जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है ध्यान

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अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक
अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक।

The greatest achievement of life is meditation : जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है ध्यान। जिसने इस रहस्य को समझ लिया है उसे कुछ और जानने या पाने की इच्छा ही नहीं रह जाती है। वह अपने-आप में मस्त और प्रसन्न रहता है। दुर्भाग्य से अधिकतर लोग इससे अनजान हैं। वे भौतिक सुख को ही जीवन का लक्ष्य मानते हैं। छोटी-छोटी बातों में उलझे रहते हैं। दैनिक जीवन की आवश्यकता ही उन्हें बड़ा लक्ष्य लगता है। इस चक्कर में वे कभी परमानंद का अनुभव ही नहीं कर पाते हैं। इसे ही उभारती एक बोध कथा है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि कैसे लोग छोटी-छोटी बातों में उलझे रहकर बड़ी खुशियों से वंचित हो जाते हैं। यह प्रसंग एक लकड़हारे और साधु का है। इसे पढ़ें। इसका आनंद लें और स्वयं अनुभव करें कि आम लोगों का जीवन कैसे व्यर्थ की बातों में बीत जाता है।

साधु और लकड़हारे की कथा

प्राचीन काल की बात है। जंगल के किनारे वृक्ष के नीचे एक साधु की कुटिया थी। वे कभी कुटिया के अंदर तो कभी बाहर ध्यान मग्न बैठे रहते थे। मस्त रहते थे। आसपास के लोग जो दे देते, उससे उनका भोजन चलता था। कभी किसी ने उन्हें किसी से कुछ मांगते नहीं देखा। वहां पास से एक लकड़हारा प्रतिदिन लकड़ी काटकर शहर ले जाता था। उसी से वह परिवार का किसी तरह भरण-पोषण करता था। एक दिन साधु ने उसे टोका। कहा कि तुम रोज कड़ी मेहनत कर लकड़ी काटकर दूर शहर में ले जाकर बेचते हो। फिर भी किसी तरह से पेट ही भर पाते हो। कुछ बड़ा क्यों नहीं सोचते या करते हो? लकड़हारे ने कहा कि मुझे कुछ और करना आता ही नहीं है। साधु ने कहा कि तो इसी में कुछ बड़ा करो। साधु ने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि की दिशा दिखाई।

चंदन के पेड़ों को जानकारी दी

लकड़हारे ने कहा कि बड़ा क्या हो सकता है? साधु ने बताया कि आगे घने जंगल में चंदन के कई पेड़ हैं। वहां से थोड़ी कम लकड़ी काटकर अधिक लाभ पा सकोगे। लकड़हारे को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने चंदन के पेड़ के बारे में कभी अपने पिता से सुना भी नहीं था। साधु उसे गलत जानकारी क्यों देंगे, यह सोचकर अगले दिन घने जंगल में चला गया। वहां सचमुच चंदन के कई वृक्ष थे। उसने रोज से थोड़ी अधिक लकड़ी काटी और शहर पहुंचा। अन्य दिनों की तुलना में उसे बहुत अधिक पैसे मिले। गदगद होकर घर लौटा। वह साधु के पास गया। उनके चरणों में लोट गया। कहा कि पुश्तैनी पेशा के बाद भी मेरे खानदान में किसी को इसकी जानकारी नहीं थी। आपने मुझ अभागे को चंदन की पहचान कराई। मेरा जीवन बना दिया। साधु ने कहा कि कोई बात नहीं, जब जागो तब सवेरा।

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मजे में कटने लगे लकड़हारे के दिन

चंदन की लकड़ी के कारण अब लकड़हारे के दिन मजे में कटने लगे। एक दिन काट लेता तो कई दिनों तक काम करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। जीवन स्तर भी सुधर गया था। तभी एक दिन साधु ने उसे फिर टोका। कहा कि मैंने तुम्हें राह दिखाई तो सोचा कि तुम्हारी समझ बढ़ गई होगी लेकिन तुम तो पहले की तरह कोरे के कोरे हो। तुम्हें कभी यह विचार नहीं आया कि जब घने जंगल में चंदन के पेड़ मिल गए तो और खोजने पर अधिक महत्वपूर्ण वस्तु मिलेगी? और महत्वपूर्ण वस्तु? लकड़हारा यह सुनकर चौंका। उसने कहा कि इससे महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? साधु ने बताया कि थोड़ा और आगे जाओगे तो चांदी की खदान है। एक दिन थोड़ा बटोर लाओगे तो महीनों का आराम हो जाएगा। धनवान हो जाओगे। साधु ने लकड़हारे को जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि की ओर एक कदम और बढ़ा दिया।

चांदी के खदान के बारे में बताया

साधु से चांदी के खदान की जानकारी पाकर लकड़हारा गदगद हो गया। अब उसका साधु के प्रति विश्वास बढ़ चुका था। वह भागा-भागा चांदी के खदान तक पहुंचा। वहां से ढेर सारी चांदी लाकर बाजार में बेच आया। अब उसे एक दिन मेहनत कर महीनों का जुगाड़ हो जाता था। जीवन और अच्छे से चलने लगा। अब वह कई महीने में एक बार आता था। लेकिन साधु के प्रति उसकी श्रद्धा हो गई थी। वह उनसे मिल लेता था। तभी एक दिन साधु ने कहा कि तुम भी आम आदमी की तरह ही मूढ़ हो। तुम्हारे में मन में कुछ और पाने की लालसा ही नहीं है। स्वयं कोई इच्छा, जिज्ञासा और विचार ही नहीं है। तुमने सोचा ही नहीं कि इससे आगे भी कुछ हो सकता है। लकड़हारा उनके चरणों में गिर पड़ा और कहा कि मैं मंदबुद्धि और मंदभागी हूं। कृपया आप राह दिखाएं।

सोने और हीरे के खानों का पता बताया

साधु ने कहा कि और आगे बढ़ोगे तो सोने की खान है। लकड़हारे ने कहा कि मैं तो चांदी पाकर ही निहाल था। आपने चांदी के खान के बारे में बताकर मुझ गरीब का भाग्य ही बदल दिया। मैंने पहले कभी सोना न तो देखा न था और न जानता था। मुझे लगा कि जीवन धन्य हो गया है। आपका बहुत-बहुत आभार की आपने सोने की खान का पता बता दिया। मेरा जीवन धन्य हो गया। सोने की खान पाकर लकड़हारा अमीर बन गया। यह कथा इसी तरह आगे बढ़ती रही। एक दिन साधु ने उसे हीरे के खान का पता बता दिया। अब लकड़हारे का जीवन पूरी तरह से बदल गया। वह धनाढ्य हो गया। तभी एक दिन साधु ने कहा कि तू मूढ़ ही रह गया। अपनी कोई समझ नहीं। स्वयं सोचा-विचारा नहीं कि आगे भी कुछ है। जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि पानी है।

अब धन की आवश्यकता नहीं, और कुछ नहीं चाहिए

धनाढ्य हो चुके लकड़हारे में अब अहंकार आ चुका था। उसने साधु से कहा कि अब मुझे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। कुछ पाना शेष नहीं रह गया है। अब हीरों से बढ़कर क्या हो सकता है? मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं? साधु ने कहा कि कभी विचार किया कि मैं झोपड़ी में रहता हूं। रूखा-सूखा खाकर भी प्रसन्न और मस्त हूं। तुम्हें चंदन के वृक्षों से लेकर हीरों की खान का पता देता हूं लेकिन स्वयं कुछ नहीं लेता। स्पष्ट है कि मेरे पास उससे भी बहुत अधिक है। मेरे लिए हीरों का भी कोई महत्व नहीं है। यह सुनकर लकड़हारे की आंखें खुल गईं। वह साधु के पैर पर गिर पड़ा। उनसे लिपट गया। रोते हुए कहा कि मैं सचमुच निरा मूर्ख हूं। आपने ही मेरा अब तक कल्याण किया है। अब आगे का मार्ग भी आप ही दिखाएं।

ध्यान है सबसे बड़ी उपलब्धि, यही चरम लक्ष्य

साधु ने कहा कि ध्यान ही सबसे बड़ा है। इसी से चरम लक्ष्य की प्राप्ति होती है। अब सचमुच तुम्हें धन की आवश्यकता नहीं है। सारे भौतिक लक्ष्य तुमने पा लिये हैं। अब जीवन का चरम लक्ष्य पाना शेष है। उसके लिए अपने अंदर की खदान को खोदना होगा। अंतस की यात्रा करनी होगी। यह ध्यान से ही संभव है। वही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। उसी से तुम आगे और आगे बढ़ सकोगे। तुम्हें तब तक नहीं रुकना है, जब तक अंदर के सारे कोलाहल और सारे अनुभव शांत न हो जाएं। परमात्मा का साक्षात दर्शन हो तो भी मत रुकना। उसमें दृश्य और द्रष्टा का द्वैत भाव है। जब वह भाव भी समाप्त हो जाए तो शून्य और सन्नाटा आता है। उसमें जलता है बोध का दीया। वही परम लक्ष्य है। उसे ही समाधि कहते हैं। यही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

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