जीने की राह दिखाता है अध्यात्म

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Spirituality shows the way of living : जीने की राह दिखाता है अध्यात्म। अध्यात्म (तंत्र, मंत्र, योग एवं ध्यान) की दुनिया मानव के बहुत करीब और बेहद उपयोगी है। इसके बारे में सामान्य जानकारी भी हमें न सिर्फ मनोवांछित जीवन जीने की राह दिखाती है बल्कि उसे हासिल करने में मदद भी करती है। यह हमें बताता है कि हम जो कुछ भी भोगते हैं, वह हमारे कर्मों का ही फल है। पिछले जन्मों के कर्म के आधार से ही हमारी कुंडली में ग्रहों का स्थान तय होता है। इसी आधार पर दोस्त-दुश्मन, सहयोगी-विरोधी एवं अपने-पराये तय होते हैं। ऐसे में यह भी बहुत साफ है कि प्रतिकूल ग्रह दशा रहने पर बहुत अच्छे फल की आशा नहीं करनी चाहिए। हां, उसके लिए हमेशा सकारात्मक रहते हुए भगवान पर विश्वास कर मंत्र के जप से स्थिति की प्रतिकूलता में कमी लायी जा सकती है।

प्रकृति के नियम में हस्तक्षेप अनुचित

याद करें कि प्रथम पूज्य व विघ्नहर्ता गणेश का सिर हाथी का है। जगत जननी मां पार्वती और परमपिता महादेव के यशस्वी पुत्र होते हुए भी जब उनका जब सिर कटा तो उनके माता-पिता हर तरह से समर्थ होने के बाद भी गणेश को हाथी का मस्तक लगाकर ही पुनर्जीवित कर सके। उन्हें भले ही बाद में ढेर सारी शक्तियां व उपहार मिले लेकिन उनका मूल सिर वापस नहीं लौटाया जा सका। इसी तरह सोलह कलाओं के साथ जन्म लेने वाले विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की आंखों के सामने ही उनका पूरा कुनबा समाप्त हो गया। ऐसा नहीं था कि इन दोनों घटनाओं को वे रोक या बदल नहीं सकते थे लेकिन तब प्रकृति के कार्य में बाधा पड़ती। और ईश्वर कभी भी ऐसा नहीं करते हैं। यह संदेश है कि इंसान प्रकृति के कार्यकारिणी नियम में हस्तक्षेप नहीं करे। कई बड़े साधकों ने इसके कुपरिणाम भोगे हैं।

भोगना ही पड़ता है कर्मों का फल

इसी कारण कहा गया कि जीने की राह दिखाता अध्यात्म। पहुंचे हुए साधक प्रकृति के नियम में हस्तक्षेप कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने वाले को उसके कोप का सामना करना पड़ता है। इसे स्पष्ट करने वाली एक कथा प्रचलित है। स्वामी विवेकानंद के गुरु महान काली भक्त स्वामी रामकृष्ण परमहंस को दूसरों का दुख देखा नहीं जाता था। जब भी कोई दुखी उनके पास पहुंचता, वह उसके दुखों को दूर कर देते थे। उनके इस कार्य के लिए मां काली उन्हें आगाह करती रहती थीं। लेकिन परमहंस किसी दुखी को देखकर स्वयं को रोक नहीं पाते थे। समय बीतता गया। जब परमहंस का अंत नजदीक आने लगा तो माता ने उन्हें कहा कि दूसरों के दुख को दूर करते-करते तुम पर उनके काफी पाप चढ़ गए हैं। उसे भोगने के लिए तुम्हें फिर से जन्म लेने की नौबत आ गई है।

दूसरे का पाप काटा तो खुद भोगना होगा

परमहंस को इसका ज्ञान तो था लेकिन इसकी भयावहता को नजरअंदाज किए हुए थे। उन्हें पता था कि कर्मों का फल भोगना पड़ेगा। उसे मंत्र या आध्यात्मिक शक्ति से कुछ समय के लिए टाला जा सकता है लेकिन भोगे बिना समाप्त नहीं किया जा सकता। चूंकि दूसरों के दुख उन्होंने आध्यात्मिक शक्ति से दूर किए थे। अत: उसके पाप को अपने ऊपर लेने का निश्चय किया। उन्होंने मां काली से अनुरोध कर सारे पाप कर्मों को तत्काल फल के रूप में खुद पर ले लिया। सभी को ज्ञात है कि परमहंस के जीवन के अंतिम दिनों में उन्हें काफी पीड़ा झेलनी पड़ी थी। डाक्टरों ने उन्हें आराम करने व समाधि न लेने की सलाह दी थी। लेकिन वह परहेज तो दूर इलाज भी कराने के लिए तैयार नहीं थे। वह दूसरों के कर्म फल को भोगकर निर्मल होकर परमगति को पाना चाहते थे। उन्होंने वैसा ही किया।

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