ऋषियों का वरदान योग रखता है निरोग : पहला भाग

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अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक
अध्यात्म के क्षेत्र में अहम से मुक्ति आवश्यक।

yoga gift of saint keeps healthy : ऋषियों का वरदान योग रखता है निरोग। पाठकों की मांग पर इस पर श्रृंखला शुरू कर रहा हूं। इसमें विभिन्न यौगिक क्रियाओं की संक्षिप्त जानकारी दी जाएगी। इससे बीमार व्यक्ति को निश्चय ही लाभ मिलेगा। जो रोग की चपेट में नहीं आए हैं, वे भी इसका पालन कर जीवन भर स्वस्थ रह सकते हैं। रोग की चपेट में आने के बाद इसे सहायक विधि के रूप में ही प्रयोग करना श्रेष्ठ और सुरक्षित रहता है। इसके साथ दवाओं का सेवन भी अवश्य करें। साथ में योग करने से अपेक्षाकृत जल्दी स्वस्थ होंगे। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी। यह लाभ टिकाऊ होगा और भविष्य में भी आपको फायदा पहुंचाएगा। दमा, रक्तचाप, मधुमेह जैसी बीमारियों में योग रामबाण की तरह है। कुछ दिनों में ही पूरी तरह से स्वस्थ कर देता है।

रोज 35 से 40 मिनट के अभ्यास से रहेंगे निरोग

रोज 35 से 40 मिनट तक योग का अभ्यास निरोग रखने के लिए काफी है। ऋषियों का वरदान योग की महिमा निराली है। सामान्य रूप से इसे खुले मैदान में करना चाहिए। जगह की समस्या हो तो घर बैठे भी कर सकते हैं। दोनों स्थिति में लाभ अवश्य होगा। हां, घर में करने पर समय ज्यादा लग सकता है। फायदे में भी थोड़ी कमी हो सकती है। बिहार के मुंगेर योग पीठ ने इस दिशा में अद्भुत काम किया है। स्वामी रामदेव ने इसे जन-जन तक पहुंचाने में अविस्मरणीय भूमिका निभाई है। इस कड़ी में सबसे पहले आसान, प्राणायाम और सूक्ष्य यौगिक क्रियाओं को जानें। अगली कड़ी में विभिन्न मुद्राओं और उसके फायदे के बारे में जानकारी दूंगा। सारी कड़ियों को ठीक से पढ़ना आवश्यक है। अन्यथा आप जरूरी जानकारी से वंचित रह जाएंगे।

बेहतर स्वास्थ्य की पहली सीढ़ी है आसन

योग में आसान का सर्वाधिक महत्व है। बेहतर स्वास्थ्य की यह पहली सीढ़ी है। इसका निरंतर अभ्यास करना होगा। पहले आप पद्मासन, भद्रासन, सिद्धासन या सुखासन ऐसे किसी भी आसान में स्थिर चित्त बैठने का अभ्यास करें। चाहें तो सामान्य रूप से पालथी ही मार लें। इसका मकसद लंबे समय तक एक ही आसन में बैठने का अभ्यास करना है। अतः बैठने के तरीके से ज्यादा इस पर ध्यान देना चाहिए कि किस तरह से आप एक ही आसन में देर तक बैठ सकते हैं। ऋषियों ने बीमार, शारीरिक रूप से अयोग्य आदि को दीवार से टेक लगाकर या किसी भी अन्य सुखकर आसन में बैठ कर यौगिक क्रियाएं करने की भी सलाह दी है।

प्राणायाम से नियंत्रित करें सांस की गति

सांस की गति को नियंत्रित करना और उस पर ध्यान एकाग्र करना प्राणायाम है। सांस को प्राण वायु कहते हैं। इस पर नियंत्रण का मतलब शरीर (स्वास्थ्य सहित) और मन पर नियंत्रण पाना है। ऋषियों का वरदान योग की यह अहम कड़ी है। प्राणायम में सबसे पहले शांत चित्त एक आसन पर बैठें। फिर सांस के आवागमन (शरीर के अंदर व बाहर जाने) पर ध्यान दें। दो से तीन मिनट तक इसका अभ्यास करें। इसके बाद बाद सांस को धीमी गति में जितना ज्यादा खींच सकें खींचें। फिर जितना संभव हो सके रोके रखें। इसके बाद धीरे-धीरे उसे छोड़ना है। इस प्रक्रिया में यह ध्यान रखना होगा कि जितनी देर और गति में सांस खींची गई, छोड़ने की गति और अवधि उससे थोड़ा ज्यादा होगी।  अत: सांस को रोकते समय याद रखें कि स्तंभन की क्षमता शेष रहे। अति होने पर सांस छोड़ने की गति तेज होगी।

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पहले हाथ, पैर, उंगलियों व जोड़ों का संचालन

इसके तहत हाथ, पैर, उंगलियां आदि के जोड़ों का संचालन किया जाता है। पहले बाहर से भीतर फिर भीतर से बाहर के क्रम में किया जाता है। सारी नसें व शिराएं उंगलियों से ही शुरू होती (या जाती) हैं। अत: इसको करने से नसों, शिराओं एवं हड्डियों में नई ऊर्जा का संचार होता है। बच्चा जब जन्म लेता है तो वह सबसे ज्यादा उंगलियों एवं हाथ-पैर के जोड़ों को ही गतिशील रखता है। परिणाम सबके सामने है कि बच्चे का विकास सबसे तेज होता है। इसी सिद्धांत के तहत इन पोरों व उसके जोड़ों के संचालन से शरीर के सारे अवयव सक्रिय होते हैं।

शरीर के ऊपरी अंगों को बनाएं गतिशील

ऋषियों का वरदान योग में सब कुछ निहित है। हाथ, पैर व जोड़ों के बाद अन्य़ अंगों की बारी आती है। इसमें हाथ के ऊपरी हिस्से से लेकर कंधे एवं पैर के ऊपरी हिस्से से लेकर कमर के जोड़ तक को सरल मोड़, विपरीत मोड़, सम्मुख एवं कटिचक्र के माध्यम से गतिशील बनाया जाता है। इसके बाद रीढ़ का नंबर आता है। उसके लिए ताड़ासन, तिर्यक, रीढ़ की हड्डी का व्यायाम और सम्मुख कर्षण किया जाना चाहिए। इसके बाद गर्दन को आगे-पीछे, अगल-बगल मोड़ना, चारों तरफ घुमाना, एक दिशा एवं विपरीत दिशा में तीन-तीन बार करना चाहिए। चेहरे, गले की चमड़ी एवं पतली व छोटी मांसपेशियों के लिए व्याघ्रासन उपयुक्त है।

ऐसे रखें चेहरा व आंखों का ध्यान

दोनों हथेलियों को रगड़ें। जब थोड़ा गर्म हो जाए तो चहरे पर नीचे से ऊपर ले जाएं। इससे चेहरे की कांति बढ़ती है। झुर्रियां खत्म होती हैं। ऐसा प्रतिदिन पांच बार करना चाहिए। इस विधि से आंखों को सेंकने से उसे आराम मिलता है। आंखों की पुतलियों को ऊपर-नीचे, दाएं-बांए, गोल-गोल (सीधी व विपरीत दिशा) पांच-पांच बार घुमाने से आंखों की बीमारियां नियंत्रित रहती हैं। नेत्र ज्योति बरकरार रहता है। यदि दिन में यह प्रक्रिया तीन बार कर लें तो नेत्र ज्योति बढ़ जाती है। यह मोतियाबिंद तक को नियंत्रित करता है। मुंह, होंठ और कंठ को मजबूत एवं कांतिमय बनाने के लिए उसमें हवा भर कर फुलाएं। फिर हवा को बंद मुंह में ही इधर-उधर घुमाएं। इसके साथ ही सांस को छोड़ते समय हं….. की आवाज करें। ऋषियों का वरदान योग का यदि नियमित अभ्यास किया जाए तो जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन दिखता है।

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