जप के बाद भी नहीं मिलता मनचाहा फल, जानें कारण

1064
ऐसे करें मंत्र साधना तो अवश्य मिलेगी सफलता
ऐसे करें मंत्र साधना तो अवश्य मिलेगी सफलता।

Know why you do not get the desired results : जप के बाद भी नहीं मिलता है मनचाहा फल। जानें इस समस्या का कारण। यह समस्या बहुत लोगों की है। खूब मंत्र जप व अनुष्ठान करते हैं। इसके बाद भी उन्हें मनचाहा फल नहीं मिलता है। फिर वे मंत्र व अनुष्ठान को बेकार कहने हैं। यह उनकी बड़ी भूल है। मंत्र विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार ही काम करता है। जैसे- हर क्रिया के विपरीत समान प्रतिक्रिया होती है। मंत्र जप का भी यही सिद्धांत है। जप करने का असर जरूर होता है। लेकिन इसके लिए विधि-विधान का होना जरूरी है। इसे इस तरह समझें। पानी में कंकर फेंकने से पानी में हलचल होती है। साथ ही कंकर उसके तल में जमा भी होता है। लेकिन उस हलचल व तल में जमा कंकर की साथर्कता नहीं होती। इसी तरह किसी भी तरह से मंत्र जप करें तो प्रभाव होता है। यह अलग बात है कि करने वाले को फायदा नहीं दिखता है। इसके लिए कुछ तरीके हैं।

विधि-विधान से ही करें मंत्र जप व अनुष्ठान

जप के बाद भी मनचाहा फल के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें। जप और अनुष्ठान नियमपूर्वक करें। खुद नहीं कर सकते तो योग्य पंडित से कराएं। हर मंंत्र के जप के कुछ नियम हैं। उनका पालन करने से ही निश्चित फल मिलता है। मैंने पाया है कि अधिकतर लोग यहीं चूक करते हैं। कई कथित पंडित भी इसे नहीं जानते हैं। जप या अनुष्य़ान के तरीके को ठीक से न जानने से ही निराशा हाथ लगती है। पर्याप्त संख्या में जप करके भी फायदा नहीं होता है। सिक्के का दूसरा पहलू भी है। जप पूरी तरह से निष्फल नहीं होते हैं। उसका फायदा अवश्य मिलता है। लेकिन बिना विधान के होने से अधूरा रहता है। कई बार फल में विलंब या कमी हो जाती है। आइये कुछ छोटी-छोटी बातों को जानें। इस पर ध्यान देकर भरपूर फायदा उठा सकते हैं।

संकल्प लें, स्थान और समय नियत हो

जप के लिए मकसद/लक्ष्य स्पष्ट हो। उस कामना के लिए मंत्र जप का संकल्प लें। उसी समय जप संख्या, हवन, तर्पण आदि निश्चित कर लें। फिर तदनुसार ही जप करें। जप करने से पूर्व स्नानादि कर साफ-सुथरा हो लें। फिर देवालय, पूजा स्थान या कोई भी जगह तय करें। उसी जगह पर रोज जप करें। वहां साफ आसन पर बैठकर जप या अनुष्ठान करें। एक बार शुरू करने के बाद उस ुप अमल करें। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। यदि बीच में बाधा का अर्थ संकल्प टूटना होता है। अतः फिर संकल्प लेकर जप शुरू करें। 

माला पर जप करना सबसे अच्छा होता है। माला किस तरह का हो, वह मंत्र पर निर्भर करता है। जैसे-शिव के मंत्र के लिए रूद्राक्ष सबसे अच्छा है। बगलामुखी के लिए हल्दी की माला हो। माला साफ और बिना टूट-फूट के हो। उसे साफ कपड़े में लपेट कर रखें। कपड़े को गोमुखी बनाएं। इसमें जप के दौरान माला पूरी तरह से ढकी रहेगी। गोमुखी में से तर्जनी उंगली बाहर रहनी चाहिए। माला से जप करते समय पोर का उल्लंघन नहीं करें। उंगलियों पर भी मंत्र जप किया जा सकता है। ज्यादा संख्या में उंगली पर जप करना कठिन होता है। इसमें गिनती गड़बड़ाती है। अब कई लोग काउंटर (गिनती गिनने के लिए) पर जप करते हैं। मेरा अनुभव है कि इस पर भी फल मिलता है।

जप में आवाज न निकले सिर्फ होंठ हिले

मंत्र जप के दौरान उच्चारण पर ध्यान दें। आवाज न के बराबर हो। अर्थात पास बैठा आदमी भी उसे समझ न सके। मानसिक जप भी बहुत अच्छा होता है। यह सबके लिए कठिन होता है। सामान्य उपासक को होंठ हिलाते रखना चाहिए। आवाज बहुत धीमी हो। पास बैठा व्यक्ति आवाज सुने लेकिन शब्द न समझे। जप का सर्वश्रेष्ठ तरीका उसका सांसों से तालमेल है। अर्थात जप के दौरान उसके कोई हिस्से को सांस छोड़ते हुए कर रहे हों तो हर बार उस हिस्से को सांस छोड़ते हुए ही करें। यह बेहद महत्वपूर्ण है।

जप के दौरान संबंधित देवता का ध्यान करें

जप के दौरान मंत्र के देवता का लगातार ध्यान करें। इसी कारण मंत्र जप से पहले ध्यान का विधान है। इससे साधक के मन में मंत्र के देवता का चित्र खिंच जाता है। उसका मन स्थिर रहता है। जप के दौरान हड़बड़ी न करें। अर्थात तेजी से मंत्र जप करना अच्छा नहीं होता है। जितना समय हो उतना ही जप करें। शांतचित्त और स्थिर होकर करें। जप के समय बैठने के तरीके में बार-बार बदलाव न करें। खुजली, पसीना, दर्द आदि से ध्यान हटाएं। स्थिर चित्त से जप पर ही ध्यान केंद्रीत रखें। इससे जप के बाद भी नमनचाहा फल मिलने की शिकायत नहीं रहेगी।

मंत्र के देवता के अनुरूप हो वस्त्र व भोजन, हवन जरूरी

जिस देवी-देवता के मंत्र का जप कर रहे हों, उसी अनुरूप भोजन, वस्त्र, आसान आदि का चुनाव करें। जैसे-बगलामुखी की साधना के दौरान पीत वस्त्र पहनें। पीले फल, अनाज आदि का भोजन करें। जप संख्या पूरी होने के बाद हवन जरूरी होता है। कुल जप संख्या का दशांश हवन करें। मंत्र यदि शरीर है तो हवन उसकी आत्मा। आत्मा के बिना शरीर निष्प्रभावी है। उसी तरह हवन के बिना मंत्र बेकार है। उपरोक्त बातों का ध्यान रखें। फिर नहीं कहेंगे कि जप के बाद भी नहीं मिलता है मनचाहा फल।

यह भी पढ़ें : सुविचार : श्री कृष्ण-अर्जुन संवाद भगवद्गीता अध्याय- 2 श्र्लोक- 47

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here