रामचरित मानस मात्र धार्मिक ग्रंथ नहीं, विज्ञान भी

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सनातन धर्म विज्ञान से आगे, धंधेबाजों ने भ्रम फैलाया
सनातन धर्म विज्ञान से आगे, धंधेबाजों ने भ्रम फैलाया।

Ramcharit mans is not only religious book, it is also a science : रामचरित मानस मात्र धार्मिक ग्रंथ, विज्ञान भी नहीं है। मान्यता है कि हर व्यक्ति को इसे अपने घर में रखना चाहिए। उसका नित्य पाठ और मनन करना चाहिए। इसका कारण मात्र उसमें वर्णित कथाएं नहीं हैं। कथाओं के माध्यम से महान संत तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में ब्रह्मांड के कई रहस्यों को खोला है। यही स्थिति उन्हीं की अन्य रचनाओं में है। इसका अर्थ है कि तुलसीदास जी को ब्रह्मांड के कई ऐसे गूढ़ रहस्यों की जानकारी थी जिसे वैज्ञानिकों ने सदियों बाद जाना है। कई पश्चिमी देशों में भारतीय धर्मग्रंथों पर लगातार शोध हो रहे हैं। दुर्भाग्य से देश के युवा इसे पाखंड करार देकर दूरी बना रहे हैं। यहां मैं रामायण के एक प्रसंग को लेकर उसके विभिन्न पहलुओं की चर्चा करूंगा। अलगे अंक में हनुमान चालीसा के रहस्य की बात।

सदियों पहले किया था ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर

ऋषि, मुनि और संतों को आधुनिक विज्ञान के जन्म से भी सैकड़ों-हजारों साल पहले ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान था। वेद, पुराण, उपनिषद, गीता और रामायण में इसे सहज देख और जान सकते हैं। इसे लिखने का कारण लोगों को बताना है कि भारतीय मनीषी कितने पहुंचे हुए थे। ताकि वर्तमान पीढ़ी न सिर्फ उन्हें नमन करें, अपितु इस दिशा में और शोध कर धर्मग्रंथों में छुपे रहस्य को अभियान की तरह लोगों के सामने लाए। इससे सच्चा कल्याण होगा। इस कर्म में पहले बात रामचरित मानस की। उसमें सुंदरकांड के 25वें दोहे पर नजर डालें। प्रसंग लंका दहन का है। तुलसीदास लिखते हैं।

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग आकाश।

अर्थात- जब लंका में आग लगाई गई तो भगवान की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगे। हनुमान जी अट्टहास कर गरजे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे।

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उनचास मरुत का रहस्य

रामचरित मानस मात्र धार्मिक ग्रंथ नहीं को जानने के लिए उसके ऊपर लिखे दोहे पर पुनः दृष्टिपात करें। उसकी पहली पंक्ति के अंत में मरुत उनचास लिखा है। मरुत का अर्थ पवन, वायु या हवा है। अब दिमाग में प्रश्न कौंधता है कि ये उनचास पवन क्या और कौन से हैं? सामान्य मनुष्य तो पवन या वायु का एक ही अर्थ जानता है। फिर 49 (उनचास) तरह के पवन कहां से और कैसे आ गए? वेदों में इसकी विस्तृत जानकारी है। मौसम वैज्ञानिकों ने पवन के कई प्रकार की खोज तो कर ली है लेकिन उसकी जानकारी सतही है। वैज्ञानिक आज भी इसके प्रकार और रहस्यों की खोज में उलझे हुए हैं। कहा भी जाता है कि विज्ञान अभी शैशव अवस्था में है। दूसरी ओर वेद ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण है। समस्या उसे पिर से सामने लाने भर की है। अतः पहले बात वेद में वर्णित जानकारी की।

वेदों में है विस्तृत जानकारी

वेद में पवन की सात शाखाओं का वर्णन है। वे हैं- प्रवह, आवह, उद्वह, संवह, विवह, परवह और परावह। प्रवह पृथ्वी से लेकर मेघमंडल तक स्थित है। यह अत्यंत शक्तिशाली है। पृथ्वी से जल लेकर बादलों को उससे परिपूर्ण करता है। बादलों को एक से दूसरी जगह उड़कर ले जाता है। आवह सूर्यमंडल से बंधा है। उसी के प्रभाव से सूर्यमंडल का संचालन होता है। उद्वह चंद्रमंडल में स्थित होकर उसे संचालित करता है। पवन का चौथा रूप संवह नक्षत्र मंडल को संचालित करता है। इसी तरह विवह ग्रहमंडल, परिवह सप्तर्षिमंडल और परावह ध्रुव चक्र से आबद्ध होकर अन्यान्य मंडलों को संचालित करता है। इन सातों के सात-सात गण हैं। वे क्रमशः ब्रहम्लोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में देव रूप में विचरण करते हैं। इनको मिलाएं। हो गए 49 पवन। इसीलिए कहा है कि रामचरित मानस मात्र धार्मिक ग्रंथ नहीं।

आधुनिक विज्ञान में पवन के रूप

पवन को लेकर मौसम विज्ञानियों की खोज और जानकारी सीमित है। उनके अनुसार गैसों के गतिशील मिश्रण को पवन कहते हैं। इसका स्थान पृथ्वी के वायुमंडल में है। यह मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है। वे हैं- स्थाई पवन, मौसमी और दैनिक पवन, स्थानीय पवन और जेट पवन। स्थाई पवन के भी तीन प्रकार हैं। वे हैं- व्यापारिक पवन, पछुआ पवन और ध्रुवीय पवन। इनके अतिरिक्त पवन को प्रभावित कर उन्हें अलग-अलग रूप देने वाले तीन कारक भी होते हैं। वे हैं- प्राथमिक परिसंचरण, गौण परिसंचरण और अवनमन व विक्षोभ। इनसे पवन की गति मंद, गुम, आंधी-तूफान आदि रूप में दिखती है। विज्ञान के दायरे में फिलहाल पृथ्वी के वायुमंडल के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

क्रमशः

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