Satyanarayan puja is very fruitful in Kaliyug : कलियुग में अत्यंत फलदायी है सत्यनारायण पूजा। यही कारण है कि अधिकतर घरों में शुभ या बड़ा कार्य शुरू करने या समाप्त होने के बाद सत्यनारायण पूजा की जाती है। कई स्थानों पर तो श्राद्ध जैसे कार्य के बाद इस पूजा का विधान है। यह एक तरह से भगवान विष्णु की कृपा पाने की प्रार्थना है। शास्त्रों के अनुसार दिन भर निराहार रहकर शाम को पूजा करने पर भगवान भक्त के दुख हर कर उसकी झोली में खुशी भर देते हैं। इस पूजा का फल कई यज्ञों के बराबर माना जाता है। यह पूजा देवोत्थान एकादशी से लेकर देवशयनी एकादशी के बीच होती है। इस पूजा को शुक्ल पक्ष में करना शुभ माना जाता है। पूर्णिमा एवं बृहस्पतिवार सर्वश्रेष्ठ दिन होता है। कुछ स्थानों पर संक्रांति के दिन भी पूजा करने का विधान है।
जहां होती सत्यनारायण पूजा अन्य देवता भी आ जाते हैं
जिस स्थान पर सत्यनारायण पूजा होती है, वहां गौरी, गणेश, महादेव, नवग्रह समेत समस्त दिक्पाल आ जाते हैं। केले के पेड़ के नीचे, घर में ब्रह्म स्थान या किसी स्वच्छ स्थान पर पूजा करने से पूरा फल मिलता है। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति व्रत कर हर माह सत्यनारायण भगवान की पूजा करता है, उसके सारे मनोरथ पूरे होते हैं। दांपत्य सुख, मनचाहा विवाह, संतान, स्वास्थ्य आदि के लिए लोग खूब पूजा करते हैं। धन से जुड़ी समस्या में यह रामबाण की तरह है। पूजा के बाद कथा भी अवश्य सुननी चाहिए। इसमें प्रसाद का भी बहुत महत्व है। पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करना और दूसरों देने की भी महिमा है। इस पूजा की यह भी विशेषता है कि कोई बुलाए या न बुलाए, व्यक्ति को उस स्थान पर अवश्य जाना चाहिए। पूजा देखने और कथा सुनने का भी महात्म्य है।
व्रत, पूजा और कथा का महात्म्य
कलियुग में अत्यंत फलदायी है सत्यनारायण व्रत, पूजा और कथा के महत्व को स्वयं भगवान विष्णु ने नारद को बताया है। उसके अनुसार सत्यनारायण का अर्थ है सत्य आचरण और सत्य निष्ठा। दूसरे शब्दों में सत्याचरण का अर्थ है ईश्वर की आराधना। चूंकि सत्य ही ईश्वर है, इसलिए इससे संसार की समस्त सुख-समृद्धि और पारलौकिक लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इसकी कथा में भी इसी भाव को परिलक्षित किया गया है। शास्त्रों के अनुसार कलियुग में सनातन सत्य रूपी भगवान विष्णु अनेक रूप धारण कर लोगों की मनोकामना पूरी करेंगे। इस पूजा में भगवान के शालिग्राम रूप, मूर्ति, फोटो या प्रतीकात्मक रूप में सुपारी की पूजा की जाती है। चौकी या पटली पर नया पीला या सफेद वस्त्र बिछाकर भगवान को स्थापित किया जाता है। यदि पूजा संभव न हो तो मानसिक रूप से नित्य भगवान का ध्यान और प्रार्थना करें।
हर माह पूजा करना अत्यंत कल्याणकारी
सत्यनारायण व्रत, पूजा, पाठ और प्रसाद वितरण का बड़ा लाभ मिलता है। इसकी विधि सरल है। श्रद्धालु चाहें तो स्वयं भी कर सकते हैं। यदि ऐसा संभव नहीं हो तो दूसरे से कराया भी जा सकता है। इस पूजा में सामान्य सामग्री के साथ केले के पत्ता, आम के पत्ते, तुलसी के पत्ते, गाय का दूध, गाय घी, गोमुत्र आदि का विशेष महत्व है। प्रसाद में चूरमा, पंजीरी, पंच मेवा, पंच फल भी अवश्य हो। पूजा के बाद हवन करना और श्रेयस्कर होता है। हालांकि यह आवश्यक नहीं है। कर्मकांड को मानने वालों के लिए यह पूजा कामधेनु की तरह है। इस एक पूजा के कई फल मिलते हैं। इसी कारण कहा जाता है कि कलियुग में अत्यंत फलदायी है सत्यनारायण पूजा।
यह भी पढ़ें- गणेश के अद्भुत मंत्र और उसकी प्रयोग विधि