ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों हैं अधिकतर सिद्ध मंदिर, जानें कारण

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ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों हैं अधिकतर सिद्ध मंदिर, जानें कारण
ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों हैं अधिकतर सिद्ध मंदिर, जानें कारण।

Why are most of the Siddha Temples on high mountains, know the reason : ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों हैं अधिकतर सिद्ध मंदिर, जानें कारण। यह एक रहस्यपूर्ण प्रश्न लगता है कि अधिकतर बड़े सिद्ध धर्मस्थल ऊंचे पहाड़ों पर ही क्यों स्थित हैं? क्यों इन्हें साधारण लोगों की पहुंच से दूर रखने का प्रयास किया गया? ये स्थल मैदानी इलाकों में भी तो हो ही सकते थे? यह सवाल जितना कठिन लगता है, उसका जवाब उतना ही सरल है। वास्तव में ये धर्मस्थल साधना स्थल हैं। समय के साथ-साथ साधकों की कमी होने और मनुष्य की खोजी वृत्ति के कारण ये साधना स्थल मंदिरों में बदलते चले गए। चूंकि इन स्थलों पर लंबी साधना के कारण असीम ऊर्जा एकत्रित हो गई है, इसलिए वहां भक्तों की मनोकामना आसानी से पूरी हो जाती है। परिणामस्वरूप ये साधना स्थल अब मंदिर के रूप में भारी भीड़ के केंद्र बन गए हैं।

मंदिर नहीं साधना स्थल

ऊंचे पहाड़ों पर स्थित अधिकतर मंदिर वास्तव में प्राचीन साधना स्थल हैं। यही कारण है कि इनमें मूर्तियों का अभाव रहता है। लोग आज भी प्राकृतिक पिंडी की ही पूजा करते हैं। प्राचीन काल में ऋषियों-मुनियों एवं योगियों ने साधना के लिए अपनी दिव्य दृष्टि से ऐसे स्थानों की खोज की। ये सभी स्थान शांत और सुंदर हैं। पहले बाहरी लोगों का आवागमन लगभग शून्य था। साथ ही निरंतर विशिष्ट ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में प्रवाहित होती रहती थी। इस कारण साधना में शीघ्र सफलता मिलती थी। यह देख आमजन भी यहां आने लगे। उनकी मनोकामना पूरी होने लगी तो इन स्थलों की प्रसिद्धि बढ़ी। इस तरह लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। उन्होंने इसका पूजा स्थल के रूप में प्रयोग शुरू किया जो अंततः मंदिर बन गया। भीड़ बढ़ने से अब इन स्थलों पर साधना तो कठिन है लेकिन भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए उपयुक्त केंद्र बन गए हैं।

वैज्ञानिक पहलू के बारे में भी जानें

ऊंचे पहाड़ों पर ही सिद्ध मंदिरों का कारण जानने के लिए हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश समेत विंद्याचल पर्वत की कंदराओं पर नजर डालें। ये हमेशा से तपस्वियों के प्रिय स्थान रहे हैं। धर्मग्रंथों के इसके कई उदाहरण भरे पड़े हैं। यहां आज भी जनसंख्या कम है। शोर-गुल, प्रदूषण भी नहीं के बराबर है। साधना के लिए यह आदर्श स्थिति है। ऊपर से पहाड़ अपने आप में पिरामिड के आकर होते हैं। वहां ऊर्जा का प्रवाह अधिक रहता है। इसीलिए साधकों को आसानी से सफलता मिलती है। यही कारण है कि इन पहाड़ों को सिद्ध पुरुषों की भूमि भी कहा जाता है। इन स्थानों पर सिद्ध पुरुषों की कर्मभूमि होने के भी उदाहरण भरे पड़े हैं। केदारनाथ में नर-नारायण ने तपस्या की थी। कामाख्या मंदिर तो कई सिद्ध तांत्रिकों का केंद्र ही माना जाता है। कैलाश, मणिमहेश व अमरनाथ स्वयं शिव का स्थान माना जाता है।

ऊर्जा का प्रवाह होने एवं भक्तों की पूजा से मिलती है शक्ति

यहां विशेष ऊर्जा का प्रवाह आज भी जारी है। ऊपर से लाखों की संख्या में आने वाले भक्तों की पूजा से ये केंद्र लगातार शक्ति संपन्न हो रहे हैं। सामान्य पूजा या भक्ति भाव से भी कई लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है। भीड़ बढ़ने के साथ ही शोर-गुल, प्रदूषण और आडंबर बढ़ा है। ऐसे में साधकों के लिए यहां तपस्या करना अत्यंत कठिन हो गया है। इसलिए सच्चे तपस्वियों की संख्या अब नगण्य है। जो हैं भी वे गुप्त रूप से साधना करते हैं। तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि फिर अयोग्य लोगों के माध्यम से पूजा कराकर फल कैसे मिल जाता है। इसके लिए आपको राजस्थान के मेहंदीपुर बालाजी का उदाहरण देखना होगा। जहां अधिकतर भक्तों को बिना किसी पंडों व पुरोहितों के पूजा कराए ही फल मिलता है। दरअसल फल पूजा से नहीं, अपितु उस स्थान की शक्ति से फल मिलता है।

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