Get the life as you want with the help of finger postures : उंगलियों से बनने वाली मुद्राओं में छिपा है जीवन का रहस्य। इन मुद्राओं के माध्यम से मनचाहा जीवन पा सकते हैं। समस्त प्रकृति ब्रह्मांड के पंच तत्वों से संबंधित है। देवी-देवता तक इससे जुड़े हैं। इन तत्वों पर नियंत्रण का अर्थ ब्रह्मांड पर नियंत्रण है। धर्म ग्रंथों और योग शास्त्रों में भी पंच तत्वों की महिमा का खूब वर्णन है। उसमें स्पष्ट है कि संसार का कण-कण पंच तत्व के ही रूप हैं। चूंकि शरीर भी पंच तत्व से निर्मित है, अतः इसे साध कर सब कुछ पाना संभव है। यह बहुत बड़ा विषय है। उसके बारे में अधिक चर्चा बाद में। अभी चर्चा मुद्राओं के माध्यम से चिकित्सा की। ध्यान रहे कि यह सामान्य जानकारी है। इसके साथ ही पंच तत्वों की सामान्य जानकारी भी।
पंच तत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं हाथों की उंगलियां
हाथों की उंगलियों के माध्यम से सभी तत्वों का नियंत्रण हमारी मुट्ठी में है। हर उंगली पंच तत्व में से किसी न किसी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। जैसे अंगूठा अग्नि तत्व, तर्जनी वायु तत्व, मध्यमा आकाश तत्व, अनामिका पृथ्वी तत्व और कनिष्ठा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। इन उंगलियों से मुद्रा बनाकर संबंधित तत्वों को नियंत्रित और संतुलित किया जा सकता है। दसों उंगलियों से विशेष प्रकार की आकृति बनाने को ही हस्त मुद्रा कहा जाता है। इससे स्वास्थ्य संबंधी लाभ से लेकर ग्रहों को अनुकूल बनाने तथा कुंडलिनी जाग्रत करने जैसे कार्य करना संभव है। हर उंगली में अलग-अलग विद्युत धारा प्रवाहित होती है। इसलिए मुद्रा विज्ञान के अनुसार जब उंगलियां विशेष रूप से स्पर्श करती (मुद्रा बनाती) हैं, तब रुकी या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जगा देती है।
हस्त मुद्राएं कई, फिलहाल 11 की चर्चा
उंगलियों से बनने वाली मुद्राएं कई प्रकार की होती हैं। आवश्यकतानुसार अलग-अलग कार्यों में उनका उपयोग किया जाता है। यहां मैं स्वास्थ्य से जुड़ी मुख्य रूप से 11 मुद्राओं की जानकारी दे रहा हूं। उनसे चमत्कारिक लाभ उठाया जा सकता है। ध्यान रखें कि मुद्रा करते समय अधिकतर में एक हाथ की दो उंगलियों का ही उपयोग किया जाता है। शेष उंगलियों की सीधी रखें। यह भी ध्यान रखें कि अधिकतर मुद्राओं को बहुत अधिक नहीं करना चाहिए। अन्यथा लाभ के बदले हानि होने लगेगी। जब तक समस्या है, तब तक ही उसे करें। इस दौरान पद्मासन या सामान्य पालथी मारकर बैठें और नित्य 15-15 मिनट की अवधि में तीन बार या 22-22 मिनट की अवधि में दो बार करें। मुद्रा करने के दौरान खान-पान के मामले में सतर्क रहें। अच्छा होगा कि उस दौरान नशे का त्याग करें और भोजन सात्विक रखें।
ज्ञान और वायु मुद्रा
ज्ञान मुद्रा में अंगूठे के अग्रभाग को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगा दें। शेष तीनों उंगलियां सीधी रहेंगी। ऐसा दोनों हाथों से करें। इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है। साथ ही विचार शक्ति भी प्रबल होती है। पढ़ने में मन लगने लगता है। अनिद्रा एवं क्रोध में कमी आती है। स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आता है। आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। वायु मुद्रा में तर्जनी को मोड़कर उसके अग्रभाग को अंगूठे के मूल में लगाकर हल्का दबाएं। शेष उंगलियां सीधी रखें। ऐसा करने से वायु शांत होती है। लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द में लाभ मिलता है। इससे गले एवं रीढ़ में दर्द आदि में भी आराम मिलता है।
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आकाश, शून्य और पृथ्वी मुद्रा
मध्यमा उंगली को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाने से आकाश मुद्रा बनती है। शेष तीनों उंगलियां सीधी रहनी चाहिए। इससे कान के सभी प्रकार के रोगों में लाभ मिलता है। हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय रोग में यह लाभकारी है। शून्य मुद्रा में मध्यमा को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाएं। मध्यमा के मुड़े भाग को अंगूठे से दबाएं। यह कान के साथ मसूढ़े गले, एवं थायरायड में लाभदायक है। उंगलियों से बनने वाली मुद्रा में अब जानें पृथ्वी मुद्रा के बारे में। इसमें अनामिका उंगली के अग्रभाग को अंगूठे से लगाएं। इससे शरीर में कांति, तेजस्विता और स्फूर्ति बढ़ती है। वजन संतुलित होता है। जीवनी शक्ति का विकास होता है। विशेष रूप से दुबले लोगों के लिए रामबाण की तरह है। यह मुद्रा पाचन क्रिया को ठीक करती है। सात्विक गुणों का विकास करती है। दिमाग में शांति लाती है तथा विटामिन की कमी को दूर करती है।
सूर्य और वरुण मुद्रा
सूर्य मुद्रा में अनामिका को अंगूठे के मूल में लगाएं। मुड़े भाग को अंगूठे से दबाएं। अन्य मुद्राओं की तरह बाकी उंगलियां सीधी रखें। इससे शरीर संतुलित होता है। वजन घटता है और मोटापा कम होता है। शरीर में उष्णता बढ़ती है। तनाव में कमी आती है। शक्ति का विकास होने के साथ ही कोलेस्ट्रॉल कम होता है। यह मुद्रा मधुमेह, यकृत (जिगर) के दोषों को दूर करती है। इसे दुर्बल व्यक्ति नहीं करें। गर्मी के मौसम में ज्यादा समय तक न करें। कनिष्ठा के अग्रभाग को अंगूठे से लगाकर वरुण मुद्रा बनता है। यह शरीर में रुखापन नष्ट करके चिकनाई बढ़ाती है। चमड़ी चमकीली तथा मुलायम बनाती है। चर्म-रोग, रक्त-विकार एवं जल-तत्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है। मुंहासों को नष्ट कर चेहरे को सुंदर बनाती है। कफ प्रकृति वाले इस मुद्रा का प्रयोग कम करें।
अपान, अपान वायु या हृदय रोग मुद्रा
अपान मुद्रा में मध्यमा, अनामिका और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाना होता है। यह शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर करने के लिए अत्यंत उपयोगी है। पेट की हर तरह की समस्या ठीक होती है। मल में समस्या और बवासीर में भी लाभकारी है। इससे हृदय रोग, वायु विकार, मधुमेह, मूत्र व गुर्दे संबंधी समस्या तथा दांतों के दोष दूर होते हैं। मुद्रा करने के दौरान मूत्र निष्कासन अधिक होता है। इससे परेशान न हों। उंगलियों से बनने वाली मुद्राओं में अपान वायु या हृदय रोग मुद्रा अत्यंत उपयोगी है। इसमें तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे के मूल में और मध्यमा व अनामिका के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से लगाएं। इससे हृदय मजबूत होता है। दिल के मरीजों के दौरे का खतरा कम करता है। हल्का दौरा पड़ने पर आराम मिलता है। उक्त रक्तचाप को नियंत्रित करता है। गैस, दमा व सिर दर्द में भी लाभदायक है।
प्राण व लिंग मुद्रा
कनिष्ठा, अनामिका और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाने पर प्राण मुद्रा बनती है। इससे शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। मन शांत करने के साथ नेत्र दोष दूर कर ज्योति बढ़ाती है। रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाकर विटामिनों की कमी दूर करती है। साथ ही कमजोरी एवं थकान को जड़ से खत्म करती है। शरीर में नव शक्ति का संचार होता है। इसे करने से उपवास काल में भूख-प्यास आदि नहीं सताती है। यह चेहरे, आंखों एवं शरीर को चमकदार बनाती है। अनिद्रा में इसे ज्ञान मुद्रा के साथ करें तो शीघ्र लाभ मिलेगा। लिंग मुद्रा में दोनों हाथों की सभी उंगलियों को एक-दूसरे से जकड़ कर बंधी स्थिति में रखें। सिर्फ बाएं हाथ का अंगूठा बीच में खड़े अवस्था में रहेगा। यह गर्मी बढ़ाती है। सर्दी, जुकाम, दमा, खांसी, साइनस, लकवा तथा निम्न रक्तचाप में लाभप्रद है। इसे करने के दौरान जल, फल, जूस, घी और दूध का सेवन खूब करें।
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