अजंता में पत्थर बोलते हैं, कण-कण में है अध्यात्म

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अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति का संगम है अजंता
अथक श्रम और मनमोहक कलाकृति का संगम है अजंता।

Stones speak in Ajanta : अजंता में पत्थर बोलते हैं। कण-कण में है अध्यात्म। मुझे एलोरा से बड़ा अजंता का आकर्षण लगा। इसका कारण जो भी रहा हो। हमने अजंता में जमकर मजे किए। सुखद एहसास से तन-मन सराबोर हो गया। दिन भर की भागदौड़ के बाद जलगांव में रात अच्छी गुजरी थी। खूब नींद आई थी। सुबह की चाय के बाद नाश्ता किया। सुहाने दिन और नए अनुभव की आशा में मन में उत्साह थोड़ा और बढ़ गया। जलगांव से दस बजे हम लोग अजंता की गुफाओं के लिए कूच कर गए। सामान गाड़ी में ही रख लिया। वापसी हमें भुसावल से करनी थी। जलगांव से अजंता 62 किलोमीटर दूर है। सड़कों की स्थिति के कारण तेज चलने पर भी लगभग डेढ़ घंटा लग जाता है। हमने रास्ते का भी आनंद उठाया। इसलिए डेढ़ घंटे से कुछ ज्यादा ही समय लग गया। अब सामने अजंता की गुफाएं थीं।

विश्व धरोहर अजंता 

यूनेस्को ने अजंता को विश्व धरोहर घोषित किया है। इसका प्रभाव भी वहां दिखता है। नियमों का पालन में सख्ती एवं व साफ-सफाई दिखती है। दूसरे पर्यटक स्थलों से इस मामले में अंतर साफ दिखता है। हालांकि भारतीय संस्कृति का जादू यहां भी नजर आता है। रेहड़ी, खोमचा, भुट्टा वगैरह का अतिक्रमण भी यहां नहीं है। ऐसे में एक अलग सी शांति व खालीपन महसूस होती है। लेकिन क्या किया जा सकता है? विश्व धरोहर बना है तो अंतरराष्ट्रीय मानकों की बात माननी ही पड़ेगी। हालांकि इससे एक सुखद अहसास भी हुआ। शोर-शराबे से हम बच गए। साथ ही अनावश्यक भीड़ से भी जान बच गई।

सिर्फ प्रदूषण रहित वाहनों को अनुमति

अजंता में पत्थर बोलते हैं। जहां गुफाएं हैं, उससे थोड़ी दूर तक ही सामान्य वाहनों को जाने की अनुमति है। उससे आगे पुरातत्व विभाग की देख-रेख में प्रदूषण रहित मिनी बसें चलाई जाती हैं। ये बसे प्रशासन की ओर से चलाई जाती हैं। पर्यटकों को उन्हीं में बैठकर गुफा तक पहुंचना होता है। सुखद बात यह है कि इन बसों का किराया भी कम है। हम 13 लोग एक बस में सवार हुए। सर्पाकार मार्ग का आनंद लेते हुए गुफा के प्रवेश द्वार तक पहुंच गए। वहां हमने टिकट खरीदे। फिर सभी गुफा की ओर रवाना हो गए।

कर्क रेखा के पास होने से मौसम था गर्म

अप्रैल की शुरुआत थी। दिन के लगभग 11 बजे थे। इसके बावजूद धूप तेज थी। हमें परेशानी महसूस हो रही थी। वैसे भी यह कर्क रेखा क्षेत्र में स्थित है। गर्मी से तपते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। कोढ़ में खाज यह कि विश्व धरोहर होने के कारण अंदर खान-पान की कोई व्यवस्था नहीं है। हम अपने साथ लाए पानी की बोतल पर ही निर्भर थे। इसके बाद भी मन में खुशी थी कि आज हम उस स्थान पर पहुंच गए थे जो विश्व विरासत है। मन में यह उत्सुकता भी थी कि आखिर क्या रहा होगा इसे बनाने वाले के मन में कि उन्होंने इस तरह के अनुत्पादक कार्य में इतना पैसा लगाया? यह प्रश्न मेरी सोच नहीं, उस विचारधारा के विरुद्ध था जो केवल आर्थिक प्रगति को ही विकास मानती है। मैंने तो साफ महसूस किया है कि अजंता में पत्थर बोलते हैं।

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ईसा पूर्व से बन रही थी अजंता की गुफाएं

इन गुफाओं का निर्माण 200 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। अनेक कालों व योगदान से गुजरता छठी शताब्दी में पूरा हुआ था। हालांकि इसका पता 1819 में संयोग से ही चल सका था। मद्रास प्रेसीडेंसी के अफसर जॉन स्मिथ शिकार की तलाश में संयोग से यहां पहुंचे। उस समय गुफा नंबर 10 में कुछ स्थानीय लोग प्रार्थना कर रहे थे। तब वहां आग जल रही थी। पर्वत के अंदरूनी हिस्से में ये गुफाएं बनी हुई हैं। इसके चारों ओर पहाड़ियां, पेड़-पौधे और झाड़ियां थीं। स्मिथ गुफाओं को देखकर हैरान हो गए। लौटकर उन्होंने इस अद्भुत कारीगरी की जानकारी दी। उसके बाद ब्रिटिश  सरकार ने इस ओर ध्यान दिया। लंबी प्रक्रिया से गुजरते हुए अजंता की ये अद्भुत गुफाएं आज विश्व धरोहर बन चुकी हैं।

गुफाओं का दूसरा निर्माण काल पांचवीं-छठी सदी

पांचवीं-छठी सदी को गुफाओं का दूसरा निर्माण काल माना जाता है। इनके बनाने का मकसद शायद वाकटकों के प्रति सामंतों की निष्ठा का प्रदर्शन था। पुरातत्विक सर्वेक्षण की ओर से यहां लगाए गए शिलालेख से इसकी पुष्टि होती है। 16 नंबर गुफा बौद्धसंघ को समर्पित किया गया। यह उत्कृष्ट है। इसमें बुद्ध के जीवन की घटना का चित्रण किया गया है। प्रदक्षिणा पथ पर चंवरधारी बोधिसत्व और मालाधारी गंधर्व आकृतियों से घिरे सिंहासनस्थ बुद्ध चित्रित हैं। साथ ही बुद्ध के जीवन वृत्त के साथ कई घटनाओं को शानदार तरीके से उकेरा गया है। इनमें मरणासन्न राजकुमारी, असित की भविष्यवाणी, नंद का मन परिवर्तन, माया का स्वप्न, श्रावस्ती का चमत्कार एवं सुजाता का खीर प्रदान करना प्रमुख हैं। सारी कलाकृति मनमोहक है। इसीलिए कहा जाता है कि अजंता में पत्थर बोलते हैं।

स्थापत्य और सौंदर्य का संगम

अजंता की गुफाएं एलोरा की तरह क्रमांकित की गई है। इसकी संख्या 29 है। आप जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, गुफाओं का सौंदर्य बढ़ता प्रतीत होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि गुफाओं को कालक्रम के अनुसार बनाया गया है। उसी के अनुसार इन्हें बांटा भी गया है। माना जाता है कि 9, 10, 12, 13 एवं 15 नंबर की गुफाएं ईसा पूर्व 100 से सन 100 के बीच बनाई गईं। इस समय सत्त्वाहन वंश का राज्य था। वे बड़े ही कलाप्रेमी थे। उनके समय में इस दिशा में कई कार्य हुए। 9,10ए, 19ए, 26 तथा 29 चैत्यगृह और शेष  विहार हैं। इतिहासकारों ने गुफाओं के निर्माण के समय एवं शैली के आधार पर मुख्य रूप से दो भागों में बांटा है। इनमें छह गुफाओं का उत्खनन बौद्धकाल के हीनयान युग में माना जाता है। जबकि गुफा नंबर 8,10,12 व 15 ईसा पूर्व की हैं।

नोट-यह लेख जारी है। अगले अंक में अजंता की खूबियों और वहां कैसे पहुंचें की जानकारी के साथ लेख समाप्त होगा।

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