कल्याणकारी शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं स्कंदमाता

405
कल्याणकारी शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं स्कंदमाता
कल्याणकारी शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं स्कंदमाता

मां दुर्गा के पांचवें रूप की उपासना से खुलता है मोक्ष का द्वार

Skandmata is the centre of benevolent forces : कल्याणकारी शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं स्कंदमाता। मां दुर्गा का पांचवां रूप स्कंदमाता का है। सनत कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण मां भगवती के इस रूप का नाम स्कंदमाता पड़ा है। माता की चार भुजाएं हैं। इनमें से दो हाथों में कमल, एक में बाल रूपी सनत कुमार को थामे हैं। चौथे हाथ को वर मुद्रा में रखे हुए हैं। सिंहवाहिनी माता का एक आसन कमल भी है। इस कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। माता समस्त ज्ञान-विज्ञान, धर्म-कर्म, कृषि, उद्योग सहित पंच आवरणों से युक्त विद्या वाहिनी दुर्गा भी कहलाती हैं। माना जाता है कि इन्हीं की शक्ति और कृपा से नारी को गर्भ धारण करने की अलौकिक शक्ति मिलती है।

भोग और मोक्ष प्रदान करती हैं माता

नवरात्र पूजन में साधकों के लिए पांचवां दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन माता की कृपा और साधना से साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। उसकी समस्त वाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप होने लगता है। वह चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर होने लगता है। इस समय साधक को अत्यंत सावधानी के साथ अपनी समस्त ध्यान वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए सावधानीपूर्वक साधना के पथ पर बढ़ना चाहिए। माता की कृपा से भक्तों की समस्त इच्छाएं इसी लोक में पूरी हो जाती हैं। उसे परमसुख और शांति का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार खुल जाता है। इस माता की उपासना का एक और महत्वपूर्ण फल यह है कि इससे उनकी गोद में बैठे कुमार कार्तिकेय की उपासना भी स्वत: हुई मानी जाती है। उसका फल भी मिलता है।

स्कंदमाता का मंत्र

सिंहासनगता   नित्यं   पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदामापनस्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।।

यह भी पढ़ें- मंत्र करे हर समस्या का समाधान, अवश्य प्रयोग करें

आश्विन नवरात्र में पूजन से पहले करें देवी का बोधन

कल्याणकारी शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं मां दुर्गा। धर्मग्रंथों के अनुसार यह ऋतु देवी-देवताओं के लिए रात्रि है। यह समय उनके शयनकाल का होता है। इसलिए इस नवरात्र में पूजा करने से पहले देवी का बोधन करने का विधान है। रावण के वध के लिए जब श्रीराम ने इस नवरात्र में पूजन किया तो उन्होंने ब्रह्मा को आचार्य बनाकर पहले देवी का बोधन (जगाना) किया था। बोधन के लिए काली विलास तंत्र में विधान है कि आश्विन कृष्ण अष्टमी या नवमी को जब आर्दा नक्षत्र हो तो उस दिन गाजे-बाजे के साथ देवी की पूजा आदि कर बोधन करें। हालांकि भद्रकाली कल्प में बोधन का उपयुक्त समय आश्विन कृष्ण चतुर्दशी कहा गया है। बोधन करने के बाद प्रतिपदा को कुंभ स्थापित कर पूजा करें। पहले दिन के पूजन के बाद नवमी तक नित्य पूजा के बाद जप, स्तोत्र, पाठ (सप्तशती या कोई अन्य) करें।

आठ दिन व्रत कर नौवें दिन पारण का विधान

नवरात्र में आठ दिन व्रत, जप व पूजन कर नवम दिन पारण (व्रत का स) करें। दशमी को सिर्फ विसर्जन करें। उस दिन  कतई पारणा नहीं करें। अन्यथा नुकसान होगा। नवमी तक माता पृथ्वी पर ही रहती हैं। उस दिन तक उनकी पूजा का विधान है। नवमी के दिन शाम को दशमी का श्रवण नक्षत्र आ जाए और दूसरे दिन अभाव हो तो नवमी को ही विसर्जन कर दें। पूजा और जप में यह भी ध्यान रखें कि प्रतिपदा को जितना किया, उससे अधिक द्वितीया समेत बाद की तिथियों में पूजन व जपादि करना चाहिए। हालांकि अनुष्ठान में ऐसा संभव नहीं होता है। सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी को विशेष पूजन करना चाहिए। उसका विवरण अगले लेख में देने का प्रयास करूंगा। वैसे मां दुर्गा का किसी भी रूप में पूजा का लाभ ही है। क्योंकि वे कल्याणकारी शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं।

शीघ्र फल देने वाले कुछ मंत्र

1-षडक्षरी मंत्र————ऊं चामुंडायै विच्चे।

2-नवार्ण मंत्र————ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे।

3-दशाक्षरी मंत्र———-ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे।

यह भी पढ़ें- वास्तु और ग्रहों के संतुलन से एक-दूसरे की कमी दूर करें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here