गणेश जी की उपासना
दस दिन की गणेश जी की उपासना लक्ष्य प्राप्ति में काफी उपयोगी होती है। शुभ समय और मुहुर्त देखकर इसका शुभारंभ करें। पूर्णिमा, अमावस्या या दस दिवसीय गणेश महोत्सव में समय देखने की भी आवश्यकता नहीं है। बाकी दिन में किसी ज्योतिषी या पंडित में सहयोग लें। समय तय करने के बाद नीचे दिए गए मंत्रों में से कोई मंत्र चुन लें। फिर नियमपूर्वक अधिक से अधिक संख्या (यदि संभव हो तो पुरश्चरण कर लें) में जप करें। ऐसी उपासना अत्यंत कल्याणकारी होती है। मंत्र, उसका प्रभाव और फल नीचे है। ये सभी भगवान गणेश के अद्भुत मंत्र हैं। इनका फल चमत्कारिक है।
मंत्र– वक्र तुंडाय हुम्।
विधि– छह लाख मंत्र के जप से पुरश्चरण होता है। उसके दशांश हवन करने पर पुरश्चरण होता है। गन्ना, सत्तू, केला, चिऊड़ा, तिल, मोदक, नारियल और धान के लावा को मिलाकर हवन सामग्री तैयार कर सकते हैं। उपरोक्त सारे वस्तुओं के साथ उससे थोड़ी कम मात्रा में काली मिर्च को मिलाकर एक माह तक नित्य एक हजार मंत्र से हवन करने पर बड़ा लाभ मिलना तय है। उक्त सामग्री में जीरा, सेंधा नमक एवं काली मिर्च के साथ पंद्रह दिन ही एक हजार मंत्र से हवन करने पर धन लाभ होता है। मूल मंत्र से प्रतिदिन 444 बार तर्पण किया जाए तो एक माह में ही मनोकामना की पूर्ति होती है।
ध्यान–
उद्यदिनेश्वर रूचिं निजहस्तपद्मै:, पाशांकुशा भयवरान् दधतं गजास्यां।
रक्तां वरम् सकल दुख हरं गणेशं, ज्ञायेत् प्रसन्न मखिरा भरणाभिरामम्।।
यह भी पढ़ें- हर समस्या का है समाधान, हमसे करें संपर्कउच्छिष्ट गणेश
इनका प्रयोग अत्यंत सरल है तथा इनकी साधना में अशुचि-शुचि का कोई बंधन नहीं है। मंत्र शीघ्र फल देने वाले हैं। उच्छिष्ट गणेश अक्षय भंडार के देवता हैं। इनकी साधना करते समय मुंह उच्छिष्ट होना चाहिए। मुंह में गुड़, पताशा, लौंग, इलायची, पान आदि में कुछ भी हो सकता है। भोजन भी स्वीकार्य है। पृथकृ-पृथक कामना के लिए पृथक-पृथक पदार्थ की परिपाटी है। लौंग व ईलायची, सुपारी वशीकरण सहित विभिन्न फल की प्राप्ति में सहायक होता है। मुंह में गुड़ रखकर मंत्र जप से अन्न-धन वृद्धि होती है। मुंह में पान हो तो सर्वसिद्धि के लिए प्रयोग होता है।
ध्यान
शरान्धनु: पाशसृणि पहस्तै दधानमारक्त सरोरुहस्थम्।
विवस्त्र पतन्या सुरत प्रवृत्त मुच्छिष्ट ममवासुतमाश्रयेहम्।।
मंत्र– हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा
विधि– इस मंत्र का सिर्फ 16 हजार जप करने की बात शास्त्रों में वर्णित है। इसी से पुरश्चरण माना गया है। वैसे मेरा अनुभव है कि 16-16 हजार मंत्रों की कम से कम तीन आवृत्ति कर लेनी चाहिए। इसमें दशांश हवन की आवश्यकता नहीं है। पुरश्चरण के बाद निम्न विधि से काम करें। गणेश के अद्भुत मंत्र की प्रयोग विधि में अंतर से फल में भी अंतर आ जाता है।
1-भोजन करते समय पहले गणपति के लिए ग्रासान्न को प्रसाद की तरह निकाल कर अलग रख दें। फिर भोजन करते हुए जप करें। इसी तरह रोज करने पर जप सिद्ध होता है। कुबेर ने इसी मंत्र से नौ सिद्धियां पाईं। विभीषण और सुग्रीव ने भी इसी मंत्र से राज्य सिंहासन हासिल किया।
2-मंत्र जप पूर्ण करने के बाद मधु मिश्रित लाजा (चिरचिरी) से नित्य (एक माह तक) हवन करें। इससे संसार को वशीभूत कर अभीष्ट की प्राप्ति संभव है। यह कार्य कन्या करे तो कितनी भी बाधा हो, उसका अच्छे वर से शीघ्र विवाह हो जाएगा।
हेरम्ब गणपति
मंत्र– गुं नम:
विधि– एक लाख जप से किसी भी देवी-देवता की उपासना में आ रहा विघ्न दूर होता है। इस मंत्र से साधक के आत्मबल और धन में बढ़ोतरी होती है।
लक्ष्मी-विनायक
मंत्र– श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानाय स्वाहा।
विधि– तीन लाख जप के बाद दशांश सामान्य हवन करें। बेल के वृक्ष के नीचे जप करने पर धन वृद्धि होती है। अशोक की लकड़ी से घी मिश्रित चावल से हवन करने से वशीकरण होता है। पायस से हवन करने पर माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
अन्य मंत्र
1-गं क्षित्र प्रसादनाय नम:
विधि– पूजा या किसी साधना में बाधा आ रही हो और सफलता पाते-पाते रह जाते है। विघ्न और कलह से छुटकारा नहीं मिल रहा तो इस मंत्र का नित्य एक हजार जप करें। कुछ ही दिन में सारी बाधाएं खत्म हो जाएंगी।
2-श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजन में वशमानाय स्वाहा।
विधि– इस मंत्र का एक लाख जप करने से ही साधक में वशीकरण की ताकत बहुत बढ़ जाती है। लोग अनायास उसकी ओर खिंचे चले आते हैं। लोग इस मंत्र के साधक के हितैषी और प्रशंसक हो जाते हैं। विरोधी सामाप्त प्राय हो जाते हैं। आपने प्रथम पूज्य गणेश के अद्भुत मंत्र के बारे में पढ़ा। इनका उपयोग हमेशा अत्यंत कल्याणकारी होता है।
यह भी देखें : जानिए भगवान शिव के तीसरे नेत्र का रहस्य