होनी तो हो के रहे अनहोनी ना होय, जाको राखे साइयां…

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होनी तो हो के रहे अनहोनी ना होय, जाको राखे साइयां...
होनी तो हो के रहे अनहोनी ना होय, जाको राखे साइयां...।

You can not avoid destiny : होनी तो हो के रहे अनहोनी ना होय। जाको राखे साइयां मार सके न कोय। यह पंक्ति लोग बोलचाल में भी कई बार कह देते हैं लेकिन इसे जीवन में उतार नहीं पाते। यह सच है कि मनुष्य चाहे जितना भी प्रयास कर ले, होनी को टाल नहीं सकता है। इसके विपरीत आचरण करके स्थिति को बदलने का प्रयास ही अहम को जन्म देता है। आध्यात्मिक मार्ग में यह सबसे बड़ी बाधा है। होनी को टालने का प्रयास अहंकार को जन्म देता है। इसका अर्थ चुप होकर बैठे रहना नहीं है। कर्म अवश्य करना चाहिए। गीता और रामायण दोनों कर्म को आवश्यक बताते हैं। साथ ही कहते हैं कि कर्म करते समय कर्ता का भाव न लाएं। बल्कि सब कुछ ईश्वर को समर्पित कर कर्म करें। ईश्वर ही हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय करेंगे। सुंदरकांड के एक प्रसंग को पढ़ें।

सुंदरकांड का प्रसंग

माता सीता की खोज में हनुमान अशोक वाटिका पहुंचे। देखा कि क्रोध में भरा रावण सीता को मारने के लिए तलवार लेकर दौड़ा। हनुमान जी संकट देखकर रावण से तलवार छीनकर उसका सर काटने की सोचने लगे। तभी देखा कि मंदोदरी आगे बढ़ी और रावण को रोक लिया। हनुमान जी समझ गए कि भगवान ने माता की रक्षा का प्रबंध कर रखा है। बाद में प्रभु भक्त त्रिजटा को कहते सुना कि उसने स्वप्न देखा कि लंका में बंदर आया है। वह इसे जला डालेगा। वे सोच में पड़ गए। ऐसा कैसे संभव है। बाद में जब रावण उन्हें मारने का उपक्रम करने लगा तो विभीषण ने बताया कि दूत को मारना नीति विरुद्ध है। इस पर रावण ने कहा कि ठीक है। फिर उसकी पूंछ में कपड़े लपेट कर जला दिया जाए। हनुमान जी समझ गए कि प्रभु ने लंका जलाने का प्रबंध भी कर रखा है।

भगवान ने रावण से करवाया लंका जलवाने का प्रबंध

होनी तो हो के रहे अनहोनी ना होय। ऐसा ही लंका में हुआ। उसका दहन भगवान ने पहले ही निर्धारित कर दिया था। यदि रावण ने हनुमान की पूंछ में कपड़े, घी आदि नहीं लगाए होते तो वे कहां इसे इसका इंतजाम करते? तब कैसे लंका जला पाते? भगवान ने रावण से ही लंका जलावाने की पूरी व्यवस्था करवाई। और जब हनुमान जी लंका जलाने निकले तो हवाओं ने भी विकराल रूप धारण कर उसमें मदद की। तुलसीदास जी ने लिखा है कि चले मरुत उनचास। हनुमान जी ने भी बादम  प्रभु राम को बताया कि सब उन्हीं की इच्छा से हुआ। सच यही है कि होनी ईश्वरीय विधान है। मनुष्य निमित्त मात्र है। उसे कर्ता भाव कि उसने किया है, इससे बचना चाहिए।

भक्त प्रह्लाद, होलिका व मीरा का उदाहरण देखें

विष्णु पुराण में भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा का भी यही संदेश है। उस समय का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हिरण्यकश्यप ने उसे कई बार मारने की कोशिश की लेकिन बाल बांका नहीं कर सका। अंत में न जलने का वरदान पाने वाली होलिका के साथ अग्नि पर बैठा दिया। भगवान ने फिर चमत्कार किया। जिसे आग में नहीं जलने का वरदान था, वह होलिका जलकर मर गई। जिसके लिए सारा उद्यम किया गया वह भक्त प्रह्लाद सशुकशल बाहर निकल आया। कृष्ण भक्त मीरा बाई को विष पिलाया गया लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा। कारण स्पष्ट है कि प्रह्लाद और मीरा बाई ने स्वयं को भगवान के हवाले कर दिया था। दूसरी ओर उन्हें मारने का प्रयास करने वाले अहंकार पाले बैठे थे। अंततः नाश को प्राप्त हुए। इसीलिए कहा है कि होनी तो हो के रहे अनहोनी ना होय।

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