Sanatan Dharma ahead of the science, confusion created by fraudster : सनातन धर्म विज्ञान से आगे, धंधेबाजों ने भ्रम फैलाया है। मैंने अब तक अध्ययन में पाया है कि सनातन धर्म पूरी तरह से वैज्ञानिक जीवन पद्धति है। इसमें ज्ञान का भंडार छुपा हुआ है। पाखंड और अवैज्ञानिक क्रियाकलापों का कोई स्थान नहीं है। विदेशी आक्रमणकारियों ने ज्ञान की इस पूंजी को समाप्त करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। बाद में रही-सही कसर धर्म के धंधेबाज और मैकाले की संतान ने पूरा कर दिया। वे सत्य को सामने लाने के बदले स्वयं को ही नीच सिद्ध करने में लगे हुए हैं। ऐसे भ्रम के विरुद्ध साप्ताहिक श्रृंखला शुरू कर रहा हूं। संभव है कि कुछ सनातन धर्म प्रेमी और विरोधी इससे आहत हों। उनकी शालीन प्रतिक्रिया और जानकारी का स्वागत है। ताकि यह चर्चा लक्ष्य पर पहुंचे। पहली कड़ी में दे रहा हूं विष्णु के दशावतार के वैज्ञानिक पहलू।
विष्णु का दशावतार मानव विकास की प्रमाणिक गाथा
पौने दो सौ साल पूर्व तक विश्व के अधिकतर लोग मानते थे कि सभी जीव-जंतुओं को ईश्वर ने उनके मूल रूप में उत्पन्न किया है। 1859 में डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत के बाद विश्व, विशेष रूप से पाश्चात्य जगत की आंखें खुलीं। उन्होंने मानव विकास की उस अवधारणा को देखना शुरू किया। इसके बाद जल से जीव-जंतुओं के क्रमिक विकास के सिद्धांत को स्वीकार किया। इस विकास क्रम में मानव के सबसे नजदीक बंदरों को माना गया। सनातन धर्म में यह पूरी अवधारणा हजारों वर्ष पहले से है। विष्णु के दसों अवतार और जीवन चरित्र को इस दृष्टि से देखें तो सब कुछ शीशे की तरह साफ दिखेगा। विज्ञान कहता है कि जीव की उत्पत्ति जल से हुई है। विष्णु का पहला अवतार मत्स्य अर्थात मछली है। वह पूरी तरह जलीय जीव है। दूसरा अवतार कच्छप अर्थात कछुआ है। वह जल और थल दोनों में रह सकता है।
पहले मछली, फिर कछुआ और तब वाराह अवतार
सनातन धर्म विज्ञान से आगे चलकर उसे राह दिखाने वाला है। विष्णु का तीसरा अवतार वराह है। पहले मछली, फिर कछुआ तब वराह अर्थात सूअर जो मिट्टी और कीचड़ में रहता है। भगवान का चौथा अवतार नृसिंह हैं। अर्थात आधा पशु और आधा मानव। उसमें जानवरों से अधिक बुद्धि है। बहुत अधिक शक्ति भी है। पांचवां अवतार वामन है। अर्थात बौना मानव। वैज्ञानिक शोध से सिद्ध हो चुका है कि प्राचीन मानव काफी लंबे होते थे लेकिन विकास क्रम में उनकी लंबाई बंदरों से मिलती-जुलती होकर बढ़ी है। वामन रूप इसी का परिचायक है। उसमें बुद्धि भी है। विष्णु के छठे अवतार परशुराम हैं। जंगल में रहने वाले। गुस्सैल और सामाजिक बंधनों से दूर। भरपूर बल। शस्त्र के नाम पर परशु (फरसा)। गुस्से में नरसंहार करना सामान्य बात है। पिता के कहने पर मां का सिर काट लेते हैं। पारिवारिक संबंध बनने तो लगे थे लेकिन रूढ़ नहीं थे।
यह भी पढ़ें- बिना जन्मकुंडली व पंडित के जानें ग्रहों की स्थिति और उनके उपाय
सातवां अवतार राम-समाज, संबंध व मर्यादा का रक्षक
विष्णु का सातवां अवतार राम का है। सामाजिक सरोकार, नियम और मर्यादा का पाठ पढ़ाने वाले। युद्ध में भी सिद्धांत और मानवीयता को महत्व देने वाले। तब तक डार्विन के सिद्धांत के अनुसार इरेक्टस (नरवानर) और होमो सेपिअंस (मानव) दोनों मौजूद थे। राम ने सबको साथ रखा। सम्मान दिया। हनुमान, सुग्रीव और अंगद इसके उदाहरण हैं। मनुष्य और वनवासी तब तक सहअस्तित्व में रहते थे। छह-कपट से दूर। उस समय युद्ध और प्रेम दोनों की मर्यादा थी। स्त्री का पुनर्विवाह सामान्य था। उसके लिए शुचिता तब तक रूढ़ नहीं हुई थी। दूसरा विवाह करने वाली तारा, मंदोदरी और इंद्र द्वारा दूषित अहिल्या को पंच कन्या में शामिल की गईं। राम ने ही इन सबका उद्धार कर संदेश दिया कि नारी भोग्या नहीं है। शुचिता मानसिक होनी चाहिए। शरीर नहीं मन और कर्म देखें। नारी जननी है।
विकास क्रम में कृष्ण अवतार क्रांतिकारी
दशावतार से सिद्ध होता है कि सनातन धर्म विज्ञान से आगे है। मानव विकास के क्रम में कृष्णावतार क्रांतिकारी है। विष्णु के आठवें अवतार के रूप में उनका अवतरण काफी हद तक विकसित हो चुके समाज में हुआ। हालांकि तब तक रूढ़िवादिता, पाखंड, छल, कपट, बेईमानी और अधिकारी छीनने की प्रवृत्ति समाज में भड़ गई थी। उन्होंने उन सबका मजबूती से प्रतिकार किया। उन्होंने इंद्र समेत देवी-देवताओं की पूजा के बदले प्रकृति की पूजा की प्रेरणा दी। जल देने वाली यमुना और गायों को चारा देने तेज हवा और बारिश से बचाने वाले वाले गोवर्धन पर्वत की पूजा करने पर जोर दिया। प्रेम की पराकाष्ठा सिखाई। बताया कि प्रेम का अर्थ मात्रा पाना नहीं है। दूर रहकर भी राधा-कृष्ण जैसे प्रेम की जीया जा सकता है। यह भी ज्ञान दिया कि दुष्टों के नाश के लिए गलत मार्ग पर भी चलना पड़े तो पाप नहीं लगता।
नवें अवतार बुद्ध ने बहाई ज्ञान की गंगा
जनार्दन के नौवें अवतार बुद्ध ने ज्ञान की गंगा बहा दी। समाज में फैले पाखंड, रूढ़िवादिता और अज्ञान पर कड़ा प्रहार किया। तब तक सत्ताधारी और उनके चाटुकारों के के धर्म विरुद्ध और निरंकुश रवैये से देश व समाज में ढेर सारी विकृतियां आ गई थीं। बुद्ध ने धर्म का मूल अर्थ समझाया। अहिंसा, प्रेम, करुणा, भाईचारा और मानवता का संदेश दिया। उनके जाने के करीब ढाई हजार साल में ही उनके ज्ञान को लोगों ने बिसार दिया है। भौतिकवादी और निरंकुश सोच के कारण पर्यावरण के असीमित दोहन और परमाणु शक्ति के रूप में लोगों ने विनाश की पूरी तैयारी कर ली है। जैसी निरंकुश घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, कोई कारण नहीं आने वाले कुछ सौ सालों में मनुष्य स्वयं को ही तबाह कर लेगा। मौजूदा सभ्यता लगभग खत्म हो जाएगी। तब फिर घोड़े पर सवार कल्कि के रूप में विष्णु का दसवां अवतार सामने आएगा।
नोट- सनातन धर्म विज्ञान से आगे की अगली कड़ी में पढ़ें धर्म नहीं सिखाता जाति व वर्णवाद ।
संदर्भ- विष्णु पुराण, भविष्य पुराण व अन्य धार्मिक ग्रंथ। साथ ही लोक कथाओं पर आधारित सामग्री।
यह भी पढ़ें- बिसरख में नहीं होता रावण दहन, रामलीला भी नहीं होती