ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हैं दस महाविद्या

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शक्ति संचय व मनोकामना पूर्ति का स्वर्णिम अवसर नवरात्र
शक्ति संचय व मनोकामना पूर्ति का स्वर्णिम अवसर नवरात्र।

The Ten Mahavidyas are the sourse of the power of universe : दस महाविद्या ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हैं। उनके नाम – काली, तारा, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगला, मातंगी और कमला हैं। गुण और प्रकृति के कारण इनको दो कुल- कालीकुल और श्रीकुल में बांटा जाता है। साधक अपनी रुचि और भक्ति के अनुसार किसी एक की साधना में अग्रसर हों। मान्यता है कि इनके बिना शिव भी शव के समान हैं। भगवान विष्णु के दशावतार भी इनसे जुड़े हैं। हालांकि सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि शक्ति की पूजा शिव के बिना अधूरी होती है। इसी तरह शक्ति के विष्णु रूप में भी दस अवतार हैं। किसी भी महाविद्या के पूजन के समय उनकी दाईं ओर संबंधित भैरव का पूजन कल्याणकारी होता है।

भौतिक व आध्यात्मिक लक्ष्य होते हैं प्राप्त

महाविद्या की उपासना से भौतिक व आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त होता है। साथ ही शिव और विष्णु भी सहज अनुकूल होते हैं। महाविद्या उपासना में संबंधित शिव या विष्णु रूप की पूजा  भी होती है। यह साधक पर निर्भर है कि उसकी रुचि और आवश्यकता क्या है। दस महाविद्या के लिए शिव के नौ रूप हैं। धूमावती का रूप विधवा का है, इसलिए उनके शिव नहीं हैं। इसी तरह विष्णु के दस अवतार में से एक-एक उनसे जुड़े हैं। ग्रह दोष को दूर करने में भी यह अत्यंत प्रभावी हैं। इसका कारण ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हर महाविद्या के साथ एक ग्रह का जुड़ा होना है। एक के साथ लग्न जुड़ा है। इनके बारे में संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं। महाविद्या के साथ शिव या विष्णु के संबंधित रूप की उपासना से दोनों प्रसन्न होते हैं। इसी तरह संबंधित ग्रह की भी शांति होती है। इसलिए इन्हें ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत कहा जाता है।

माता पार्वती के शरीर से निकलीं दस महाविद्या

दस महाविद्या के बारे में संक्षिप्त जानकारी नीचे है। इसमें महाविद्या, उनके शिव रूप, विष्णु रूप और ग्रहों के नाम हैं। ये दसों महाविद्याएं आदि शक्ति माता पार्वती की ही रूप मानी जाती हैं। एक बार महादेव से संवाद के दौरान माता पार्वती अत्यंत कुपित हो गईं। क्रोध से माता का शरीर काला पड़ने लगा। यह देख विवाद टालने के लिए शिव वहां से उठ कर जाने लगे। अचानक सामने एक दिव्य रूप को देखा। फिर दूसरी दिशा में बढ़े तो एक अन्य रूप नजर आया। बारी-बारी से दसों दिशाओं में अलग-अलग दिव्य दैवीय रूप देखकर वे स्तंभित हो गए। तभी सहसा उन्हें पार्वती का स्मरण आया। उन्हें लगा कि कहीं यह उनकी माया तो नहीं। उन्होंने माता से इसका रहस्य पूछा। तब माता ने उन्हें दस महाविद्या का रहस्य बताया।

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जानें महाविद्या और संबंधित शिवरूप, विष्णुरूप व ग्रह

1-काली——महाकाल——कृष्ण——-शनि

2-तारा——–अक्षोभ्य——रामचंद्र—–बृहस्पति

3-षोडषी——कामेश्वर—–कल्कि—–बुध

4-भुवनेश्वरी—–त्रयंबक—–वराह——-चंद्र

5-त्रिपुर भैरवी—काल भैरव—नरसिंह—लग्न

6-छिन्नमस्ता—-क्रोध भैरव—परसुराम–राहु

7-धूमावती——-नहीं है——-वामन–केतु

8-बगला———मृत्युंजय—–कूर्मा—–मंगल

9-मातंगी——–मातंग——–बुद्ध—–सूर्य

10-कमला——- विष्णु रूप—मत्स्य—शुक्र

दस महाविद्या और उनके रूप

पार्वती ने बताया कि ब्रह्मांड की शक्ति की स्रोत हैं ये। आपके समक्ष कृष्ण वर्ण में स्थित सिद्धिदात्री काली हैं। ऊपर नील वर्णा सिद्धिविद्या तारा हैं। पश्चिम में कटे सिर को उठाए मोक्ष देने वाली श्याम वर्णा छिन्नमस्ता हैं। बाईं तरफ भोगदात्री भुवनेश्वरी हैं। पीछे ब्रह्मास्त्र एवं स्तंभन विद्या के साथ शत्रु का मर्दन करने वाली बगला हैं। अग्निकोण में विधवा रूपिणी स्तंभवन विद्या वाली धूमावती हैं। नैऋत्य कोण में सिद्धिविद्या एवं भोगदात्री भुवनेश्वरी हैं। वायव्य कोण में मोहिनीविद्या वाली मातंगी हैं। ईशान कोण में सिद्धिविद्या एवं मोक्षदात्री षोडषी और सामने सिद्धिविद्या और मंगलदात्री भैरवी रूपा मैं स्वयं उपस्थित हूं। उन्होंने कहा कि इनकी पूजा-अर्चना करने में चतुवर्ग अर्थात- धर्म, भोग, मोक्ष और अर्थ प्राप्ति होती है। इनकी कृपा से षटकर्मों सिद्धि तथा अभिष्टि की प्राप्ति होती है। शिवजी के निवेदन करने पर सभी देवियां माता में समाकर एक हो गईं।

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