राम के आचार्य बने रावण, लंका विजय के लिए कराई पूजा

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राम के आचार्य बने रावण, लंका विजय के लिए कराई पूजा
राम के आचार्य बने रावण, लंका विजय के लिए कराई पूजा।

Ravan was acharya of Ram, peformed pooja for Lanka win :  राम के आचार्य बने रावण। लंका विजय के लिए कराई थी पूजा। दिया था दीर्घायु भव और विजयी भव का आशीर्वाद दिया। रावण द्वारा सीता हरण और राम-रावण के युद्ध के बारे में तो सभी जानते हैं। क्या आप यह भी जानते हैं कि रावण ने ही विशेष अनुष्ठान को विधिपूर्वक संपन्न कराकर राम की जीत का मार्ग प्रशस्त किया था? उन्होंने ही राम को युद्ध करने का अवसर दिया था। जबकि रावण को अच्छी तरह से पता था कि राम के हाथों उनका अंत निश्चित है। अन्यथा राम वचनबद्ध थे और रावण चाहते तो उन्हें बिना युद्ध किए वापस जाने पर विवश कर सकते थे। यह प्रसंग महर्षि कंबन की तमिल में लिखी रामायण कंब रामायण या रामावतारम में है।

रावण के नए रूप का परिचय

रावण को महान योद्धा, ज्ञानी, शिवभक्त तो सभी रामायण में लिखा गया है। तमिल रामायण इरामावतारम में रावण के नए रूप का परिचय मिलता है। फिलहाल रावण के इसी पहलू की चर्चा। रामचरितमानस में है कि खर और दूषण के वध के बाद रावण को राम के भगवान होने का आभास हो गया था। उन्होंने मुक्ति के लिए अपनी मृत्यु को आमंत्रित किया।

खर दूसन मो सम बलवंता। तिनन्हि को मारहि बिनु भगवंता।

सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लिन्ह अवतारा।

तौ मैं जाई बैरु हठि करऊं। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊं।

अर्थात- खर और दूषण मेरे समान बलवान थे। उन्हें भगवान के सिवा कोई मार नहीं सकता। यदि देवताओं को आनंद देने वाले और पृथ्वी का भार कम करने वाले भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक दुश्मनी करूंगा। उनके बाण से प्राण त्याग कर भवसागर पार कर लूंगा।

रामेश्वरम की स्थापना की तीन कथाएं

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख रामेश्वरम की स्थापना की तीन कथाएं हैं। एक मान्यता है कि रावण वध के बाद राम ने ब्रह्म हत्या के दोष के निवारण के लिए इसकी स्थापना की। दूसरे के अनुसार लंका विजय से पहले इसे स्थापित किया। कंब रामायण के अनुसार रावण के आचार्यत्व में राम ने महेश्वर के विग्रह की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने जामवंत को दूत बनाकर रावण को आचार्य बनने के लिए आमंत्रित करने के लिए लंका भेजा था। जामवंत ने रावण को निमंत्रण दिया। रावण ने पूछा कि क्या यह अनुष्ठान लंका विजय के लिए है। जामवंत के हां कहने पर रावण ने तनिक विचार कर इसे स्वीकार कर लिया। अपने ही खिलाफ युद्ध में जीत के लिए अनुष्ठान कराने का कलेजा आम इंसान में नहीं हो सकता है। इस तरह राम के आचार्य बने रावण।

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रावण ने दिखाई महानता

जब जामवंत ने अनुष्ठान की तैयारी के लिए पूछा तो रावण ने कहा कि यजमान वनवासी हैं। उनके लिए अनुष्ठान की तैयारी कठिन होगी। ऐसे में आचार्य की जिम्मेदारी है कि सारी तैयारी करे। यजमान से कह दीजिए कि वह अनुष्ठान के लिए सिर्फ स्नान, व्रत आदि कर तैयार रहें। जामवंत को विदा करने के बाद रावण तत्काल महेश्वर विग्रह की स्थापना की तैयारी में जुट गए। फिर अशोक वाटिका पहुंचे। उन्होंने माता सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना से समुद्र तट पर महेश्वर विग्रह की स्थापना कर रहे हैं। उन्होंने मुझे आचार्य वरण किया है। अब मेरी जिम्मेदारी की है कि उसकी सारी तैयारी करूं। अनुष्ठान में अर्द्धांगिनी की उपस्थिति अनिवार्य होती है। अतः आप विमान पर सवार होकर मेरे साथ चलें। ध्यान रहे कि आप वहां भी रावण के अधीन रहेंगी। अनुष्ठान खत्म होने के बाद विमान में बैठ जाएंगी।

बिना अर्द्धांगिनी के अनुष्ठान संभव नहीं

स्वामी का आचार्य स्वयं का आचार्य होता है। अतः माता ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया। रावण ने उन्हें सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद दिया। इसके बाद वे आकाश मार्ग से समुद्र तट पर पहुंचे। सीता को विमान में छोड़कर वे राम के सम्मुख पहुँचे। भगवान ने हाथ जोड़कर उनका स्वागत किया। रावण ने दीर्घायु भव और लंका विजयी भव का आशीर्वाद दिया। उनके इस आशीर्वाद से सभी चौंक गए। फिर बारी आई शिव के विग्रह स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू करने की। रावण ने कहा-यजमान अर्द्धांगिनी कहां हैं? उन्हें यथास्थान बैठाएं। श्रीराम ने हाथ जोड़कर कहा कि यदि यजमान असमर्थ हो तो आचार्य श्रेष्ठ विकल्प से भी अनुष्ठान कर सकते हैं। राम के आचार्य बने रावण ने जवाब दिया कि प्रमुख मसलों में ऐसा संभव नहीं है। आप न तो अविविहित हैं, न विधुर या परित्यक्त। ऐसे में पत्नी रहित अनुष्ठान नहीं कर सकते हैं।

राम के अनुष्ठान की सफलता के लिए सीता को लाए

भगवान ने आचार्य रावण से पूछा कि कोई और उपाय है? रावण ने कहा कि यजमान के असमर्थ होने पर आचार्य आवश्यक साधन जुटाते हैं और अनुष्ठान के बाद वापस ले जाते हैं। यदि आपको स्वीकार हो तो किसी को सागर तट पर भेज दें। वहां पुष्पक विमान में यजमान की पत्नी विराजमान हैं। उन्हें यहां बुला लें। भगवान ने हाथ जोड़कर मौन स्वीकृति दी। फिर विभीषण सहित कई लोग माता सीता को आदर सहित लेकर लौटे। उन्होंने सीता को राम के सात बैठने का आदेश दिया। फिर महेश्वर विग्रह स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। रावण ने लिंग विग्रह लाने के लिए कहा। राम ने निवेदन किया कि लिंग विग्रह को लेने के लिए हनुमान कैलाश गए हुए हैं। वे आने वाले हैं। आचार्य ने आदेश दिया कि अभी उत्तम मुहूर्त है। अब विलंब नहीं किया जा सकता। यजमान पत्नी सागर तट के बालू से लिंग विग्रह बनाए।

माता ने बालू से बनाया रामेश्वरम का लिंग विग्रह

आचार्य रावण के कहने पर माता सीता ने बालू से लिंग विग्रह बनाया। उसे ही स्थापित किया गया। फिर बारी आई आचार्य को दक्षिणा देने की। भगवान ने पूछा कि आपकी दक्षिणा क्या होगी। आचार्य ने कहा कि स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा संपत्ति नहीं हो सकती है। भगवान राम बोले आचार्य जानते हैं कि यजमान वनवासी है। फिर भी मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि आप जो भी मांगेंगे, वह मैं दूंगा। रावण के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। त्रिलोक के स्वामी से कुछ भी मांगा जा सकता था। यह भी कि वे बिना युद्ध के अयोध्या लौट जाएं। लेकिन रावण ने मांगा कि जब आचार्य मृत्यु शैय्या को ग्रहण करें तो यजमान सामने उपस्थित रहें। राम ने इसे निभाया भी। यह कथा थी राम के आचार्य बने रावण की।

रामेश्वरम में हैं हनुमदीश्वर

हनुमान जब लिंग विग्रह लेकर लौटे तो पहले से ज्योतिर्लिंग को स्थापित देखकर बेहद दुखी हो गए। उन्हें देख भगवान राम ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन हनुमान संतुष्ट नहीं हुए। तब राम ने उन्हें कहा कि वे पहले स्थापित शिवलिंग को हटा दें तो उनके लाये लिंग विग्रह को स्थापित कर दिया जाएगा। पर्वतों को उखाड़ फेंकने वाले हनुमान को बालू के लिंग को हटाना बाएं हाथ का काम लगा। उन्होंने उसे हटाने में पूरी ताकत लगा दी लेकिन ज्योतिर्लिंग को टस से मस न कर सके। उल्टे इस चक्कर में बेहोश होकर गंधमादन पर्वत पर जा गिरे। उनका अहंकार खत्म हो गया। तब राम ने उनके लाये लिंग विग्रह को पास ही स्थापित कर दिया। वह आज भी स्थापित है। उसे हनुमदीश्वर कहा जाता है।

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