Perform Havan without a Pandit using the brief Havan method : संक्षिप्त हवन विधि से बिना पंडित के स्वयं करें हवन। हवन की उपयोगिता वैज्ञानिक शोधों से भी साबित हो चुकी है। पूजा-पाठ में तो यह महत्वपूर्ण है ही। इससे मंत्र जाग्रत हो जाते हैं। उनकी शक्ति बढ़ जाती है। अत: साधकों को बीच-बीच में हवन करते रहना चाहिए। हवन ईश्वरीय शक्ति के दोहन की आसान और प्रभावी विधि है। इसके लिए आज के युग में योग्य पंडित का मिलना कठिन है। मिल भी जाएं तो उनको झेलना कठिन होता है। व्यस्त जीवनशैली में पंडितों को अधिक समय, श्रम व भारी खर्च दे पाना रूटीन में मुश्किल होता है। इसे देखते हुए ही शास्त्र में संक्षिप्त हवन विधि का प्रावधान है। इसमें बिना तामझाम के करीब आधे घंटे में स्वयं हवन करना संभव है। मैंने इसे अत्यंत कारगर पाया है।
इस तरह करें तैयारी
घर में पहले किसी स्थान को धो-पोंछकर साफ कर लें। फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाएं। भौतिक कार्य के लिए पूर्व और आध्यात्मिक लक्ष्य के लिए उत्तर दिशा श्रेष्ठ होता है। अपने सामने हवन कुंड रखें। वैसे विभिन्न मंत्रों के लिए खास लकड़ी और हवन सामग्री का प्रावधान है। उसके न मिलने पर आपातकाल में किसी भी लकड़ी से काम चला सकते हैं। आम की लकड़ी मिले तो अधिक अच्छा विकल्प होगा। हवन कुंड को बाजार से रेडिमेड खरीद लेना अच्छा रहता है। वैसे घर में रेत पर ईंटे डालकर भी हवन कुंड बनाया जा सकता है। हालांकि उसमें गहराई नहीं होती है। अतः अग्नि ठीक से प्रज्ज्वलित नहीं हो पाती है। फिर भी मंत्र से कम संख्या में हवन करना हो तो काम चल जाता है।
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बाजार में तैयार हवन सामग्री उपलब्ध है। न मिलने पर खुद भी तैयार कर सकते हैं। इसके लिए काला तिल, चावल, चीनी, जौ एवं घी को मिला लें और साफ पात्र में रख लें। इसमें आवश्यकतानुसार और प्रयोग भी किया जा सकता है। इस पर विद्वानों को आपत्ति हो सकती है लेकिन मुझे यह काफी फायदा पहुंचाने वाला लगा है। एक विकल्प यह भीू है कि बाजार में उपलब्ध सामग्री में अपनी सामग्री मिला ली जाए। ध्यान रहे कि हर मंत्र में सामग्री में भी फेरबदल होता है। जैसे धन के लिए तिल, मधु, चीनी आदि अत्यंत उपयोगी है। शत्रु व विघ्ननाश में सरसों, काली मिर्च आदि उपयोगी होता है। इसके साथ ही एक साफ पात्र में घी, दूसरे साफ पात्र में जल एवं घी देने के लिए सुरुप (न मिले तो साफ बड़े चम्मच से भी काम चला सकते हैं) लेकर बैठें। इसके बाद निम्न कार्य करें।
संक्षिप्त हवन विधि का तरीका
हवन कुंड में तीन छोटी लकड़ी से अपनी ओर नोंक वाला त्रिकोण बनाएं। उसे-–“अस्त्रायफट”– कहते हुए तर्जनी व मध्यमा उंगली से घेरें।
फिर मुठ्ठी बंद कर तर्जनी उंगली निकाल कर — “हूं फट”—मंत्र पढ़ें।
इसके बाद लकड़ी डालकर कर्पूर व धूप देकर—“ह्रीं सांग सांग सायुध सवाहन सपरिवार” –जिस मंत्र से हवन करना हो उसे पढ़कर अंत में– “नम:”– कहें।
माचिस की तीली से प्रज्ज्वलित कर-ह्रीं क्रव्यादेभ्यो: हूं फट”– कहते हुए तीली को हवन कुंड से किनारे नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) कोण में फेंकें।
तदंतर –रं अग्नि अग्नेयै वह्नि चैतन्याय स्वाहा– मंत्र से आग में घी डालें।
फिर हवन कुंड को स्पर्श करें। –ह्रीं अग्नेयै स्वेष्ट देवता नामापि– मंत्र पढ़ें।
इसके बाद-ह्रीं सपरिवार स्वेष्ट रूपाग्नेयै नम:-पढ़ें। संक्षिप्त हवन विधि से आप पूरा फल हासिल कर सकते हैं।
तब घी से चार आहुतियां दें और जल में बचे घी को देते हुए निम्न चार मंत्र पढ़ें।
1-ह्रीं भू स्वाहा (अग्नि में)। इदं भू (पानी में)।
2-ह्रीं भुव: स्वाहा (अग्नि में)। इदं भुव: (पानी में)।
3-ह्रीं स्व: स्वाहा(अग्नि में)। इदं स्व:(पानी में)।
4-ह्रीं भूर्भुव:स्व: स्वाहा (अग्नि में)। इदंभूर्भुव: स्व: (पानी में)।
मूल मंत्र से दें अपेक्षित संख्या में आहुतियां
निश्चित आहुतियां पूर्ण होने के बाद सुरुप को घी में डूबाएं। उससे पहले अग्नि और फिर पानी से भरे पात्र में क्रमशः चार बार घी दें। मंत्र नीचे दिए जा रहे हैं।
1-ह्रीं भू स्वाहा(अग्नि में)। इदं भू (पानी में)।
2-ह्रीं भुव: स्वाहा(अग्नि में)। इदं भुव: (पानी में)।
3-ह्रीं स्व: स्वाहा(अग्नि में)। इदं स्व: (पानी में)।
4-ह्रीं भूर्भुव:स्व: स्वाहा (अग्नि में)। इदंभूर्भुव: स्व: (पानी में)।
ऐसे करें पूर्णाहुति
हवन पूर्ण होने के बाद पूर्णाहुति में सुपारी या गोला से नीचे दिए मंत्र को पढ़ें।
ह्रीं यज्ञपतये पूर्णो भवतु यज्ञो मे ह्रीस्यन्तु यज्ञ देवता फलानि सम्यग्यच्छन्तु सिद्धिं दत्वा प्रसीद मे स्वाहा क्रौं वौषट।
मंत्र पूरे होने के बाद यज्ञ करने वाले सुरुप (चम्मच) में यज्ञ की राख लगा लें और फिर
ह्रीं क्रीं सर्व स्वस्ति करो भव– मंत्र से पहले स्वयं तिलक करें। बाद में दूसरों को भी इसी मंत्र से तिलक लगाएं।
अंत में निम्न मंत्र पढ़ें।
ह्रीं यज्ञ यज्ञपतिम् गच्छ यज्ञं गच्छ हुताशन स्वांग योनिं गच्छ यज्ञेत पूरयास्मान मनोरथान अग्नेयै क्षमस्व। इसके बाद जल पांत्र से सुरुप में जल लेकर हवन कुंड में छींटा दें। तदंतर पात्र यथास्थान उलट कर रख दें।
नोट-संक्षिप्त हवन विधि से भी पूरा फल मिलता है। विधि भी काफी मिलती-जुलती है। हवन कुंड की अग्नि को पूरी तरह शांत होने दें। बाद में बची सामग्री को समेट कर किसी नदी जलाशय में प्रवाहित करें। आज के परिप्रेक्ष्य में भूमि में गड्ढा खोदकर डालकर ढंक देना उचित होगा। यदि इसकी राख को खेतों या गमलों में डालें तो निश्चय ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भारी बढ़ोतरी दिखेगी।
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