positivity is big force : सकारात्मकता है बड़ी ताकत इससे मिलती है निश्चित सफलता। अधिकतर लोग अपने जीवन में सफलता या असफलता का कारण नहीं समझ पाते हैं। आप उनके जीवन का विश्लेषण करें। देखेंगे कि सफल लोगों के विचार सकारात्मकता से भरे होते हैं। उनमें उमंग और उत्साह रहता है। वे खुद से और सफलता से प्रेम करते हैं। असफल लोग इसके विपरीत होते हैं। वे नकारात्मक विचारों से भरे होते हैं। उनमें क्रोध, घृणा, जलन और दुख भरे होते हैं। सभी सफल लोग जाने-अनजाने प्रेम और सकारात्मकता की शक्ति का दोहन करते हैं। उनमें से अधिकतर लोग इस सिद्धांत से परिचित नहीं होते। यह उनके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। यह उनके स्वभाव में शामिल होता है। इसी कारण से सफल होते हैं।
मैं नहीं जानता कि वह कौन सी शक्ति है। मैं इतना जानता हूं कि वह है। सच्चाई यह है कि प्रेम और सकारात्मकता ब्रह्मांड की सबसे बड़ी शक्ति है। –टेलीफेन के आविष्कारक अलेक्जेंडर ग्रहम बेल
सच्चाई और प्रेम ब्रह्मांड की सबसे बड़ी शक्ति
घृणा, हिंसा और नकारात्मकता भयानक होती है। लेकिन उनकी हार होती है। प्रेम और सकारात्मकता की जीत होती है। उसे लंबे समय तक याद रखा जाता है। कृष्ण महाभारत के सूत्रधार थे। पांडवों की जीत उन्हीं की देन थी। लेकिन लोग उनके उस रूप की पूजा नहीं करते। लोग प्रेम से सराबोर राधा-कृष्ण को पूजते हैं। कृष्ण की प्रेम दीवानी मीरा को कौन नहीं जानता है। प्रेम की शक्ति के बल पर वह महान बनीं। त्रिदेवों में सबसे चर्चित महादेव संहार के देवता हैं। लेकिन उनकी पूजा प्रेम से अभिभूत होने वाले भोलेनाथ के रूप में होती है। जब लोग त्रिदेवों के उग्र रूप को स्वीकार नहीं करते तो आम मनुष्य की नकारात्मकता को कैसे स्वीकार करेंगे? भगवान भी प्रेम के भूखे कहे जाते हैं। वे भक्त के वश में हो जाते हैं। क्योंकि सकारात्मकता है बड़ी ताकत, इसमें कुछ भी करने की क्षमता होती है।
वैज्ञानिक है सकारात्मकता की शक्ति
वैज्ञानिकों ने भी सकारात्मक शक्ति की पुष्टि की है। इसे ऐसे समझें। ब्रह्मांड की हर वस्तु इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन से बनी है। ये सभी ठोस या द्रव नहीं बल्कि तरंगों के रूप में हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ब्रह्मांड ही तरंगों से नियंत्रित और संचालित है। विचार और प्रेम की शक्ति भी तरंगों पर आधारित है। यही कारण है कि वह ब्रह्मांड की शक्तियों को सीधे प्रभावित करती है। न्यूटन के सिद्धांत के अनुसार हमारे पास प्रेम और सकारात्मकता लौट कर आती है। यही नियम नकारात्मकता और घृणा के साथ लागू होता है। अतः आवश्यक है कि सफल और सुखी जीवन के लिए हम अपने मन को नियंत्रित करें। उसे प्रेम और सकारात्मकता की ओर मोड़ें। इससे हम दूसरों पर नहीं, बल्कि खुद पर एहसान करेंगे। भगवान कृष्ण ने भी कहा है- जो लोग मन को नियंत्रित नहीं करते हैं, मन उनका शत्रु बन काम करता है।
ऋषि-मुनि जानते थे सकारात्मकता का सिद्धांत
सकारात्मकता है बड़ी ताकत और ऋषि-मुनि इसे जानते थे। वे इसका उपयोग करना जानते थे। वे त्रिकालदर्शी थे। श्राप और वरदान देने में समर्थ थे। बाद में लोग भौतिक सुख-सुविधाओं में फंसे। धर्म और आध्यात्म से दूर होते गए। इससे उनकी विशिष्ट क्षमता भी कम हुई। इसका यह अर्थ नहीं सिद्धांत गलत है। उन सिद्धांतों को अपना कर हम आज भी असंभव को संभव बना सकते हैं। महान ऋषि कणाद ने द्वयाणुक (दो अणु वाले) तथा त्रयाणुक की चर्चा की थी। कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर के अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के हजारों साल पहले कणाद ने यह रहस्य उजागर किया। उन्होंने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है।
महान ऋषि कणाद ने बताए थे द्रव्य के गुण व गति के नियम
महर्षि कणाद ने ही न्यूटन से पूर्व गति के तीन नियम बताए थे। उनके निम्न मंत्र से इस सिद्धांत की पुष्टि होती है।
वेग: निमित्तविशेषात कर्मणो जायते। वेग: निमित्तापेक्षात कर्मणो जायते नियतदिक क्रियाप्रबन्धहेतु। वेग: संयोगविशेषविरोधी। (वैशेषिक दर्शन)।
अर्थ- वेग या गति पांच द्रव्यों पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है। नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट या उत्पन्न होता है। वैज्ञानिक भी भारतीय दर्शन के सिद्धातों को मानने लगे हैं। उन्होंने मनुष्य में अद्भुत शक्तियों के वास होने के सिद्धांत को स्वीकार किया है। वह यह भी मानते हैं कि मानसिक शक्तियों के सधे उपयोग से कई बड़े चमत्कार संभव हैं। क्वांटम भौतिक शास्त्री डेविड बॉम (ने तो यहां तक कहा है। एक मायने में मनुष्य ब्रह्मांड का संक्षिप्त रूप है। इसलिए उससे ही ब्रह्मांड के सुराग मिल सकते हैं। सकारात्मकता है बड़ी ताकत जिसे विज्ञान ने भी स्वीकार किया है।
तीसरा भाग (जारी)
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