Purnagiri Temple is Mahakali peeth : महाकाली पीठ है मां पूर्णागिरी का मंदिर। यह किसी परिचय का मोहताज नहीं है। समुद्र तल से 5500 फीट की ऊंचाई पर देवभूमि उत्तराखंड की अत्यंत मनोरम पहाड़ी पर स्थित है यह मंदिर। दुर्गम चढ़ाई के बाद भी प्रतिदिन बड़ी संख्या में आने वाले भक्त मंदिर की महिमा व प्रभाव को बताने के लिए काफी हैं। इसे कुछ लोग शक्तिपीठ मानते हैं तो कुछ सिर्फ सिद्धपीठ। इस पर विवाद संभव है लेकिन इसमें शक नहीं कि यह श्रद्धालुओं की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। कठिन यात्रा के बाद भी यहां श्रद्धालु बार-बार यहां आते हैं। इसे शक्तिपीठ मानने वाले लोगों के अनुसार यहां सती की नाभि गिरी थी। मान्यता है कि माता जिन भक्तों को बुलावा भेजती हैं, वही उनके दर्शन कर पाता है। इस स्थान को महाकाली का पीठ माना जाता है। अत: काली के साधकों के लिए यह अत्यंत उपयोगी है। वैसे तो माता साधक ही नहीं यहां आने वाले हर भक्त को अपनी दिव्यता का बोध कराती हैं और उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। इसके बावजूद इसमें कोई शक नहीं कि यह साधकों के लिए एक तरह से स्वर्ग है।
साल भर लगा रहता है भक्तों का तांता
मंदिर के पास ही काली नदी बहती है जो यहीं से पहाड़ों की ऊंचाई छोड़कर मैदान में उतरती है। वैसे तो सालों भर भक्त यहां आते रहते हैं लेकिन यहां साधना व विशेष लक्ष्य के लिए चैत्र नवरात्र को सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस दौरान यहां मेला भी लगता है। मंदिर परिसर से पहाड़ी इलाकों, विशेषकर नेपाली क्षेत्र का सुंदर दृश्य देखने को मिलता है।
मंदिर के रास्ते में सिद्ध बाबा मंदिर का दर्शन भी आवश्यक माना जाता है। इसके साथ ही तांबे की विशाल मंदिर जिसका नाम झूठा मंदिर है, लोगों को आकर्षित करता है। पास में ही ब्रह्मादेवी मंदिर, पांडवों की रसोई तथा भीड़ द्वारा रोपे गए चीड़ के वृक्ष सहज ही लोगों के आकर्षण के केंद्र हैं। पास में ही नेपाल है। सीमा के दोनों ओर भव्य अलौकिक सुंदरता और सादगी नजर आती है। वह बरबस लोगों को अपनी ओर खींचती और भावविभोर करती है।
साधना के लिए महत्वपूर्ण स्थान
महाकाली पीठ है मां पूर्णागिरी मंदिर। इस स्थान में साधना की महत्ता को इससे भी समझ सकते हैं कि माता पूर्णागिरी के पैदल यात्रा मार्ग में टुन्नास नामक जगह पर देवराज इंद्र ने भी तपस्या की थी और मनचाहा लक्ष्य हासिल किया था। यह पूरा क्षेत्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत अनुकूल है। यहां पहुंचते ही इस स्थान की दिव्यता, शांति एवं आत्मिक खुशी को महसूस किया जा सकता है। यहां रहकर कुछ दिन साधना करने पर साधक को नई ऊंचाई हासिल होनी तय है। यहां का मौसम गर्मी के लिहाज से काफी अनुकूल है। ठंड अवश्य बहुत पड़ती है। अप्रैल में भी थोड़े-बहुत गर्म कपड़ों की आवश्यकता महसूस होती है। अत: बेहतर यही होगा कि गर्मी के मौसम में यहां आकर माता के दर्शन, पूजन व साधना किए जाएं। हालांकि साधकों का आवागमन वर्ष भर लगा रहता है।
ऐसे पहुंचें मंदिर
मंदिर तक पहुंचने के लिए उत्तराखंड के उधमसिंह नगर होकर टनकपुर तक बस या ट्रेन से पहुंचा जा सकता है। मात्र 92 किलोमीटर की दूरी पर ही चंपावत जिला मुख्यालय भी है। पर्यटकों के लिए वह भी दर्शनीय स्थल है। टनकपुर एक तरह से अब तक कैलाश-मानसोवर यात्रा के लिए भी प्रारंभिक पड़ाव की तरह रहा है। अब नए यात्रा मार्ग की योजना के मद्देनजर इसका महत्व थोड़ा कम हो जाएगा। कुमाऊं के ऊंचे पहाड़ों तक पहुंचने के लिए यह एक तरह से मैदान का अंत है। टनकपुर से मंदिर की दूरी मात्र बीस किलोमीटर है। वहां से थोड़ी और दूर तक ही वाहन की सुविधा ली जा सकती है। अंत में पैदल चलना पड़ता है। रास्ता दुर्गम है इसलिए श्रद्धालुओं को थोड़ी कठिनाई तो होती है लेकिन दिव्य अलौकिक अहसास भी होता है।
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