सहज और सरल हैं शाबर मंत्र
दुर्भाग्य से शाबर मंत्रों का ज्यादा प्रचार नहीं हुआ। अब तो भ्रमवश लोग इसे टोना-टोटका जैसा मानने लगे हैं। मेरा अनुभव इससे अलग है। मैंने इसे कई मामलों में अन्य विद्या से ज्यादा सरल और प्रभावी पाया है। हालांकि इसके प्रचार-प्रसार में एक बड़ा संकट इसके दुरुपयोग के खतरे का भी है। संभवतः इसी कारण ऋषि-मुनियों ने इसे गोपनीय रखा। यह ज्ञान लिखित रूप में नहीं रखा गया। गुरु से शिष्य परंपरा के तहत एक से दूसरी पीढ़ी तक बढ़ता गया। आज स्थिति विकट हो गई है। यह विद्या लगभग लुप्त प्राय है। जो है भी वह कुछ लोगों की याददाश्त के भरोसे। अब कुछ विद्वानों ने इसके प्रचार-प्रसार की कोशिश शुरू की है। लेकिन वह इसके महत्व और उपयोगिता को देखते कम है। लक्ष्य प्राप्ति में बेजोड़ है।
वेद में भी है इस विद्या का जिक्र
दुर्भाग्य से इसका ज्यादा प्रचार नहीं हुआ। अब तो भ्रमवश लोग इसे टोना-टोटका जैसा मानने लगे हैं। मेरा अनुभव इससे अलग है। मैंने इसे कई मामलों में अन्य विद्या से ज्यादा सरल और प्रभावी पाया है। हालांकि इसके प्रचार-प्रसार में एक बड़ा संकट इसके दुरुपयोग के खतरे का भी है। संभवतः इसी कारण ऋषि-मुनियों ने इसे गोपनीय रखा। यह ज्ञान लिखित रूप में नहीं रखा गया। गुरु से शिष्य परंपरा के तहत एक से दूसरी पीढ़ी तक बढ़ता गया। आज स्थिति विकट हो गई है। यह विद्या लगभग लुप्त प्राय है। जो है भी वह कुछ लोगों की याददाश्त के भरोसे। अब कुछ विद्वानों ने इसके प्रचार-प्रसार की कोशिश शुरू की है। लेकिन वह इसके महत्व और उपयोगिता को देखते कम है।
वेद में भी है इस विद्या का जिक्र
लक्ष्य प्राप्ति में बेजोड़ शाबर मंत्र का जिक्र वेद में भी है। वास्तव में यह आम लोगों के कल्याण का अति सुलभ माध्यम है। यजुर्वेद में महा देव का जिक्र करते लिखा गया है।
चत्वारि श्रृंगा त्रयो अस्य पादा,
द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महा-देवो,
मर्त्यान् ग्वं आविवेश।
इसकी व्याख्या से गूढ़ रहस्य उजागर होते हैं। चत्वारि श्रृंगा : चार प्रकार के मंत्र ही चार सींग हैं। वे हैं वैदिक, पौराणिक, तांत्रिक और शाबर। साफ है कि शाबर वैदिक काल से है। तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में शाबर मंत्र जाल के संबंध में साफ लिखा है।
कलि बिलोकि जग हित गिरिजा,
साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा।
अनमिल आखर अरथ न जापू,
प्रगट प्रताप महेश प्रतापू।
गुरु, देवता और मंत्र के प्रति अटूट भक्ति जरूरी
इसके मंत्रों को सिद्ध करने की जरूरत नहीं होती है। यह लक्ष्य प्राप्ति में भी बेजोड़ है। सिर्फ गुरु, देवता और मंत्र के प्रति अटूट भक्ति होनी चाहिए। यह भक्ति अंधविश्वास के हद तक होना चाहिए। इसकी प्रयोग विधि अत्यंत सरल है। प्रयोग से पहले इसमें साधना की जरूरत नहीं है। प्राचीनकाल में गुरु संतुष्ट होने पर शिष्य को इस मंत्र का ज्ञान देते थे। मंत्र मिलते ही शिष्य इसका प्रयोग शुरू कर देता था। अब न तो वैसे गुरु रहे और न वह परंपरा रही। संयोग से गुरु मिल जाएं तो यह स्वर्णिम अवसर होगा। सभी इतने भाग्यशाली नहीं हैं। वे मंत्र और उसके देवता पर अटूट विश्वास रखें। फिर जनकल्याण की भावना से इन मंत्रों का प्रयोग कर सकते हैं। इसका असर प्रयोगकर्ता के विश्वास पर निर्भर करता है। यदि मन में संशय हो तो इस क्षेत्र में उतरने का इरादा त्याग दें। तभी इसका फायदा मिलेगा।
(इसकी अगली कड़ी में शाबर मंत्रों की प्रयोग विधि पढ़ें)
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