हो जाता था। कालांतर में परिवार के लोगों से संगीत लुप्त हो गया। ऐसे में वीणा अनुपयुक्त होकर रह गई। कई बार वह लोगों को घर में विवाद का कारण बन जाती थी। क्योंकि घर में जब कोई गंभीर बात चलती, कोई बच्चा वीणा को छेड़ देता। उससे तेज ध्वनि निकलती थी। शोर-गुल से बड़े-बूढ़े नाराज हो जाते। कहते, बंद करो शोरगुल। ऐसे में घर में मेहमान आता तो वीणा छिपा दी जाती कि कहीं कोई बच्चा उसके तारों को न छेड़ दे।
किसी जमाने में घर की शान वीणा को कचरे में फेंका
आखिरकार घर वाले वीणा से तंग आ गए। कोई पूजा करता, तो बच्चे वीणा छेड़ देते। कभी कोई बच्चा वीणा गिरा देता। तब घर में झनकार की तेज आवाज होती थी। रात में लोग सोए होते, चूहे दौड़ जाते, बिल्लियां दौड़ जाती, वीणा गिर जाती, आवाज हो जाती। घर में कोलाहल हो जाता और नींद टूट जाती। आखिर घर के लोगों ने तय किया कि वीणा को हटा देना उचित होगा। यह बड़े उपद्रव की चीज हो गई है। एक दिन सुबह ही वीणा को बाहर कचरे में डाल दिया। वे घर में वापस भी नहीं लौट पाए थे कि उनके पीछे कोई अद्भुत स्वर लहरी गूंज उठी। कोई भिखारी रास्ते से गुजर रहा था। उसने वीणा उठा ली और बजाने लगा। वे ठगे से रह गए। आवाज का पीछा करते पहुंचे। देखा कि वृक्ष के नीचे कोई भिखारी वही वीणा बजा रहा है।
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भिखारी को वीणा बजाते देख-सुनकर हुए मंत्रमुग्ध
मंत्रमुग्ध करने वाली स्वर लहरियों से वे चमत्कृत रह गए। उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने भिखारी से कहा–क्षमा करना। हमें पता नहीं था कि वीणा में इतना संगीत छिपा है। हमारे घर में तो एक उपद्रव का कारण थी। इसलिए हम इसे बाहर फेंक गए। तुमने हमारी आंखें खोल दी है। इस पर भिखारी ने कहा, वीणा में कुछ भी नहीं छिपा है। जैसी अंगुलियां और जैसा ज्ञान लेकर आदमी वीणा के पास जाता है वही वीणा से प्रकट होने लगता है। संगीत का ज्ञान हो। उंगलियां वीणा बजाने की अभ्यस्त हों। तब मधुर स्वर लहरियां निकलेंगी। अन्यथा वीणा बेकार और शोर का कारण ही लगेगी। यही सिद्धांत जीवन पर भी लागू होता है। जैसी दृष्टि लेकर जीवन के पास जाते हैं, वही प्रकट होने लगता है। हमारी अपात्रता है कि हम आनंद को जन्म नहीं दे पाते और दोष भाग्य को देते हैं।
अयोग्य और आलसी ही देते हैं भाग्य को दोष
असफल लोग पात्रता पैदा नहीं कर पाते। ताकि जीवन से संगीत उत्पन्न हो। वे दोष देते हैं अपने भाग्य को। कहते हैं कि जीवन असार है। जीवन व्यर्थ है। नर्क है और उसमें सिर्फ दुख है। वह छोड़ देने योग्य है। अब जीवन को छोड़ देने योग्य समझ लिया। अर्थात जब वीणा को हम कचरे में फेंक आए, तो अगर वह टूट जाए या असार हो जाए। उसके तार बिखर जाएं तो आश्चर्य क्या है? उसमें वीणा का क्या दोष है? दोष हममें होता है। हमें जीवन को समझना चाहिए। उसे जीने की कला सीखकर उसमें हर रंग भरना चाहिए। तंत्र, मंत्र, योग, ध्यान और सकारात्मक सोच के अभ्यास से जीवन में इंद्रधनुष के सातों रंग भरे जा सकते हैं। हां, इसके लिए योग्य गुरु की तलाश जरूरी है। उन्हें ढूंढना भी ज्यादा मुश्किल नहीं है। सिर्फ आपमें इच्छाशक्ति होनी चाहिए।
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