शीघ्र फल देती हैं योगिनी, अप्सरा और किन्नरी

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अब नए कलेवर और नए रूप से हों रूबरू।
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Yogini, Apsara and Kinnari gives fruits soon : शीघ्र फल देती हैं योगिनी, अप्सरा और किन्नरी। योगिनी दस महाविद्या की सहायक शक्तियां हैं। यह अत्यंत गुह्य है। अपने साधकों को निहाल कर देती हैं। भौतिक सुख देने में इनका जवाब नहीं है। ये रंक को राजा बनाने में सक्षम है। हां, आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्ति में इससे फायदा नहीं  मिलता है। इन्हीं योगनियों की उपासना कर कुबेर धनाधिपति बने। अतः लौकिक सुख के लिए इनसे बेहतर और कोई नहीं हैं। इनकी सिद्धि के लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन अवश्य लें। उनकी देखरेख में ही इनकी उपासना करें। इसी कारण मैं मात्र प्रमुख योगिनियों के मंत्र व संक्षिप्त उपासना विधि दे रहा हूं। इस आधार पर यदि कोई प्रयोग करना चाहे तो कर सकता है लेकिन जोखिम का उत्तरदायी स्वयं होगा।

सुर सुंदरी साधना

यह अत्यंत प्रभावी देवी हैं। उनकी साधना अत्यंत प्रभावी व शीघ्र फलदायी है। प्रातः स्नानादि नित्यकर्म के बाद आचमन, दिगंबंधन एवं करंगन्यास करें। फिर अष्टदल पद्म यंत्र बनाकर उस पर देवी का न्यास करें। तब पीठ देवताओं की पूजा कर देवी का ध्यान करें। उनका निम्न मंत्र का जप करते हुए ध्यान करें।

पूर्ण चंद्र निभां गौरीं विचित्रांबर धारिणीम्।

पीनोत्तुंगकुचां वामां सर्वेषामभय प्रदाम्।

तदंतर गंध, पुष्प, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा कर मंत्र जप करें। जप का मंत्र है-

ऊं ह्रीं आगच्छ सुर सुंदरी स्वाहा।

इस मंत्र का एक माह तक प्रतिदिन तीनों संध्या में एक-एक हजार जप करें। अंतिम दिन पहले बलि आदि उपहारों से देवी की पूजा करें। उसके बाद बीच-बीच में रुक कर सुबह से मध्यरात्रि तक जप करें। मध्यरात्रि में देवी दर्शन देती हैं। तब पुनः पूजन कर अपेक्षित वर मांगें। शीघ्र फल देती हैं देवी।

इनका भी रखें ध्यान

देवी के दर्शन देने पर उन्हें मां, बहन या पत्नी कहकर संबोधित करें। जिस रूप में उन्हें संबोधित करेंगे, देवी उसी रूप में आपको प्राप्त होंगी। मातृ भाव से संबोधित करने पर वे साधक को धन-संपदा सहित राजत्व प्रदान करती हैं। प्रतिदिन आकर उसका पुत्रवत पालन करती हैं। बहन भाव में विविध द्रव्य, दिव्य वस्तुएं उपलब्ध कराती हैं। साथ ही साधक जो भी कामना करे, देती हैं। बहन की तरह उसकी देखभाल करती हैं। पत्नी रूप में संबोधित करने पर विश्व का समस्त ऐश्वर्य प्रदान करती हैं। भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी के साथ ही हर जगह तीव्र गति में आवागमन की क्षमता उपलब्ध कराती हैं। इस साधना में समस्या यह भी है कि जिस रूप में उन्हें संबंधित किया जीवन में उस संबंध की हानि होती है। अर्थात या तो उस संबंधी की मृत्यु हो जाएगी या फिर आपको उसका पूरी तरह से त्याग करना होगा।

मन भटकने का रहता है खतरा

एक खतरा यह भी है कि देवी का सौंदर्य अलौकिक है। मां या बहन के रूप में संबोधित करने वाला बाद में उन्हें पत्नीवत चाहने लगता है। यह उसके पतन का कारण बनता है। ऐसे साधक का नाश निश्चित है। इसके साथ ही साधना काल में तरह-तरह की बाधाएं उत्पन्न होती हैं। अतः साधक का सुरक्षा चक्र और मन मजबूत होना चाहिए। उसमें देवी को पाने की तीव्र इच्छा हो। इसमें चूक होने पर अनिष्ट का भय रहता है। अतः गुरु का साथ आवश्यक है। अन्यथा पथभ्रष्ट होने के साथ ही जीवन संकट पर पड़ने का खतरा भी रहता है मनोहरा योगिनी, कनकावती योगिनी, रति सुंदरी योगिनी, कामेश्वरी योगिनी, नटिनी योगिनी, पद्मिनी योगिनी आदि की भी साधना मिलती-जुलती है। विस्तार भय से उसे नहीं दे रहा हूं। यदि कोई खास योगिनी की जानकारी चाहते हों तो मुझे मेल करें। सभी योगिनी शीघ्र फल देती हैं और लगभग समान हैं।

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अप्सरा साधना

अप्सरा नाम से ही स्पष्ट है कि ये अत्यंत रूपवती होती हैं। योगिनी से थोड़े निचले स्तर की यह साधना है। इसमें सिद्धि के बाद वे सिर्फ पत्नी रूप में रहती हैं। ऐसे में अपनी पत्नी का पूर्ण त्याग आवश्यक है। अन्यथा बड़ी हानि होगी। इसमें फल भी योगिनी की तुलना में थोड़ा कम है। ये द्रव्य और रसायन प्रदान करती हैं। इन्हें सिद्ध करने में मंत्र के साथ पूजा के बदले मुद्रा का प्रचलन अधिक है। दर्शन दे तो अग्निमुद्रा से आह्वान करें। फिर खड़े होकर कमल के समान अंजली बनाने से उनका मोहन होता है। हाथ जोड़कर मुद्रा दिखाने से वह वश में हो जाती हैं। इसमें एक माह तक नित्य आठ हजार जप का विधान है। आवाहन करने का मंत्र है।

तत्क्षणात् सर्वाप्सरस आगच्छागच्छ हूं यः यः।

सान्निध्य पाने का मंत्र है।

ऊं सर्वसिद्धि भेगेश्वरि स्वाहा।

उनके अभिमुख होने का मंत्र है।

ऊं काम प्रियायै स्वाहा।

विवश करके भी बुलाते हैं अप्सरा को

कई बार सामान्य प्रक्रिया से अप्सरा नहीं आती हैं तो उन्हें विवश कर बुलाने का विधान है। इसके लिए पहले क्रोध मंत्र का प्रयोग कर ताड़न करें। मंत्र है।

ऊं ह्रीं अकट्टः कट्टः ह्रूं वः फट्।

इसके बाद स्तंभन मंत्र से बंधन करें। इसे अप्सरा को बंधकर आना ही पड़ता है। मंत्र है।

ऊं सबंध सबंधस्तनू हूं फट्।

शशि अप्सरा मंत्र

ऊं श्री शशि देव्यागच्छागच्छ स्वाहा।

पर्वत शिखर पर एक लाख जप करें। प्रतिपदा से जप शुरू करें। पूर्णिमा को सारी रात जप करने पर प्रातः अप्सरा दर्शन देकर मनोकामना पूर्ण करती हैं। शशि के स्थान पर उर्वशी नाम कर देने पर उर्वशी अप्सरा का मंत्र हो जाता है। उनके दर्शन देने पर कुशासन दें। मिलते-जुलते मंत्र और साधना विधि रंभा, रत्नमाला, कुंडलाहारिणी, भूषणि अप्सरा का है। शीघ्र फल देती हैं सभी अप्सरा।

किन्नरी साधना

यह साधना भी अप्सरा से मिलती-जुलती है। इसमें भी दर्शन में विलंब होने पर उसी तरह क्रोध व स्तंभन मंत्र का विधान है। इसमें भी प्रतिपदा से जप शुरू करने का विधान है। प्रतिदिन आठ हजार जप कर पूर्णिमा को रात भर जप करें। सुबह देवी दर्शन देकर मनोकामना पूरी करती हैं। नीचे किन्नरियों के मंत्र दे रहा हूं।

मंजुघोष किन्नरी मंत्र

ऊं मंजुघोषे आगच्छागच्छ स्वाहा।

मनोहारी किन्नरी मंत्र

ऊं मनोहार्ये स्वाहा।

सुभगा किन्नरी मंत्र

ऊं सुभगे स्वाहा।

मंगला किन्नरी मंत्र

ऊं सुभगे मंगले स्वाहा।

विशालनेत्रा किन्नरी

ऊं विशालनेत्रे स्वाहा।

इनके अलावा सुरति प्रिया किन्नरी, अश्वमुखि किन्नरी और दिवाकीरमुखि किन्नरी की साधना भी लगभग समान है। अगले अंक में यक्षिणी साधना की जानकारी दूंगा।

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