शिव व शक्ति का अद्भुत केंद्र है वैद्यनाथ धाम

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जानें मंदिरों पर क्यों होता है गुंबद
जानें मंदिरों पर क्यों होता है गुंबद, क्या है।

Vaidyanath Dham is wonderful centre of Shiv-Shakti : शिव व शक्ति का अद्भुत केंद्र है वैद्यनाथ धाम (बाबाधाम)। भोलेनाथ कामना लिंग के रूप में उपस्थित हैं। यह शक्तिपीठ भी है। सती का यहां हृदय गिरा था। इसलिए माता हृदय से भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। शिव और शक्ति यहां भक्तिपूर्वक आने वाले की हर मनोकामना पूरी करते हैं। यह भी मान्यता है कि इस नगरी में कोई व्यक्ति भूखा नहीं सो सकता है। यूं तो सालों भर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है। सावन की छटा अद्भुत होती है। 100 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज में गंगा में स्नान कर श्रद्धालु गंगाजल भरते हैं और पैदल चलकर बाबाधाम में शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यहां पर भोलेनाथ के आगमन की कथा भी निराली है। बाबा को रावण लंका ले जा रहा था। देवताओं ने लंका जाने से रोकने के लिए योजना बनाकर बाबा को यहां स्थापित करा दिया।

महादेव को लंका ले जाने के लिए रावण ने की कठोर तपस्या

रावण ने लंका को अजेय बनाने के लिए महादेव को वहां ले जाने की योजना बनाई। इसके लिए उसने घनघोर तपस्या की। इस क्रम में वह अपना एक-एक सिर काटकर भगवान को अर्पित करने लगा। उसने नौ सिर चढ़ा दिए। जब दसवां सिर काटकर चढ़ाने को उद्यत हुआ तो भोलेनाथ प्रकट हो गए। उन्होंने रावण से वर मांगने के लिए कहा। रावण ने उन्हें लंका में चलकर रहने का वर मांगा। महादेव ने उसे कोई अन्य वर मांगने के लिए कहा लेकिन रावण ने मना कर दिया। तब विवश होकर शिव चलने के लिए तैयार हुए। साथ ही उन्होंने शर्त रखी कि उसे उन्हें लिंग रूप में उठाकर ले जाएगा। यदि मार्ग में कहीं नीचे रखा तो फिर वे वहीं स्थापित हो जाएंगे। आगे नहीं जाएंगे। अपनी शक्ति और चलने की तीव्र गति के प्रति आश्वस्त रावण ने उसे स्वीकार कर लिया। रावण उन्हें उठाकर द्रुत गति से चला।

भयभीत देवताओं ने शिव को रोकने की बनाई योजना

भोलेनाथ के लंका जाने की बात से देवता डर गए। वे जानते थे कि जहां महादेव होंगे, उस स्थान को कोई क्षति नहीं पहुंचा सकता। इसलिए उन्होंने रावण को रोकने की योजना बनाई। माया के प्रभाव से रावण को शिव व शक्ति का अद्भुत केंद्र वैद्यनाथ धाम के पास लघुशंका लगी। उधर, वहां भगवान विष्णु चरवाहे बालक के रूप में आ पहुंचे। रावण उन्हें शिवलिंग थमा कर लघु शंका के लिए बैठ गया। माया के प्रभाव से उसके पेट में मानो उस दिन सागर भर गया था। उसके मूत्र से वहां तालाब बन गया जो आज भी है। इधर चरवाहे का रूप धरे विष्णु ने रावण से कहना शुरू किया कि वह और अधिक बोझ नहीं उठा सकते। रावण निवृत्त नहीं हो पा रहा था। तभी विष्णु शिवलिंग नीचे रखकर अंतर्ध्यान हो गए। लघुशंका से निवृत्त हो जब रावण शिवलिंग उठाने लगा तो वह टस से मस नहीं हुआ।

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देवताओं ने वैद्यनाथ धाम में स्थापित किया शिवलिंग

क्रोधित रावण ने शिवलिंग पर घूंसा जड़ दिया। इससे वह भूमि में धंसने के साथ थोड़ा टेढ़ा हो गया। फिर रावण निराश होकर लंका लौट गया। तब, ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र समेत सभी देवता वहां पहुंचे। उन्होंने शिवलिंग की विधिवत पूजा कर उसे वहां स्थापित कर दिया। वैद्यनाथ धाम का शिवलिंग आज भी भूमि के ऊपर मात्र 11 अंगुल है। वह एक ओर से धंसा हुआ है। वैसे तो इस यहां हर तरह की मनोकामना पूरी होती है लेकिन रोग मुक्ति में इसका प्रभाव चमत्कारिक है। मान्यता के अनुसार यहां नियमित आरती दर्शन मात्र से लोगों को गंभीर बीमारी से भी छुटकारा मिल जाता है। मंदिर से थोड़ी दूर पर बड़ा सरोवर है। सामान्य रूप से श्रद्धालु उसी सरोवर में स्नान कर बाबा का दर्शन करते हैं। कोटि रूद्र संहिता और शिव महापुराण में भी द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का खूब बखान है।

जानें कब और कैसे जाएं

शिव व शक्ति का अद्भुत केंद्र वैद्यनाथ धाम (देवघर) झारखंड राज्य में स्थित है। दिल्ली और हावड़ा सहित देश के कई प्रमुख शहरों से ट्रेन सेवा से जुड़ा हुआ है। यह पटना-हावड़ा ट्रेन रूट पर स्थित जसीडीह स्टेशन के पास है। कोलकाता या पटना तक हवाई सेवा से पहुंचकर वहां से ट्रेन, बस या टैक्सी से भी यहां तक पहुंचा जा सकता है। सावन माह में हर साल सुल्तानगंज से कांडवड़ लेकर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। अतः दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को इस माह को छोड़कर आना चाहिए। शांति से अच्छी पूजा के लिए अप्रैल से जून और दिसंबर से फरवरी तक का समय सबसे उपयुक्त है। वैसे यहां सालों भर भक्त आते रहते हैं। यहां ठहरने के लिए हर स्तर के होटल और लॉज उपलब्ध हैं। पंडों धर्मशाले भी बना रखे हैं। उसमें भी ठहरा जा सकता है।

संदर्भ ग्रंथ- शिव महापुराण और कोटि रूद्र संहिता। साथ ही लोक मान्यता पर आधारित।

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