Read the fifth to ninth form in the worship of Goddess in Navratra : नवरात्र में देवी उपासना में पढ़ें पांचवें से नौवें रूप। कल के अंक में मैंने देवी दुर्गा के चार रूपों के बारे में जानकारी दी है। आज शेष पांच रूपों की जानकारी दे रहा हूं। क्रम से और नियमपूर्वक इनकी पूजा करने भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति संभव है। चैत्र नवरात्र की एक और खूबी है। आप चाहें तो इसमें किसी भी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए अनुष्ठान कर सकते हैं। वैसे भी देवी का तीन मूल रूप है। यह समय किसी भी तरह के अनुष्ठान के लिए उपयुक्त है। दस महाविद्या, गायत्री, कंकाली आदि की साधना करना चाहें तो इसी अवधि में पूरा कर सकते हैं। किसी मंत्र की साधना करना चाहें तो उसे भी कर सकते हैं। उन अनुष्ठानों के बारे में फिर कभी।
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पंचमी को स्कंदमाता और षष्ठी को करें कात्यायनी उपासना
नवरात्र के पांचवें दिन करें स्कंदमाता की उपासना। कार्तिक (स्कंद) को गोद में लिये माता का यह रूप ममतामयी है। प्रेम, स्नेह और संवेदना की जननी माता की उपासना से मनोरथ पूर्ण होते हैं। खास बात यह है कि माता की उपासना से उनकी गोद में बैठे कार्तिकेय की स्वतः उपासना हो जाती है। सुख और शांति का स्वतः अनुभव होने लगता है। उस दिन साधक का मन विशुद्ध् चक्र में स्थित होता है। इस समय सावधानी और मन को एकाग्र बनाए रखना जरूरी है। इससे मोक्ष के द्वार खुलते हैं। देवताओं और ऋषियों के तेज से उत्पन्न माता को कात्यायन ऋषि ने पुत्री रूप में पाला था। इनकी उपासना से धर्म, अर्थ और मोक्ष तीनों मिलते हैं। इनके साधक को रोग, शोक और भय छू भी नहीं सकता है। भक्तों के जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट कर परमपद का अधिकारी बना देती हैं।
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सप्तमी को कालरात्रि व अष्टमी को महागौरी की पूजा करें
नवरात्र में देवी उपासना के क्रम में सातवें दिन करें कालरात्रि की पूजा। काले रंग की माता के केश बिखरे और तीन नेत्र हैं। चार हाथों वाली माता के बाएं ओर के हाथों में लोहे का कांटा और खडग तथा दाएं हाथ अभय और वर मुद्रा में रहते हैं। भयंकर रूप वाली माता हमेशा शुभ फल देती हैं। इस दिन साधक का मन सहस्रार में स्थित होता है। वे सारे पाप व बाधाएं नष्ट करती हैं। इस दिन मन, वचन और शरीर से पवित्रता जरूरी है। आठवें दिन महागौरी की पूजा होती है। वे सुख और शांति देने वाली हैं। अत्यंत गौर वर्ण वाली माता का रूप अत्यंत शांत है। ये भक्तों के लिए अन्नपूर्णा के समान हैं। ये असत् का नाश कर सत की ओर ले जाती हैं। इस दिन साधक का मन सहस्राधार में स्थित होता है और सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं।
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नौवें दिन करें सिद्धिदात्री की उपासना
नवरात्र के नौवें और अंतिम दिन सिद्धिदात्री की उपासना की जाती हैं। ये सभी रूपों में श्रेष्ठ माना गया है। कमल पर विराजमान माता से ही देवताओं को भी सिद्धि प्राप्त होती हैं। प्रसन्न होने पर यह भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है। इसके बाद भक्त की कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती और वह परमपद का अधिकारी बन जाता है। वह दिव्य लोक में भ्रमण करने लगता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में पहुंच जाता है।
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ऐसे करें पूजा की तैयारी
नवरात्र में देवी उपासना के इच्छुक लोगों को पहले ही तैयारी करनी चाहिए। माता की प्रतिमा या फोटो रख लें। लाल चुनरी, अक्षत, जल व चंदन भी रख लें। जौ, कपूर, नारियल, गुलाल व मिट्टी का बर्तन भी रखें। कलश के लिए पात्र व आम की पत्तियां (डंठल सहित) रखें। पूजा स्थान साफ होना चाहिए। धूप और दीप का हर दिन उपयोग होना है। ताला फूल रोज चढ़ाना है। उसकी व्यवस्था पहले से कर लें। प्रसाद के लिए फल, ड्राई फ्रूट व मिठाई श्रद्धानुसार रखें। इन्हें हर दिन माता को अर्पित करें।
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नौ दिनों के नौ रंग, पूजा व प्रसाद में रखें ध्यान
नवरात्रि के हर दिन की अलग-अलग देवी हैं। उनका अलग पूजा विधान है। अतः हर दिन का रंग भी अलग है। उसी रंग के फूल व प्रसाद चढ़ाने से अच्छा फल मिलता है। इसे नियमित पूजा में अतिरिक्त तैयारी के रूप में शामिल करना चाहिए। इससे विशेष फल मिलता है। उचित होगा कि वस्त्र का रंग भी दिन के हिसाब से हो। पहले दिन अर्थात प्रतिपदा को पीला रंग सौभाग्य का प्रतीक है। द्वितीया का रंग हरा है। तृतीया को भूरा रंग हो। चतुर्थी के लिए नारंगी उपयुक्त है। पंचमी को सफेद और षष्ठी का रंग लाल है। सप्तमी नीला और अष्टमी का गुलाबी रंग है। नवमी को बैंगनी रंग का उपयोग करना चाहिए। नवरात्र में देवी उपासना करने वाले इसे ध्यान रखेंगे तो उन्हें अवश्य सफलता मिलेगी।