learn the power of nature and it’s uses : जानें प्रकृति की शक्ति और उसके दोहन के तरीके। विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की से मानव संपन्न हुआ है। वह भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न गया है। लेकिन साथ ही प्रकृति से दूर होता जा रहा है। अब विशिष्ट मानसिक और शारीरिक शक्ति दूर की बात है। सामान्य बीमारियों से निपटने के लिए भी दवाओं का सहारा ले रहा है। दूसरे शब्दों में वह भौतिक सुख-सुविधाओं का गुलाम हो गया है। जबकि वैज्ञानिक शोधों से साबित हो चुका है कि हमारे शरीर में अद्भुत मानसिक व शारीरिक क्षमता है। शरीर आश्चर्यजनक रूप से खुद रोगों से लड़ लेता है। कई लोग कुछ ही देर में मोटी किताब पढ़कर याद कर लेते हैं। लेकिन यह अपवाद में हैं।
कम होती जा रही मनुष्य की क्षमता
मनुष्य की क्षमता लगातार कम हो रही है। वैदिक युग से आज के लोगों की क्षमता की तुलना करें। उस समय के लोग मानसिक और शारीरिक क्षमता में बहुत आगे थे। ऋषि-मुनि तो प्रकृति का खूब दोहन करते थे। आज लोग उसकी कल्पना भी नहीं कर पाते हैं। परिणामस्वरूप अधकचरे ज्ञान वाले उस चमत्कार को कपोल कल्पना करार देते हैं। धर्मग्रंथों के साथ ही बड़े वैज्ञानिकों, विचारकों, धर्मगुरुओं एवं उत्प्रेरकों ने भी बार-बार मानसिक शक्ति की महिमा का बखान किया है। उन्होंने प्रार्थना के महत्व की खूब चर्चा की है। इसी तरह कृतज्ञता ज्ञापित करना भी जरूरी है। नीचे जानें प्रकृति की शक्ति को।
हम जो कुछ भी सोचते हैं वह सब होना संभव
हम जो कुछ भी सोचते हैं। वह सब कुछ पूरा करना संभव है। जरूरत है उस स्तर की मानसिक क्षमता की। इस सिद्धांत के अनुसार विचार बीज है। मजबूत विचार व इच्छाशक्ति से हर लक्ष्य को पा सकते हैं। महान विचारक प्रेंटिस मलफोर्ड (1834-1891) ने साफ कहा है। आपका हर विचार एक वास्तविक वस्तु है। साथ ही एक शक्ति है। धर्मग्रंथों में बार-बार कहा गया है। हमारे साथ कुछ आकस्मिक नहीं होता। वह हमारे विचार एवं कर्मों का फल होता है। इनमें हम बदलाव कर सकते हैं। इससे अपनी मौजूदा स्थिति में भी फेरबदल कर सकते हैं। समस्या है विचार और कर्मों में एकरूपता का अभाव। वैज्ञानिक शोधों से साबित हो चुका है। मनुष्य के मस्तिष्क में प्रति 24 घंटे में 60 हजार विचार आते हैं। यही बिखराव का कारण बनता है। इसी कारण मनुष्य के कर्मों में एकरूपता और निरंतरता की कमी होती है।
धर्मग्रंथों में है इच्छानुसार जीवन जीने की विधि
धर्मग्रंथों इच्छानुसार जीवन जीने की क्षमता विकसित करने के तरीके बताए गए हैं। उसका पालन कर कोई भी लक्ष्य पा सकता है। जानें प्रकृति की शक्ति व उसके दोहन के तरीके। इसके लिए विचारों व कर्मों में एकरूपता जरूरी है। फिर उसे निरंतरता में करना होगा। योग, ध्यान, प्रार्थना, कृतज्ञता एवं मंत्र इसीलिए अहम हैं। वे हमें उसी दिशा में ले जाते हैं। करोड़ों लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। दुर्भाग्य से इस दिशा में शोध का क्रम रुक गया है। लोग अब उसके महत्व को समझते ही नहीं हैं। इसलिए उसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। जिन लोगों ने इस गुर को आंशिक रूप से भी समझ लिया, वह जीवन में अत्यंत सफल हुए।
आध्यात्मिक खजाना कभी खाली नहीं होता
महापुरुषों ने विचार, कल्पना, ध्यान, प्रार्थना एवं कृतज्ञता के महत्व को स्वीकार किया है। महान विचारक और प्रेरक चार्ल्स विलमोर (1854-19948) ने कहा। आध्यात्मिक खजाने से सारी दिखने वाली दौलत मिलती है। वह कभी खाली नहीं होता है। यह हर समय आपके पास है। यह आपकी आस्था व मांगों के अनुरूप प्रतिक्रिया करता है। जनहित में यह स्टोरी जारी है। आगे के अंकों में विस्तार से इसे पढ़ें। फिर जानें प्रकृति की शक्ति और उसके दोहन के तरीके।
पहला भाग- जारी
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