तुलसीदास जी को अंततः मिल गए प्रभु राम

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रामायण से सीखें कि किनसे कैसा व्यवहार उचित
रामायण से सीखें कि किनसे कैसा व्यवहार उचित।

Ram Bhakt Tulsidas finally got Lord Ram : तुलसीदास जी को अंततः मिल गए प्रभु राम। उनकी भगवान राम में अगाध श्रद्धा थी। उन्होंने उनसे संबंधित कई ग्रंथ लिखे। उनकी रचना रामचरित मानस हिंदुओं का सर्वाधिक प्रचलित धर्मग्रंथ बन गया है। करीब-करीब हर हिंदुओं के घर में वह मिल सकता है। उनकी वह रचना हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है। उसमें भक्ति की धारा के साथ ज्ञान की गंगा बहती है। उसकी विशिष्टता को इसी से समझ सकते हैं कि स्वयं भोलेनाथ ने उस पर हस्ताक्षर कर उसे मान्यता दी। भगवान राम के प्रेम में आकंठ डूबे तुलसीदास जी नित्य श्रद्धालुओं को रामकथा सुनाते थे। उसका प्रचार करते थे। क्या आप जानते हैं कि इतने महान ग्रंथों के रचयिता रामभक्त तुलसीदास जी को काफी समय तक अपने इष्ट श्रीराम के दर्शन के लिए तरसना पड़ा? बाद में हनुमान जी के प्रयास व रामकृपा से उन्हें दिव्य रूप के दर्शन हुए।

प्रेत ने बताया हनुमान जी का ठिकाना

घटना काशी की है। तुलसीदास जी गंगा के अस्सीघाट पर लोगों को नित्य रामकथा सुनाते थे। बड़ी संख्या में भक्तजन उसे सुनने आते थे। उसी दौरान उनकी मुलाकात एक प्रेत से हुई। उन्होंने प्रेत से भगवान राम से मिलाने का अनुरोध किया। प्रेत ने बताया कि यदि उसमें इतनी सामर्थ्य होती तो वह कब के स्वयं मुक्त हो जाता। लेकिन उसने कहा कि आप हनुमान जी के माध्यम से श्रीराम के दर्शन कर सकते हैं। तुलसीदास जी ने पूछा कि हनुमान जी कहां मिलेंगे? प्रेत ने जवाब दिया कि जहां भी रामकथा होती है, वहां हनुमान किसी न किसी रूप में अवश्य पहुंचते हैं। आप तो रोज कथा सुनाते हैं। वहां उनका नित्य आगमन होता है। संत ने कहा कि मैं उतनी भीड़ में उन्हें कैसे पहचान सकूंगा? प्रेत ने बताया कि कथा के दौरान वे नित्य कोढ़ी के रूप में सबसे पीछे बैठे रहते हैं।

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तुलसीदास ने हनुमान जी के चरण पकड़े

अगले दिन जब रामकथा सुनाने लगे तो उनके नेत्र पीछे बैठे कोढ़ी को ढूंढ रहा था। तुलसीदास जी को अंततः वे दिख गए। तुलसीदास कथा छोड़ व्यास गद्दी से कूद पड़े। वे सीधे कोढ़ी के पास पहुंचकर दोनों हाथों से चरण को कसकर पकड़ लिया। कोढ़ी ने कहा कि आप इतने बड़े संत हैं, मुझ अछूत के पैर क्यों पकड़े हुए हैं? कृपया वापस व्यास गद्दी पर जाएं और कथा शुरू करें। तुलसीदास जी ने कहा कि मैं आपको पहचान गया हूं। आप हनुमान जी हैं। मैं आपको तब तक नहीं छोड़ूंगा, जब तक मेरा कल्याण नहीं करेंगे। हनुमान जी ने पूछा कि क्या चाहते हैं। संत ने कहा कि भगवान राम के दर्शन की तीव्र इच्छा है। दिन-रात उन्हीं का ध्यान करता हूं। फिर भी दर्शन नहीं हो पा रहे हैं। आप कृपा कर दर्शन करा दें। बजरंग बली ने कहा कि इसके लिए आपको चित्रकूट जाना होगा।

राम के दर्शन की आस में संत चित्रकूट पहुंचे

भगवान के दर्शन की लगन में तुलसीदास चले गए। वहां वन में भगवान की खोज में भटकने लगे। कुछ देर बाद घोड़े पर सवार गोरे व सांवले रंग के दो युवा उनके पास पहुंचे और मार्ग के बारे में पूछा। संत ने बता दिया। थोड़ी देर बाद हनुमान जी आए और पूछा दर्शन हो गए। संत ने कहा नहीं। तब हनुमान जी ने कहा कि आपसे मार्ग पूछने वाले दोनों कुमार राम-लक्ष्मण ही तो थे। आपने पहचाना नहीं? अब तुलसीदास अत्यंत दुखी हुए। दोनों नेत्र आंसुओं से भर गए। पवनपुत्र से कहा कि बहुत बड़ी गलती हो गई। रामलला सामने आए और मैं अभागा उन्हें पहचान ही नहीं सका। तब संकटमोचक ने कहा कि चिंता नहीं करें। भगवान पुनः दर्शन देने आएंगे लेकिन इस बार चूकिएगा नहीं। संत ने कहा कि इस बार गलती नहीं होगी। मैं अब उन्हें अवश्य पहचान जाऊंगा।

आस हुई पूरी, रामलला के हुए दर्शन

कुछ दिनों के बाद तुलसीदास जी मंदाकिनी में स्नान कर घाट पर बैठे चंदन घिस रहे थे। मन भगवान के श्रीचरणों में लगा था। भक्तों को चंदन लगा भी रहे थे। तभी एक प्यारा सा सांवला बालक पहुंचा। कहा कि बाबा आपने बहुत अच्छा चंदन घिसा है। मैं भी इसे लगाऊं। संत ने सहज भाव में स्वीकृति दे दी। बालक चंदन लगाने लगा। हनुमान जी को लगा कि कहीं इस बार भी वे चूक न जाएं। उन्होंने तोते का रूप धरा। पास ही पेड़ पर बैठकर बोलने लगे।

चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर।

तुलसीदास चंदन घिरे, तिलक करे रघुवीर।

यह सुनते ही तुलसीदास जी ने बालक के चरण पकड़ लिये। तुलसीदास जी को अंततः भगवान ने दिव्य दर्शन दिए। उनकी जन्म-जन्मांतर की अभिलाषा पूरी हो गई।

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