कबीर के भजन हर भक्त हृदय को आंदोलित करने के लिए काफी है। इस कड़ी में ऐसा ही एक भजन प्रस्तुत किया जा रहा है। उम्मीद करता हूं कि सुधी पाठकों को यह पसंद आएगा।
रहना नहीं देश विराना है….
रहना नहीं देश विराना है….यह संसार कागद की पुडिय़ा, बूंद पड़े घुल जाना है। रहना नहीं देश विराना है….यह संसार काँटों की बाड़ी, उलझ उलझ मर जाना है। रहना नहीं देश विराना है….यह संसार झाड़ और झांकर, आग लगी बरी जाना है। रहना नहीं देश विराना है….कहत कबीर सुनो भाई साधु, सतगुरू नाम ठिकाना है।मन लागो मेरो यार फकीरी में…
मन लागो मेरो यार फकीरी में। टेक। जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नहीं अमीरी में।भला-बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में मन लागो…प्रेम नगर में रहनि हमारी, भली बनी आई सबुरी में।हाथ में कुण्डी, बगल में सोटा, चारों दिशा जागीरी में।आखिर तन ये खाक मिलेगा, कहा फिरत मगरुरी में। मन लागो…कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिले सबुरी में। मन लागो…घूँघट के पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे।घट-घट रमता राम रमैया, कटुक वचन मत बोल रे। तोहे पिया…रंग महल में दीप बरत है, आसन से मत डोल रे। तोहे पिया…कहत कबीर सुनो भाई साधु, अनहद बाजत ढोल रे। घूँघट…अनाड़ी मन कब ते भजोगे हरि नाम
अनाड़ी मन कब ते भजोगे हरि नाम। टेक।बालपन सब खेली गम यो, जवानी में व्यप्यो काम।वृद्ध भये, तन काँपन लागो, लटकन लाग्यो चाम। अनाड़ी…लाठी टेकत चलत मार्ग में, सह्यो जात नहिं धाम।कानन बहिर, नयन नही सूझे, दांत भये बेकाम। अनाड़ी…घर की नारी बिमुख होय बैठी, पुत्र करत बदनाम।बरबरात है बिरथा बुढा, अटपट आठों जाम। अनाड़ीज्खटिया में भुई करि दै है, छुटि जै है धन धाम।कहें कबीर काह तब करिहो, परि है यम से काम। अनाड़ीज्कछु लेना ना देना, मगन रहना कछु लेना ना देना, मगन रहना। टेक।पांच तत्व का बना पिंजरा, जामे बोले मेरी मैना। कछु…गहरी नदिया नाव पुरानी, केवटिया से मिले रहना। कछु…तेरो पिया तोरे घट में बसत है, सखी खोलकर देखो नैना। कछु…कहें कबीर सुनो भाई साधो, गुरु चरणन में लिपट रहना कछु…क्यों करत गुमाना।
क्यों करत गुमाना।क्या देख मन भया दिवाना, छोड़ी भजन माया लिपटाना। टेक।पंचम महल देख मति भूले, अंत खाक मिलि जाना।कफ, पित, वायु, मल, मूत्र भरे है, सोई देख नर करत गुमाना।राजा, राज छोड़ के जैहै, खेती करत किसाना।योगी, यती, सती, सन्यासी, ये सब काल के हाथ बिकाना।मातु, पिता, सुत, बन्धु, सहोदर, ये सब अपने स्वारथ आना।अंत समय कोई काम न आवै, प्राण नाथ जब करहीं पयाना।भजन प्रताप अमर पद पाइय, शोक, मोह, चिंता नहिं आना।कहें कबीर सुनो भाई साधो, गुरु चरण पर राखो ध्याना।चोला छुटि गयो चोला छुटि गयो, जनम सब धोखे में खोय दियो। टेक।द्वादश वर्ष बालापन बीता, बीस में जवान भयो।तीस बरस माया के प्रेरे, देश विदेश गयो।चालीस बरस अंत जब लागे, बाढो मोह नयो।धन अरु धाम, पुत्र के कारण, निशिदिन सोच भयो।बरस पचास कमर भाई टेढ़ी, सोचत खाट पड्यो।लडि़का बौहर बोली, बुढाऊ मरि ना गयो बरस साठ, सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।कफ, पित्त, वात, घेर लियो है, नयनन नीर बह्यो।न गुरु भक्ति, न साधु की सेवा, न शुभ कर्म कियो।कहें कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुटि गयो ।
रहना नहीं देश विराना है….
रहना नहीं देश विराना है….यह संसार कागद की पुडिय़ा, बूंद पड़े घुल जाना है। रहना नहीं देश विराना है….यह संसार काँटों की बाड़ी, उलझ उलझ मर जाना है। रहना नहीं देश विराना है….यह संसार झाड़ और झांकर, आग लगी बरी जाना है। रहना नहीं देश विराना है….कहत कबीर सुनो भाई साधु, सतगुरू नाम ठिकाना है।मन लागो मेरो यार फकीरी में…
मन लागो मेरो यार फकीरी में। टेक। जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नहीं अमीरी में।भला-बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में मन लागो…प्रेम नगर में रहनि हमारी, भली बनी आई सबुरी में।हाथ में कुण्डी, बगल में सोटा, चारों दिशा जागीरी में।आखिर तन ये खाक मिलेगा, कहा फिरत मगरुरी में। मन लागो…कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिले सबुरी में। मन लागो…घूँघट के पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे।घट-घट रमता राम रमैया, कटुक वचन मत बोल रे। तोहे पिया…रंग महल में दीप बरत है, आसन से मत डोल रे। तोहे पिया…कहत कबीर सुनो भाई साधु, अनहद बाजत ढोल रे। घूँघट…अनाड़ी मन कब ते भजोगे हरि नाम
अनाड़ी मन कब ते भजोगे हरि नाम। टेक।बालपन सब खेली गम यो, जवानी में व्यप्यो काम।वृद्ध भये, तन काँपन लागो, लटकन लाग्यो चाम। अनाड़ी…लाठी टेकत चलत मार्ग में, सह्यो जात नहिं धाम।कानन बहिर, नयन नही सूझे, दांत भये बेकाम। अनाड़ी…घर की नारी बिमुख होय बैठी, पुत्र करत बदनाम।बरबरात है बिरथा बुढा, अटपट आठों जाम। अनाड़ीज्खटिया में भुई करि दै है, छुटि जै है धन धाम।कहें कबीर काह तब करिहो, परि है यम से काम। अनाड़ीज्कछु लेना ना देना, मगन रहना कछु लेना ना देना, मगन रहना। टेक।पांच तत्व का बना पिंजरा, जामे बोले मेरी मैना। कछु…गहरी नदिया नाव पुरानी, केवटिया से मिले रहना। कछु…तेरो पिया तोरे घट में बसत है, सखी खोलकर देखो नैना। कछु…कहें कबीर सुनो भाई साधो, गुरु चरणन में लिपट रहना कछु…क्यों करत गुमाना।
क्यों करत गुमाना।क्या देख मन भया दिवाना, छोड़ी भजन माया लिपटाना। टेक।पंचम महल देख मति भूले, अंत खाक मिलि जाना।कफ, पित, वायु, मल, मूत्र भरे है, सोई देख नर करत गुमाना।राजा, राज छोड़ के जैहै, खेती करत किसाना।योगी, यती, सती, सन्यासी, ये सब काल के हाथ बिकाना।मातु, पिता, सुत, बन्धु, सहोदर, ये सब अपने स्वारथ आना।अंत समय कोई काम न आवै, प्राण नाथ जब करहीं पयाना।भजन प्रताप अमर पद पाइय, शोक, मोह, चिंता नहिं आना।कहें कबीर सुनो भाई साधो, गुरु चरण पर राखो ध्याना।चोला छुटि गयो चोला छुटि गयो, जनम सब धोखे में खोय दियो। टेक।द्वादश वर्ष बालापन बीता, बीस में जवान भयो।तीस बरस माया के प्रेरे, देश विदेश गयो।चालीस बरस अंत जब लागे, बाढो मोह नयो।धन अरु धाम, पुत्र के कारण, निशिदिन सोच भयो।बरस पचास कमर भाई टेढ़ी, सोचत खाट पड्यो।लडि़का बौहर बोली, बुढाऊ मरि ना गयो बरस साठ, सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।कफ, पित्त, वात, घेर लियो है, नयनन नीर बह्यो।न गुरु भक्ति, न साधु की सेवा, न शुभ कर्म कियो।कहें कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुटि गयो ।