प्रकृति के नियम को मानें धर्म का पालन हो जाएगा (अपडेट)

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अक्षय तृतीया तीन मई को
अक्षय तृतीया तीन मई को।
जानें विश्व में सर्वश्रेष्ठ अपनी गौरवशाली हिंदू धर्म-संस्कृति को

The world’s oldest Hinduism is the way of living : प्रकृति के नियम को मानें धर्म का पालन स्वतः हो जाएगा। इसका कारण है कि अन्य धर्मों की धरतरह विश्व का प्राचीनतम हिंदू धर्म किसी रूढ़ीवादिता में नहीं जकड़ा हुआ है। यह जीवन जीने की पद्धति है । इसे वैदिक या सनातम धर्म नाम से भी लोग जानते हैं। उसकी उत्पत्ति सृष्टि के साथ ही हुई है। प्रकृति प्रदत्त यह पद्धति विश्व में सबसे उदार है। यह वसुधैव कुंटुंबकम के सिद्धांत पर चलती है। जो लोग इसकी आलोचना करते हैं, वस्तुतः वे उस अंधे की तरह हैं जिनके हाथ में हाथी का कोई एक अंग आ गया है। उसी आधार पर वे पूरे हाथी का विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं। इसका कारण है कि हिंदू धर्म किसी विशेष विचार या नियम से बंधा नहीं है। यह विभिन्न श्रेष्ठ विचारों और संस्कृतियों का सम्मिश्रण है।

दूसरे धर्मों से बहुत अलग है सनातन धर्म

विश्व के सभी प्रमुख धर्मों की किसी ने स्थापना की है। ईसाई धर्म ईसा मसीह की देन है तो मुस्लिम मोहम्मद पैगंबर की। उसमें उनके संदेश से बाहर जाकर काम करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सनातन धर्म में ऐसी सीमा नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव और महेश भी जिम्मेदारियों से बंधे हुए हैं। कोई शिव को महान मानता है तो कोई विष्णु को। तो कोई शक्ति का उपासक है। कोई भक्ति मार्ग को जीवन का लक्ष्य बताता है तो कोई दान-पुण्य को। किसी को कर्मकांड पर विश्वास है तो कोई कर्म को सबसे बड़ा मानता है। चार्वाक मतावलंबी इनमें से किसी को नहीं मानते हैं। उनका पुनर्जन्म तक में विश्वास नहीं है। वे मात्र सुखी जीवन जीने का सिद्धांत मानते हैं। फिर भी सभी हिंदू हैं और सभी को समान रूप से महत्व प्राप्त है।

अनेकता में एकता का अद्भुत सम्मिश्रण

इसमें प्रकृति के नियम को ही मानना होता है। मैकाले की उपज कुछ इतिहासकार हड़प्पा, मोहनजोदड़ों में खुदाई के आधार पर हिंदू धर्म को कुछ हजार वर्ष पुराना मानते हैं। दूसरी ओर सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान तत्कालीन भारत और वर्तमान पाकिस्तान एवं अन्य मुस्लिम देशों में हिंदू धर्म के कई चिह्न मिले हैं। उन्होंने अकाट्य तर्कों के आधार पर बताया है कि हिंदू धर्म व संस्कृति हड़प्पा-मोहनजोदड़ो से बहुत पुराना है। देवी-देवताओं की बात हो या धर्म के सिद्धांत की, इसमें जबरदस्त विविधता है। यह एकेश्वरवादी है। प्रकृति पूजक है। बड़ी संख्या में देवी-देवता होने के बाद भी एक ब्रह्म के सिद्धांत को मानता है। मूर्ति पूजा के बाद भी वेद पर अटूट विश्वास है। उसमें मूर्ति पूजा और मंदिर का सिद्धांत नहीं है। वह प्रकृति की पूजा का सिद्धांत मानता है। कुल मिलाकर देखें तो हिंदू धर्म अनेकता में एकता का अद्भुत सम्मिश्रण है।

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जैन व बौद्ध को आत्मसात किया पर अंग्रेजों के छल से हारे

जैन और बुद्ध जैसे महामानव ने हिंदू धर्म (तत्कालीन गलत परंपरा) की कुरीतियों का विरोध किया। हिंदुओं ने उन्हें आत्मसात कर स्वयं में कई परिवर्तन किए। लिया। जैन के आदिनाथ को महादेव तो बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार मान लिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि इन दिनों हिंदू धर्म-संस्कृति गंभीर संक्रमण के दौर में है। विदेशी आक्रमणकारियों, विशेष रूप से अंग्रेजों ने इसकी सभ्यता-संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार सन 1850 तक देश में कुल गांवों से अधिक गुरुकुल थे। वहां धर्म-संस्कृति और विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। उस जमाने में देश में साक्षरता दर 95 फीसद से अधिक थी। ज्ञान की उस धारा को रोककर अंग्रेजों ने रंग और चमड़ी से भारतीय के अंदर विचार, सिद्धांत और सोच में अंग्रेज तैयार करने वाली शिक्षा पद्धति थोप दी। नए विद्वानों ने अपनी धर्म-संस्कृति को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई।

धंधेबाजों ने दुकानें खोल सनातन धर्म को बदनाम किया

प्रकृति के नियम को मानने वाले सिद्धांत के नाम पर धंधेबाजों ने धर्म की दुकानें खोल ली हैं। उन्होंने कर्मकांड के नाम पर पाखंड भर दिया है। धर्म की दुकान चलाने के लिए इसकी गलत व्याख्या कर दी है। मूल ज्ञान के अभाव में आम हिंदू उनके षड्यंत्र का शिकार हो रहे हैं। वे इन धंधेबाजों के संदेश को ही धर्म समझने लगे हैं। वस्तुतः धर्म के नाम पर ऐसे लोग ही धर्म का नाश करने में जुटे हुए हैं। धार्मिक कट्टरता, असहिष्णुता और गलत परंपरा का अंधानुकरण कर रहे हैं। दुकानें चलाने के लिए ही वर्ण व्यवस्था का जहर इन्हीं ने फैलाया है। गुरु नाम का जप और मनमाने नियम ने हिंदू धर्म को मजाक बना दिया है। वेदों, स्मृतियों और पुराणों में हिंदू धर्म को सनातन या वैदिक धर्म कहा गया है। उसमें वर्ण जन्म नहीं, कर्म के आधार पर है।

नोट- हिंदुओं को धर्म के मूल सिद्धांत और इसके वैज्ञानिक पहलुओं की जानकारी देने वाली यह श्रृंखला जारी रहेगी।

संदर्भ- वेद, पुराण, स्मृति, भारत का प्राचीन इतिहास, विभिन्न समाचार पत्रों से प्राप्त जानकारी।

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